कैमूर: जाति पर नहीं, शिक्षा और रोजगार पर ग्रामीण जनता का वोट

Update: 2019-05-01 12:56 GMT

कैमूर (बिहार)। लोकतंत्र का सबसे बड़ा त्योहार लोकसभा चुनाव अब धीरे-धीरे अपने आखिरी पड़ाव की ओर जा रहा है। नेता जनता के बीच विकास के वादों के साथ जनसंपर्क बनाने में लगी हुई हैं। मगर जनता का क्या मिजाज है और जनता मुद्दे क्या हैं, इसे समझने के लिए गांव कनेक्शन की टीम पहुंची कैमूर जिले के भभुआ प्रखंड के भोखरी गांव गई जहां लोगों ने अपने मुद्दे गांव कनेक्शन के साथ साझा किया।

भोखरी गांव सासाराम संसदीय क्षेत्र में आता है जहां के वर्तमान सांसद छेदी पासवान हैं जो भारतीय जनता पार्टी से हैं। वहीं दूसरे सबसे बड़े नेता के रूप स्वर्गीय जगजीवन राम की पुत्री पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार हैं। कैमूर जिले में 4 विधानसभा क्षेत्र हैं जिसमें मोहनिया, भभुआ, चैनपुर और रामगढ़ विधानसभा है वहीं यह जिला दो संसदीय क्षेत्रों में बंटा हुआ है। सासाराम संसदीय क्षेत्र एवं बक्सर संसदीय क्षेत्र। मोहनिया भभुआ चैनपुर सासाराम संसदीय क्षेत्र में आते हैं तो रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र बक्सर संसदीय क्षेत्र में।

वहीं भोखारी गांव की बात करें तो 4000 से ज्यादा इस गांव की आबादी है और 1600 से ज्यादा मतदाता हैं। युवाओं का वोट भी अच्छा खासा है। चुनावी मुद्दों के दौरान जनता के मुद्दों को जानने के लिए हमारी बात हुई 18 वर्षीय युवा राजकुमार यादव से जो पहली बार लोकसभा चुनाव में मतदान करेंगे। वह कहते हैं "हम युवाओं को गांव में खेल के मैदान की जरूरत है, साथ ही जिला में उच्च शिक्षा की पढ़ाई के लिए एक विश्वविद्यालय की भी जरूरत है जो हमारी इन मांगों को पूरा करेगा हमारा वोट उसे ही जाएगा।

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इसी भीड़ में से अलग हमारी नजर कुछ विद्यार्थियों पर पड़ी जो 42 डिग्री के तापमान में कंधे पर स्कूली बैग लिए सुनसान रास्तों से होते हुए आ रहे थे। जब हमारी उनसे बात हुई तो ज्यादादत छात्राओं ने कहा कि हम आठवीं पास करके नौवीं क्लास में दाखिला लिए हैं और स्कूल जाने के लिए हमें घर से 9 किलोमीटर दूर भभुआ जिले में जाना पड़ता है। पिता मजदूर हैं, इतना पैसा नहीं कि हम रोज स्कूल जा सकें। कभी-कभी पैदल भी जाना पड़ता है। अगर सरकार हमारे गांव में दसवीं तक की पढ़ाई की सुविधा दे तो बहुत अच्छा रहेगा।

इसी गांव में प्राथमिक विद्यालय हैं तो माध्यमिक विद्यालय तीन किलोमीटर दूर शिवपुर गांव में है जिसको देखते हुए गांव की जनता हाईस्कूल तक की पढ़ाई अपने गांव में ही कराने की मांग कर रही है। वहीं इस गांव में मुख्य मुद्दों में सबसे अहम मुद्दा विद्यालय है। बेरोजगारों की भी एक लंबी कतार है। जहां लोग कहते हैं कि सरकार हमारे जिले के आसपास ही रोजगार के साधन उपलब्ध करा दें तो अच्छा है, क्योंकि दिल्ली मुंबई जैसे बड़े शहरों में नौकरी तो करते हैं लेकिन परिवार का पालन पोषण सही ढंग से नहीं हो पाता।

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इन्हीं तमाम लोगों की भीड़ में एक ऐसा भी चेहरा था जिसके पास रोजगार था और कई लोगों को रोजगार देता भी था। मगर आज वह बेरोजगार हैं। इनका नाम कृष्णा महतो है और ये मेंथा ऑयल की खेती करते थे। साथ ही पिपरमेंट, हल्दी और मेंथा का तेल बनाने के तीन साल पहले मशीन लगवाया था, इसके लिए दोस्त, मित्रों से कर्ज लिया। व्यापार बढ़ा और आमदनी भी बढ़ी। जिसके बाद लिया हुआ कर्ज  चुकाया। फिर प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना के तहत दस लाख रुपए लोन लेकर व्यापार बढ़ाने के बारे में सोचा।

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इसके लिए आवेदन भी दिया गया जो स्वीकार भी हुआ। मगर बैंकों के कागजों में ऐसे फंसे कि जो रोजगार था वह भी बंद हो गया और लोन भी नहीं मिला। अपनी बंद मशीनों को देख कर कहते हैं  "कभी इन्हीं मशीनों से मैं और अमीर बनने की चाह रखता था। मगर सरकार और बैंकों के चक्कर में ऐसा पड़ा कि वही मशीन आज कबाड़ी बन गई है और मैं कंगाल। सरकार रोजगार देने की बात करती है। मैं तो कई बेरोजगारों को रोजगार भी दे रहा था, लेकिन खुद बेरोजगार हो गया हूं।"

वे आगे कहते हैं "मैं वोट किसे दूं जो मेरा रोजगार था कागजों के चक्कर में चला गया। मैं सरकार से मांग करता हूं कि आप जो लोन इश्यू करवाते हैं उसका जांच कराने के लिए एक टीम भी उस जगह पर भेजें और यह पता करें कि जिसको लोन के लिए आपने परमिशन दिया है उसको मिला है या नहीं।" हालांकि कृष्णा लोगों से मतदान करने की भी अपील करते हैं।

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