गाँव की पगडंडियों पर खेलने वाली लड़कियां देश के लिए लाना चाहती हैं मेडल

कुछ समय पहले तक इन लड़कियों के पास खेलने के लिए न तो खुद के हॉकी स्टिक थे और न पहनने के लिए जूते। लेकिन संसाधनों की कमी इन खिलाड़ियों के इरादों को डिगा नहीं पाए। गाँव में खेल मैदान न होने पर खेत की पगड़डियों पर करती हैं प्रैक्टिस। गाँव की करीब एक दर्जन से ज्यादा लड़कियां देश के लिए हॉकी का सपना संजोए हुए हैं।

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   2 Aug 2018 8:57 AM GMT

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बरेली। " गाँव में गरीब और किसान के घर जन्म लिया, बड़े होकर जब हॉकी खिलाड़ी बनना चाहा तो कई बंदिशें और मुश्किलें सामने थीं। पहले घर वालों ने खेलने से मना किया फिर गाँव के लोगों ने कहा, लड़की होकर चलीं हैं खिलाड़ी बनने। लेकिन हमें इन बंदिशों को तोड़ देश के लिए मेडल लाना है।" ये कहना बरेली के मसीत गाँव की लड़कियों का जो हॉकी खिलाड़ी हैं। खेल संसाधनों की कमी और गाँव में प्रैक्टिस के लिए मैदान न होने बावजूद इन लड़कियों के हौसले कम नहीं हुए हैं। गाँव की गलियों और पगडंडियों पर खेलने वाली देश के लिए खेलना चाहती हैं।

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बरेली से करीब 30 किमी दूर भोजीपुरा ब्लॉक में स्थित है मसीत गाँव। इस गाँव में हॉकी का गजब का उत्साह है, लेकिन लड़कों में नहीं बल्कि लड़कियों में। गाँव की करीब एक दर्जन से ज्यादा लड़कियां देश के लिए हॉकी का सपना संजोए हुए हैं। गरीब परिवारों की ये लड़कियां गजब की हॉकी खेलती हैं। हॉकी खेलने वाली इन लड़कियों के परिवार की माली हालत ठीक नहीं है। किसी की मां दूसरे के घर में काम करती है तो किसी के पिता ऑटो चलाकर परिवार के लोगों का भरण पोषण करते हैं। कुछ समय पहले तक इन लड़कियों के पास खेलने के लिए न तो खुद के हॉकी स्टिक थे और न पहनने के लिए जूते। लेकिन संसाधनों की कमी इन खिलाड़ियों के इरादों को डिगा नहीं पाए हैं। हॉकी के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून देख कुछ लोग सामने आ रहे हैं और खेलने के लिए जरूरी उपरकण मुहैया करा रहे हैं।

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नंगे पैर और उधार के हॉकी स्टिक से करती थीं प्रेक्टिस

हॉकी खेलने वाली उपासाना 11वीं की छात्रा है। उपसाना का कहना है, " एक बार हम गाँव की लड़कियां स्टेडियम में खो-खो खेलने गई थीं। वहीं पर कुछ लड़कियों को हॉकी खेलते देखा। तभी से हमने भी ठान लिया कि हम लोग भी हॉकी खेलेंगे और देश लिए मेडल लाएंगे। लेकिन यह इतना आसान नहीं था। घर वालों ने इसका विरोध किया, लेकिन हॉकी के लिए हमारे जुनून को देख वे भी साथ आ गए।" उपासाना ने बताया," घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण हमारे पास खुद की हॉकी स्टिक नहीं थी। हमारे पास जूते भी नहीं थे। नंगे पैर हम लोग खेलते थे। जब हम स्टेडियम में प्रेक्टिस करने जाते थे तो वहां के कोच हमें एक घंटे के लिए हॉकी स्टिक देते थे। हम लोग उस एक घंटे पूरी शिद्दत और मेहनत से खेलते थे। हमारी लगन और मेहनत को देख स्टेडियम प्रबंधन ने हमें और वक्त तक खेलने की इजाजत दे दिया।"

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गजब का करती हैं टेपिंग और ड्रिवलिंग

