गाँवों का विकास करने वाले दो विभागों में ठनी

Update: 2016-06-10 05:30 GMT
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लखनऊ। गांवों के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले दो विभागों ग्राम्य विकास और पंचायतीराज विभाग में ठन गई है। विभागों के टकराव का असर ग्रामीण इलाके में संचालित योजनाओँ पर भी पड़ सकता है। 

अपनी मांगों को लेकर एक ओर पंचायतीराज विभाग के कर्मचारी शुक्रवार को जिला मुख्यालयों पर धरना प्रदर्शन करेंगे। वहीं ग्राम्य विकास विभाग के अफसर और कर्मचारी मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ विरोध में दो घंटा अतिरिक्त कार्य करेंगे। दोनों विभागों का यह टकराव मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक पहुंच गया है।

ग्राम्य विकास विभाग और पंचायतीराज विभाग की आपसी लड़ाई खुलकर सामने आ गई है। बुधवार को पंचायतीराज के ग्राम्य विकास विभाग और खंड विकास अधिकारी के मातहत कार्य करने के विरोध जताया था। ग्राम्य विकास विभाग के प्रादेशिक विकास सेवा संगठन और उनके अनुषंगिक संगठनों से मिलकर बने उत्तर प्रदेश ग्राम्य विकास महापरिषद ने पत्रकार वार्ता कर विकास खंड की मौजूदा व्यवस्था के तहत योजनाओं के संचालित होने की बात कही थी। 

ग्राम विकास महापरिषद की अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने गांव कनेक्शऩ से कहा, “विकास खंड़ों में मौजूदा व्यवस्था ही कायम रहनी चाहिए। गांवों के विकास के लिए बनी व्यवस्था के लिए कोई अलगाव नहीं चाहते हैं।” महापरिषद ने साफ किया था कि जिस तरह से शासन स्तर पर एपीसी के मातहत विकास कार्य से सम्बंधित कई विभाग एक इकाई के तौर पर कार्य करते हैं, उसी तरह सरकार ने विकास खंड में बीडीओ की भी भूमिका तय की है।

वहीं पंचायती राज सेवा परिषद के अध्यक्ष एसएन सिंह ने कहा,” पंचायतीराज विभाग का है अपना ढांचा है, लेकिन मंडल, जिला, विकास खंड और ग्राम्य पंचायत स्तर पर ग्राम्य विकास विभाग के नियंत्रण में दबे हुए हैं। विभाग स्वतंत्र होकर कार्य नहीं कर पा रहा है। उनके हर कार्य में ग्राम्य विकास विभाग का दखल होता है। इस कारण सरकार की नीतियां और जनहित के कार्य पंचायती राज संस्थाओं के जरिए ग्रामीण जनता को समुचित तरीके से नहीं मिल पा रहे हैं।” 

अपने तर्कों के समर्थन में वो उदाहरण देते हैं, “शासन स्तर पर ग्राम्य विकास विभाग और पंचायती राज विभाग अपने-अपने विभागीय जिम्मेदारियों का अलग-अलग निभाते हैं। एपीसी/मुख्य सचिव दोनों के बीच समन्वयक की भूमिका में होते हैं, वहीं प्रमुख सचिव पंचायती राज की समीक्षा प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास करते हैं। जबकि इसके उलट क्षेत्र पंचायत स्तर पर ग्राम्य विकास विभाग पंचायत राज की योजनाओं का नियंत्रक बन जाता है, जिसके कारण पंचायती राज विभाग की योजनाए प्रभावित होगी हैं।”

पंचायती राज सेवा परिषद के अध्यक्ष उदाहरण देकर बताते हैं, “वर्ष 2003 में ग्राम पंचायतों नाली और खंडजा निर्माण योजनाओं की ग्राम्य विकास विभाग की समीक्षा के बाद भी 38 डीपीआरओ निलम्बित कर दिए गए। जबकि ग्राम विकास विभाग ने सभी कार्यों की समीक्षा की थी, तो या तो उन्हें अपनी जिम्मेदारी आगे लेनी चाहिए थी या फिर उन पर भी कार्रवाई होती।” परिषद ने सफाई कर्मचारियों के ग्राम पंचायत अधिकारी के पद पर प्रमोशन किए जाने पर ग्राम्य विकास विभाग पर अडंगा लगाने का आरोप लगाया। एसएन सिंह आगे कहते हैं, “विभाग में एक लाख 80 हजार सफाई कर्मचारियों में से 21,700 कर्मचारी स्नातक हैं। उन्होंने ग्राम विकास अधिकारी/सचिव पद पर तैनात किए गए ग्राम विकास अधिकारियों को मूल विभाग में वापसी की मांग की।” 

रिपोर्टर - जसवंत सोनकर

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