अपनी सहेलियों को पीरियड्स के बारे में जागरूक कर रहीं हैं गाँव की लड़कियाँ

पीरियड्स के दौरान अगर ठीक से ध्यान न दिया जाए तो आगे मुश्किलें हो सकती हैं, इन्हीं सब चीजों को अब गाँव की लड़कियाँ समझने लगीं हैं।

Update: 2024-03-11 09:42 GMT

माल (लखनऊ, उत्तर प्रदेश)

उन्नीस साल की वंदना को जब पहली बार पीरियड आया तो डर गईं और उनके सारे कपड़े खराब हो गए; क्योंकि किसी ने कभी इसके बारे में उन्हें बताया ही नहीं था, लेकिन आजकल वो दूसरी लड़कियों को अब इसे लेकर जागरूक कर रही हैं ताकि जो उनके साथ हुआ किसी और किसी के साथ न हो।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले के माल ब्लॉक के थावर गाँव की रहने वाली वंदना गाँव कनेक्शन से बताती हैं, 'पहले पीरियड्स में मेरे सारे कपड़े खराब हो गए; क्योंकि मुझे पीरियड्स के बारे में पता ही नहीं था, कपड़ा यूज करते थे, जलन होने लगती थी, कई बार तो इंफेक्शन भी हो जाता था; लेकिन अब तो हमें सब पता है, इसलिए हम अब दूसरी लड़कियों को इसके बारे में बताते हैं।"

यूनिसेफ के मुताबिक भारत में 71 फीसदी किशोरियों को अपनी पहली माहवारी आने तक मासिक धर्म के बारे में पता ही नहीं होता है।


वंदना जैसी सैकड़ों लड़कियों को आजकल जागरूक किया जा रहा है। लखनऊ की वात्सल्य संस्था लखनऊ के माल, काकोरी, मोहनलालगंज ब्लॉक और बाराबंकी के बंकी, मसौली, देवा ब्लॉक के कई गाँवों में महिलाओं, लड़कियों के साथ ही लड़कों को भी माहवारी के बारे में जागरूक कर रही है। गाँव के साथ ही स्कूल-कॉलेज और स्वास्थ्य केंद्रों पर जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं; इसमें गाँव की लड़कियाँ ही वालंटियर के रूप में दूसरी लड़कियों को जागरूक करती हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) के मुताबिक, 15-24 वर्ष उम्र की महिलाएँ अब जागरूक हुईं हैं, पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई का ध्यान रखने का प्रतिशत जहाँ पहले 58 फीसदी था अब बढ़कर 78 प्रतिशत हो गया है। इन महिलाओं में 64 प्रतिशत सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं, जबकि 50 फीसदी कपड़े का उपयोग करती हैं और 15 फीसदी स्थानीय रूप से तैयार नैपकिन का उपयोग करते हैं।

उन्नीस साल की हंशु की पढ़ाई छूट गई हैं, लेकिन आजकल वो वात्सल्य की वॉलिंटियर बन गई हैं और एक कार्यक्रम में शामिल होती हैं। वो कहती हैं, "अब मैं अपने गाँव की हर एक लड़की को पीरियड्स के बारे में बताती हूँ कि किस तरह से वो अपना ख़याल रख सकती हैं।


वात्सल्य संस्था की फाउंडर डॉ नीलम सिंह जोकि महिला रोग विशेषज्ञ हैं इस शुरुआत के बारे में गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "तीस साल पहले की बात है, उस समय लोग आते थे और कहते थे कि गर्भ में पल रहे बच्चे की जाँच कर दीजिए और हमें लड़की नहीं चाहिए।"

वो आगे कहती हैं, "ऐसे कई कारण थे, जिसने मुझे परेशान किया और मुझे लगा कि इस विषय पर कुछ करना चाहिए; यहीं से मैंने लड़कियों के उत्थान के लिए काम करना शुरु किया।"

आज वात्सल्य संस्था उत्तर प्रदेश के 25 से अधिक जिलों में शिक्षा और स्वास्थ्य पर काम कर रही है।

"लड़कियों के लिए समाज में बहुत सी बाधाएँ होती हैं, जिसमे माहवारी एक है; आज भी समाज में इस मुद्दे पर बहुत चुप्पी है, लड़कियाँ इस पर खुल कर बात करने से कतराती है, इसी चुप्पी और मानसिक तनाव को झेलते हुए बड़ी होती हैं; इस पर बात ना कर पाने की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ता है; कार्यस्थलों पर, सार्वजनिक स्थानों पर, स्कूलों में लड़कियों के लिए टॉयलेट या ऐसी कोई जगह नहीं होती जहाँ जाकर वे अपना सैनिटरी पैड बदल सकें, कुछ लड़कियाँ इस दौरान इन्हीं कारणों से स्कूल नहीं जा पाती है। "डॉ नीलम ने आगे कहा।


वात्सल्य संस्था महिलाओं के मासिक धर्म की स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए जगह जगह जा कर महिलाओं को जागरूक करने का प्रयास कर रही है। वात्सल्य एनजीओ से बहुत सी महिलाएँ और लड़कियाँ जुड़ी हुई हैं और वालंटियर के तौर पर काम कर रही हैं।

माल ब्लॉक के गाँव में रहने वाली फूलमति भी उन्हीं में से एक हैं, वो गाँव कनेक्शन से कहती हैं, "पीरियड्स को अक्सर छुआछूत से जोड़ा जाता है, इस वजह से, पहले मेरी माँ और फिर शादी के बाद मेरी सास मुझे पीरियड्स के दौरान बताती थी कि इस समय पूजा नहीं करनी चाहिए, रसोई में नहीं जाना हैं और किसी भी प्रकार की खट्टी चीज़ों को नहीं छूना चाहिए।"

लेकिन आज वो न सिर्फ अपने घर में बल्कि अपने आसपास की लड़कियों को भी इसके बारे में जागरूक कर रही हैं।

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