इसी गाँव की बीरा ने बताया," जब हम लोग हॉकी खेलने स्टेडियम जाते थे तो गाँव के कुछ लोग हमारा मजाक उड़ते थे। लोग कहते थे, लड़की होकर चलीं है हॉकी खेलने। लेकिन हमने उन लोगों की बातों का परवाह किए बिना हॉकी खेलते रहे। जब हम लोगों को यूनिवर्सिटी स्तर हुई प्रतियोगिता में सम्मानित किया गया तो उन्हीं लोगों ने गाँव पहुंचने पर जोरदार स्वागत किया। अब पूरे गाँव के लोग हमें खेलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।" बरेली स्टेडियम के हॉकी कोच मुजाहिद का कहना है," मसीत गाँव की इन लड़कियों में हॉकी को लेकर गजब का उत्साह है। जब ये लड़कियां हमारे पास पहली बार आईं तो हमें लगा की बस शौक पूरा करने के लिए आई हैं। लेकिन लड़कियों में हॉकी को लेकर जो जुनून है उसे देखकर हम दंग रह गए। इनमें से कुछ लड़कियां बहुत शानदार तरीके से हॉकी खेलती हैं। कुछ को गजब का टेपिंग और ड्रिवलिंग करती हैं। मसीत गाँव की इन लड़कियों में से कुछ अंतरजनपदीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुकी हैं।

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ग्रामीण परिवेश होने का मिलता है फायाद

हॉकी कोच मुजाहिद का कहना है, किसी भी खेल के लिए सबसे ज्यादा स्टेमिना की जरूरत होती है। क्योंकि खेल खेलते वक्त बहुत ताकत होनी चाहिए जो इन लड़कियों में बहुत ज्यादा है। ग्रामीण परिवेश की होने कारण इनमें स्टेमिना बहुत हैं। गाँव में भी पगड़डियों पर दौड़ लगाती हैं। घर के काम के साथ-साथ ये लड़कियां खेतों में भी अपने माता-पिता का हाथ बंटाती हैं, जिससे इनकी शारिरिक क्षमता बहुत है। घंटों मैदान में खेलने के बाद भी इनके चेहरे पर थकान नहीं दिखती हैं। अगर इन लड़कियों को अच्छा प्लेटफार्म मिले तो निश्वत रूप से इनमें से कुछ इंटरनेशनल प्लेयर बन सकती हैं।"



शहर से ज्यादा गाँवों में हैं खेल प्रतिभाएं

समाज सेवी संजीव जिदंल ने बताया, " सोशल मीडिया के माध्यम से पता चला कि मसीत गाँव की लड़कियां हॉकी खेलने स्टेडियम आती हैं। जब मैंने लड़कियों से बात की तो पता चला कि ग्रामीण और गरीब परिवार से होने के पास उनके पास खुद की हॉकी स्टिक और जूते नहीं हैं। स्टेडियम में एक घंटे के लिए उन्हें खेलने के लिए स्टिक दी जाती है। ये बात मैंने अपने कुछ दोस्तों को बताई। दोस्तों की मदद की मैंने इन लड़कियों को हॉकी किट दिया है।" मैं इन लड़कियों को खेल की लिए प्रोत्साहित करता हूं। संजीव जिंदल ने आगे बताया, " शहर से ज्यादा गाँवों में खेल प्रतिभाएं हैं। अगर इन्हें अच्छा मैदान, जरूरी संसाधन और कोच मिल जाए तो देश में मेडल की बारिश हो जाएगी। लड़कों से ज्यादा लड़कियों में खेल के प्रति उत्साह देखने को मिल रहा है। " वहीं गाँव के प्रधान बांके लाल भी इन लड़कियों का पूरा सहयोग कर रहे हैं।

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नहर की पट्टी पर लगाती हैं दौड़, चकरोड पर करती हैं प्रेक्टिस

गाँवों में खेल प्रतिभा की कमी नहीं है। स्टेडियम व अन्य संसाधनों के अभाव में गाँवों की खेल प्रतिभाएं कुंठित हो रही हैं। इसी गाँव की जागृति ने बताया, " गाँव में खेलने लिए कोई न तो जगह है न स्कूलों में मैदान। गाँव से स्टेडियम भी करीब 30 किलोमीटर दूर स्टेडियम है, ऐसे में हम रोज प्रेक्टिस करने नहीं जा पाते हैं। जिस दिन हम स्टेडियम नहीं जा पाते हैं, हम लोग खेत के चकरोड पर अभ्यास करते हैं। सुबह-सुबह हम लोग नहर की पट्टी पर दौड़ने जाते हैं। अगर हमारे गाँव में स्टेडियम या खेल का मैदान बन जाए तो इसका फायदा हम लोगों के साथ-साथ आस-पास के गाँवों की लड़कियों के फायदा होगा।"

    

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