बंदी की मार झेल रहा खाड़ी देशों तक मशहूर अमरोहा का ढोलक कारोबार

Update: 2020-06-18 12:04 GMT

अमरोहा (उत्तर प्रदेश)। यहां की ढोलक आसपास के जिलों में नहीं खाड़ी देशों तक मशहूर है, लेकिन इस समय ढोलक बनाने वाले हुनरमंद कारीगर अपना घर भी मुश्किल से चला पा रहे हैं।

लॉकडाउन खत्म होने के बाद शहर तो खुल गया, लेकिन ढोलक कारोबार अभी तक पटरी पर नहीं आ पाया। खुशियों में जब तक ढोलक की थाप सुनाई नहीं दे तब तक यह खुशी अधूरी सी रहती है। लेकिन और बात जब उत्तरप्रदेश के जनपद अमरोहा की ढोलक की हो तो यह अपना जलवा विदेशों तक बिखरेती है। लेकिन इस समय ढोलक करोबार खुद बंदी के की मार झेल रहा है।

ढोलक बनने मोहम्मद आसिम बताते हैं, "क्या करें मजबूर हैं साहब सब कुछ शहर में खुल चुका लेकिन हमारा काम अभी भी बंद ही है थोड़ा बहुत करते हैं जो माल बना भी है। तो वह बिका ही नहीं समस्या तो है ही शादी समारोह में ही हम लोगों का काम चलता है और वह भी लॉकडाउन के चलते ऐसे ही काम कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के अमरोहा में ढोलक का कारोबार सदियों पुराना है। अमरोहा में मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका ढोलक के कारोबार में लगा है। अमरोहा में बनी ढोलक सिर्फ हिंदुस्तान में ही नही बल्कि विदेशों में भी अपना जादू बिखेरती है।

ढोलक बनाने वाले हुनरमंद कारीगर और कारोबार को मजबूती और तरक्की देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने अमरोहा के ढोलक करोबार को एक जनपद एक उत्पाद में भी शामिल कर रखा है। अमरोहा का ढोलक करोबार आजकल कोरोना वायरस बीमारी की चपेट में है। लॉकडाउन खुलने के बाद भी बहुत से कारखाने बंद पड़े हैं तो कुछ चल भी रहे हैं।

अमरोहा में ढोलक कारीगरों से जब बात की गई तो उनका दर्द छलक उठा। इन कारीगरों ने बताया कि ढोलक करोबार लॉक डाउन की वजह से ठप्प है दो रोटी के भी लाले हैं जो कुछ जोड़ा था इस लॉक डाउन में सब खत्म हो गया अब तो कर्ज लेकर घर चला रहे है। कुछ कारीगर इस काम को करते हुए अपने उम्र के आखिरी पड़ाव में हैं लेकिन उम्मीद अभी बाकी है कारखाने खुलेंगे तो एक बार फिर पैसा मिलना शुरू हो जाएगा तो वहीं सरकार से भी मदद की उम्मीद लगाए हुए है।

देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक जाती है यहां से ढोलक

मोहम्मद आसिम बताते हैं कि लॉकडाउन के चलते सभी कारखाने बंद हो गए थे, लेकिन अब जैसे शहर धीरे-धीरे खुल रहा है वैसे ही कारखाने भी खुल रहे हैं, लेकिन समस्या कारीगरों की भी आ रही है कुछ कारीगर तो अपने घरों को वापिस चले गए और जो बच्चे हैं उनके सामने रोजी-रोटी का संकट है काम चलने में अभी एक वर्ष से अधिक ही लगेगा क्योंकि यह साल तो पूरा हम लोगों के लिए पिट चुका है ।

जिले में हैं 500 से ज्यादा छोटी बड़ी इकाइयां, 2000 कारीगरों को मिलता है रोजगार

याकूब कारीगर आगे बताते हैं, "अमरोहा जनपद में 500 से अधिक छोटी बड़ी इकाइयां है जिसमें लगभग 2000 से अधिक हुनरमंद कारीगर काम करते हैं मुख्य रूप से ढोलक व तबला के निर्माण के लिए जनपद प्रसिद्ध माना जाता हैं, लेकिन अब सब ठप हो चुका हैं, 2000 कारीगरों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा है माल तो तैयार कर रहे हैं, लेकिन खरीदार नहीं मिल रहे ऐसे में हमारे बच्चे व घर चलना भी मुश्किल हो रहा हैं।

बड़े कारोबारी ने की थी मदद की पहल लेकिन अब हालात बने गंभीर

कारीगर आलेनबी ने बताया कि जब शुरुआती दौर में लॉकडाउन लगा था, तब बड़े व्यापारियों ने मदद के लिए कारीगरों की सहायता के लिए हाथ आगे बढ़ाया था , लेकिन अब हालात गंभीर होते नजर आ रहे हैं क्योंकि शहर तो खुल चुका है अभी काम पटरी पर नहीं लौटा, जो चल रहा है उसका माल तैयार होकर गोदाम में लगाया जा रहा है खरीदार बड़ी मुश्किल से मिल रहे हैं और जो मिल भी रहे हैं, तो उससे कारखाने का खर्चा निकल रहा है मजदूरों को मजदूरी भी सही से नहीं मिल पा रही समस्या तो है आगे देखते हैं अब क्या होता है सोच रहे हैं कुछ दिन और काम किया जाए ताकि परिवार का पालन पोषण सही से चल पाए। 

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