इंजीनियर ने मक्के के छिलकों को बनाया कमाई का जरिया, 50 पैसे में बन रही प्लेट, कमाई भी शानदार

मक्के के पत्तों का पत्तल, झोला और तिरंगा आपने इससे पहले ही शायद देखा। बिहार के एक इंजीनियर ने मक्के के इन्हीं पत्तों को रोजगार का जरिया बनाया है। इंजीनियर की ये मुहिम प्लास्टिक और फाइबर कम करने बड़ा योदगान दे सकती है… देखिए वीडियो

Update: 2019-10-18 08:15 GMT

मुजफ्फरपुर (बिहार)। एमटेक की पढ़ाई करने के बाद नाज जब अपने गांव लौटे और पर्यावारण के लिए कुछ करने की सोची तो उनके घर वालों ने ही उनका साथ नहीं दिया। कारण था कि वे एक अच्छी नौकरी ठुकरा चुके थे। लेकिन प्लास्टिक की समस्या से निपटने के लिए उन्होंने मक्के के छिलके से जो शोध किया उसकी दाद अब वैज्ञानिक भी दे रहे हैं।

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के रहने वाले मोहम्मद नाज ने मक्के के छिलके से कप, प्लेट, पत्तल और कटोरी बनाकर सबको चौंका दिया है। वैज्ञानिक उनके इस खोज को प्लास्टिक का विकल्प मान रहे हैं। वहीं ये सस्ता तो है ही साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत उपयोगी है।

मुजफ्फरपुर जिले मनियारी के रहने वाले 26 वर्षीय मोहम्मद नाज ने जवाहर लाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी हैदराबाद से एमटेक की पढ़ाई की, उसके बाद बतौर लेक्चरर वहां पढ़ाया भी। इसके बाद बड़ी कपंनियों से नौकरी के ऑफर भी मिले लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया और कुछ अलग करने के लिए सोचा।

मक्के से बना झोला दिखाते मोहम्मद नाज।

जिले के मनियारी क्षेत्र के मुरादपुर गांव निवासी 26 वर्षीय मोहम्मद नाज ओजैर इंटर के बाद आगे की पढ़ाई करने हैदराबाद चले गए। जवाहर लाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से वर्ष 2014 में बीटेक व 2016 में एमटेक किया। वहीं लेक्चरर के रूप में छह महीने काम किया।

कई कंपनियों से ऑफर मिले, लेकिन कुछ अलग करने की सोच के साथ वे वापस लौट आये और प्लास्टिक के विकल्प पर काम करने लगे। उनका प्रयोग रंग लाया और उन्होंने मक्के के छिलके पर काम करना शुरू किया। नाज ने मक्के के छिलके से प्लेट, थाली, कप और प्लेट बनाया है जिसे वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है।

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इस बारे में नाज ने गांव कनेक्शन संवाददाता को बताया कि मक्के के छिलके से बने प्रोडक्ट बहुत सस्ते भी है। एक पत्तल बनाने में तकरीबन 50 पैसे खर्च आता है। वाटरप्रूफ होने के चलते इसका प्लेट सब्जी के लिए उपयोगी है। कोई भी आदमी इसे बनाने का भी काम शुरू कर सकता है।

नाज ने आगे बताया कि एक किताब में मैंने पढ़ा था कि 50 साल बाद समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक होगा। ये पढ़ने के बाद मैं अंदर तक हिल गया और संकल्प लिया कि ऐसे प्रोडक्ट तैयार करूंगा जो प्लास्टिक की जगह ले सकेगा।

नाज ने अपने प्रोडक्ट और उसके फायदे अखबार के माध्यम से जनता तक पहुंचने का प्रयास किया। अखबार के माध्यम से इस प्रोडक्ट की जानकारी डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय पूसा के वैज्ञानिकों को मिली और वहां के चीफ साइंटिस्ट डॉक्टर मृत्युंजय कुमार मोहम्मद नाज़ से मिलने उनके घर पहुंचे। प्रोडक्ट देखने के बाद डॉक्टर मृत्युंजय ने नाज के प्रोडक्ट की सराहना की और उन्हें अपने कॉलेज में बुलाया।


इस खोज के बारे में डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के वरीष्ठ वैज्ञानिक (मक्का) डॉ. मृत्युंजय का कहना है कि मक्का का हर भाग उपयोगी है। इससे सैकड़ों प्रोडक्ट बनते हैं। इसके छिलके से पेपर, पेय पदार्थ, कंपोस्ट खाद, कलर, फ्लावर बेस और धागा तैयार होता है। इससे कप, प्लेट, पत्तल और झोला भी बनाया जा सकता है। यह प्लास्टिक का बेहतर विकल्प बन सकता। इस तरह के शोध होने चाहिए, ताकि लोगों को लाभ मिल सके।

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