आसमान में सुराख़: ताकि पंचायत स्तर पर चोरी ना हो सरकार का बजट

Update: 2016-03-05 05:30 GMT
Gaon Connection

नीलेश मिसरा

लखनऊ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, दोनों ने इस बार अपनी सरकारों के बजट में गाँवों को अभूतपूर्व हिस्सेदारी दी है। यह स्वागत योग्य है, गाँवों का चेहरा बदल सकता है-लेकिन स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार के कारण इसमें से बहुत सा पैसा कभी गाँव पहुंचेगा ही नहीं-और उनके अच्छे मंसूबों के बावजूद इसका अपयश ग्राम प्रधान, सचिव या बीडीओ को नहीं, श्री मोदी और श्री यादव को ही मिलेगा।

बजट का 0.5 प्रतिशत से कम हिस्सा इस बात को मॉनिटर करने में, या नज़र रखने में खर्च होता है कि बाकी का 99.9 प्रतिशत पैसा कैसे खर्च हुआ। जिले का डीएम अपने ही काम की मॉनिटरिंग के लिए स्वयं जि़म्मेदार होता है। ग्रामीण योजनाओं के लिए निर्धारित बजट में से प्रधानों, बीडीओ, पंचायत सचिवों और न जाने कितने ग्रामीण स्तर के अधिकारी एसयूवी गाडिय़ों, ज़मीनों और मकानों के स्वामी बनते आए हैं। इसलिए विभिन्न योजनाओं के तहत ग्राम पंचायतों को जाने वाली धनराशि में सैकड़ों प्रतिशत की बढ़ोत्तरी ग्रामीण स्तर पर इन्हीं लोगों में से लखपति और करोड़पति बनाने का भी काम

करेगी।

ग्रामीण स्तर पर पारदर्शिता लाने के लिए गाँव कनेक्शन का यह सुझाव है कि उत्तर प्रदेश की सरकार देश की पहली व्हिसलब्लोअर संस्था-ज़मीनी स्तर पर सरकारी तंत्र पर गुप्त रूप से नजऱ रखने वाली संस्था-की स्थापना करे जो सीधे, और गुप्त रूप से, मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव को प्रदेश के 820 ब्लॉक से रिपोर्ट दे, वाट्सऐप पर भेजी गयी तस्वीरों से लेकर सेटेलाइट द्वारा प्रेषित जीपीएस जानकारी तक का इस्तेमाल करते हुए। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मॉनिटरिंग के लिए किसी भी बजट का कम से कम सात प्रतिशत हिस्सा सुरक्षित होता है, और इस पर खर्च उससे बहुत कम आएगा।

इस व्यवस्था के ज़रिए भारत में पहली बार मुख्यमंत्री जान सकेंगे कि जिलाधिकारी कैसा काम कर रहे हैं, क्या सरकार द्वारा जिन योजनाओं की घोषणा की गई है, वो सचमुच ज़मीनी स्तर पर पहुंच रही हैं? सड़कें बनी हैं या नहीं? गाँवों में मनरेगा का पैसा बंटा या नहीं? और ऐसे सैकड़ों अन्य विषय।

1. विभागों के सेक्टर: बहुत सारे विभाग मिलते-जुलते विषयों की देखभाल करते हैं, लेकिन उनमें या तो सामंजस्य की कमी होती है या वैमनस्य की भावना। पंचायती राज और ग्राम्य विकास और सिंचाई-सब अलग-अलग विभागों के तहत आता है। इन सारे विभागों को एक क्लस्टर या समूह में गिना जाए और इनकी मॉनिटरिंग एक साथ की जाए।

2. व्हिसलब्लोअर का चयन: हर ब्लाक में दो व्हिसब्लोअर हों, जो एमबीए डिग्री धारक हों या अनुभवी पत्रकार हों। हर जि़ले में एक जि़ला टीम लीडर। इनमें से आधी संख्या महिलाओं की हो। इन सारे विसलब्लोअर के पास स्मार्टफ़ोन अवश्य हो और तस्वीरें लेना और वीडियो शूट करना आता हो।

3. लखनऊ में एक कमांड सेंटर की स्थापना हो, जहां पर सारी जानकारी प्राप्त की जाए और मुख्यमंत्री के सामने प्रस्तुत करने के लिए एक पासवर्ड द्वारा सुरक्षित वेबसाइट पर अपलोड की जाए।

4. हर व्हिसलब्लोअर ग्रामीण स्तर पर तस्वीरें खींच कर व्हाट्सएप के ज़रिए यह जानकारी कमांड सेंटर से साझा करे: इन तस्वीरों में सामने आएंगे जर्जर सरकारी स्कूल या अध्यापकविहीन क्लासरूम या टूटे हुए पंचायत भवन, सड़कें जो कागजों पर पक्की हो गईं हैं, हैंडपंप जो टूटे हैं, तालाब जो कागजों पर अनुदान मिलने के बावजूद सूख गए या पाट दिए गए।

5. इसके अलावा राज्य सरकार राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग एजेंसी से उपग्रह से भेजी जानकारी मांगे, जिससे आधी बनी सड़कें, सूखे तालाब, घटता जलस्तर, सब पता चल सके। यह आसानी से उपलब्ध हो सकता है।

6. भारत के हर जिले के पास एक 'एसेट रजिस्टर' यानी उसकी अचल संपत्ति का रजिस्टर होना अनिवार्य है, लेकिन ये अधिकांशत: जिलों में या तो नहीं होता, या ग़लत होता है। मिसाल के तौर पर, अगर किसी जिलाधिकारी से पूछा जाए कि उनके जिले में कितने हैण्डपंप हैं, तो जो संख्या बताई जाएगी वो अमूमन ग़लत होगी, क्योंकि पंचायत स्तर से ही ग़लत आंकड़े भेजे जाते हैं। प्रस्तावित व्हिसलब्लोअर संस्था हर जिले के 'असेट रजिस्टर' को बनाने की पारदर्शी प्रक्रिया फिर से शुरू कर पाएगी।

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