गुड्डे-गुड़ियों से खेलने की उम्र में बनी लेखिका

जिस उम्र में बच्चे मोबाइल में गेम खेलना और परियों की कहानियां सुनना पसंद करते हैं उसी उम्र में यशी त्रिपाठी ने अंग्रेजी में किताब लिखना शुरू कर दिया है..

Update: 2018-09-01 11:59 GMT

बाराबंकी। जिस उम्र में बच्चे टीवी पर कार्टून देखना और मोबाइल पर गेम खेलना पसंद करते हैँ, वहीं नौ साल की उम्र में यशी त्रिपाठी ने अंग्रेजी में किताबें लिखनी शुरू कर दीं। यशी की सभी नॉवेल अंग्रेजी में हैं और उसके पात्र विदेशी।

आज जब संचार क्रांति की बाढ़ में बच्चे किताबों से दूर जा रहे हैं, उस दौर में यशी का सहित्य लेखन कुछ अजूबा सा लगता है।

"कुछ चीजों के बारे में कविताएं लिखते थे, फिर कहानियां लिखी और उसके बाद किताब ने शक्ल ले ली। मुझे पहले नहीं लगा कि यह कोई शक्ल लेगा, लेकिन हमारे टीचर ने इसके लिए हमें प्रेरित किया, "यशी त्रिपाठी (14 वर्ष) ने बताया, "हमारी पहली किताब का टाइटल है 'हताशा की उस घड़ी में', इसमें हमने दिखाया है कि किरदार क्यों उस प्वाइंट तक हताश हुआ उसके बाद उसका हल कैसे निकाला।"

आज कक्षा नौ की छात्रा यशी के लिए हर रोज लेखन के लिए समय निकालना काफी मुश्किल होता है, इसके लिए छुट्टी का या खाली समय के दिन ही संभव हो पाता है। "रोज राइटिंग नहीं कर पाते, कभी संडे मिल गया तो लगातार आठ से नौ घंटे तक लिखते हैं, समय का मैनेज करते हैं, "यशी ने बताया।

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स्कूल के होमवर्क के साथ-साथ किताबें लिखने क लिए विचार कैसे आते हैं? इस पर यशी बताती हैं, "विचार एकाएक आते हैं, ऐसा कोई नहीं कि हमेशा एक ही मूड रहता है, अगर कोई विचार आया तो बड़ी बहन और पापा से डिस्कस कर लेते हैं, उसके बाद लिखना शुरू कर देते हैं, सोचते हैं कि स्टोरी जहां जाएगी तो जाएगी। समय के साथ विचार भी परिपक्व हुए हैं।"

यशी के पिता उदयभान त्रिपाठी खुद की तरह बेटी को एक आईएएस आधिकारी बनाना चाहते थे, लेकिन बेटी की लेखन में रुचि देखकर उसे अपनी मनपसंद का करियर चुनने की आजादी दी है।

"हमारी इच्छा जरुर थी कि यह प्रशासनिक सेवा में आती तो अच्छा रहता, लेकिन बेटी की इच्छा है कि लेखन में जाए तो जो ये चाहती है वही करे," उदयभान त्रिपाठी ने कहा, "जब पढ़ाई में बैलेंस गड़बड़ाता है तो टोकता रहता हूं, दोनों में बैलेंस जरूर रखो। कभी-कभी दूसरे सब्जेक्ट में परफार्मेंस को लेकर शिकायत जरूर मिली, लेकिन अंग्रेजी में इसका परफार्मेंस काफी अच्छा रहा। पहले मैं जोर देता था, जब मैंने देख लिया कि इसकी रुचि पुस्तक लेखन पर ही है, तो मैंने अपनी इच्छाएं थोपनी बंद कर दीं।"

बेटी की इस उपलब्धि में अपना समय से ध्यान न दे पाने का उन्हें मलाल तो है लेकिन इतनी कम उम्र में आगे बढ़ते देख फख्र भी है।

"जब हमने स्कूल में बेटी के कार्यक्रम को देखा कि कैसे वह स्कूल में प्रेजेंट करती है तो मुझे लगा कि यह इस ओर काफी अच्छा कर सकती है। हम पहले इस पर ध्यान नहीं दे पाए, पब्लिशर भी इसने खुद ही ऑनलाइन खोजा," उयभान त्रिपाठी ने बताया। उदयभान त्रिपाठी मौजूदा समय में बाराबंकी के जिलाधिकारी हैं। 

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