लखनऊ। बदलते वक्त के साथ कई चीजें बदलती नजर आ रही हैं। सिर्फ शहरों में ही नहीं बल्कि अब गाँवों में भी आधुनिकता आ गई है। मोबाइल और साइबर दुनिया में लोग ऐसे रम गए हैं कि अपनी ही संस्कृति से दूर चले गए हैं। इन्हीं संस्कृति में एक है- चौपाल।
पहले गाँवों में मनोरंजन के लिए चौपालें लगती थीं। मनोरंजन के साथ ही उसमें ज्ञानवर्धक बातें भी होती थी। आज आप किसी ग्रामीण युवा से चौपाल के बारे में पूछिए तो शायद ही कोई बता पायेगा। आज हम इन्हीं चौपाल के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।
एक वक्त था जब गाँवों में किसी पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर शाम के वक्त गाँव के पुरुष आपस में इकट्ठा होते थे। उस चौपाल में गाँव से जुड़े किसी मुद्दे पर बातचीत और हल निकाला जाता था। आपस में विवाद सुलझाए जाते थे। किसी विशेष की समस्या पर विचार होता था। उस दौरान महिलाओं को चौपाल में जाने की मनाही होती थी। बड़े-बूढ़े का शायद तब मानना था कि उनमें सहनशक्ति नहीं होती इसलिए ज्यादा देर तक चौपाल में नहीं बैठ सकतीं और न ही चर्चा में अपनी राय दे सकती हैं। आज ये चौपालें विलुप्त होती जा रही हैं। यही वजह है कि गाँव के बुजुर्ग मानते हैं कि चौपालें न होने की वजह से गाँवों में अपराध बढ़ रहे हैं।
मोबाइल और टीवी ने छीन लीं चौपालें
चौपाल के खो रहे अस्तित्व के बारे में सरवाँ गाँव जिला सीतापुर के छह साल से प्रधान कल्लू खान का कहना है कि आज लोगों के पास वक्त ही नहीं है। पहले लोग अपनी छोटी-छोटी समस्याएं लेकर आते थे जिसका निपटारा गाँव के प्रधान सहित तहसील से आए अधिकारियों द्वारा किया जाता था। अब लोग इतने जागरूक हो गए है तो लोग ऐसे ही किसी निर्णय को नहीं मानते हैं। अब लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए तहसील में हर महीने के दूसरे और चौथे शनिवार को थाना दिवस मनाते हैं जिसमें गाँव के लोग जाते है और अपनी समस्याएं रखते हैं और बड़े-बड़े अधिकारी और अफसर उनकी समस्या का समाधान करते हैं। आज कल चौपाल का रूप सिर्फ इतना रह गया है कि सरकारी विभाग के कर्मचारी आते हैं और सरकारी योजनाओं के बारे में ग्रामीणों को बताते हैं। चौपाल में समस्याओं के समाधान के साथ ही साथ बहुत सारी ज्ञानवर्धक जानकारियां भी लोगों को मिलती रहती थीं और आपसी भाईचारा भी लोगों में बढ़ता था। आज लोग अपने खाली वक्त में सोशल साइटस पर रहना ज्यादा पसन्द करते हैं। मोबाइल और टीवी के बढ़ते चलन में गाँव की चौपाल का अस्तित्व धूल चाट रहा है। आज का युवा तो जानता ही नहीं है इसके नफे और नुकसान के बारे में जबकि गाँव की चौपाल, गाँव के कल्याण को ध्यान में रखकर ही बैठाई जाती थी जिसमें किसानों को खेती करने के गुण से लेकर अच्छे प्रकार के बीजों के बारे में भी बताया जाता था।
युवा हैं चौपाल से अंजान
बिसवाँ जिले के मिल्की टोला हाजिरा गाँव में रहने वाले फैजान खान यूं तो बारहवीं के छात्र है लेकिन चौपाल से बिल्कुल अंजान। जब हमने चौपाल के बारे में उनसे जानना चाहा तो उन्होंने उल्टा हमसे सवाल किया कि चौपाल क्या होती है? फैजान की तरह और भी युवा हैं जो चौपाल के बारे में बिल्कुल अनभिज्ञ हैं। बनारस शहर के बेला गाँव निवासी 30 साल के संजय मोहन का कहना है कि मैं चौपाल के बारे में जानता हूं। पुराने जमाने में गाँव वाले इकट्ठा बैठकर किसी मुद्दे पर चर्चा करते थे उसे ही चौपाल कहते हैं। हालांकि अब मेरे गाँव में यह बिल्कुल नहीं होती है।
यहां चौपाल है न्याय का मंदिर
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एक ऐसा भी गाँव है जहां विगत कई वर्षों से किसी भी प्रकार का झग़डा-विवाद या चोरी-डकैती नहीं हुई है। इस गाँव का एक भी मामला अभी तक थाने में नहीं पहुंचा है। कोई विवाद होता भी है तो निपटारा गांव की चौपाल पर हो जाता है। इसे आदर्श गांव माना गया है। जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर गाँव फूलझर देश के अन्य स्थानों से इसलिए अलग है कि 1907 के बाद से इस गाँव में न मारपीट हुई और न ही चोरी हुई। यहां की चौपाल ही थाना और न्याय का मंदिर है। यहां पंच परमेश्वर ही फैसले कर विवाद सुलझा लेते हैं। यही वजह है कि फूलझर को अपराध विहीन आदर्श गाँव घोषित होने पर मुख्यमंत्री ने पुरस्कृत किया है।
रिपोर्टर - दरख्शां कदीर सिद्दिकी