कोरोना संकट में कितना खतरनाक हो सकता है टिड्डियों का हमला?

पाकिस्तान से आने वाली टिड्डियां हवा के साथ ही अपना रास्ता बदलती हैं, राजस्थान के बाद मध्य प्रदेश, फिर उत्तर प्रदेश तक ये टिड्डियां हवा के साथ ही पहुंच गईं। ये टिड्डियां जल्द महाराष्ट्र, उड़ीसा और पंजाब, हरियाणा और दिल्ली तक पहुंच सकती हैं।

Update: 2020-05-28 16:33 GMT

राजस्थान के रेगिस्तान से निकलकर अब टिड्डियां कई राज्यों तक पहुंच रहीं हैं, ये टिड्डियां कितनी खतरनाक हो सकती हैं, इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं। इनका एक झुंड कुछ ही देर में पूरी फसल बर्बाद कर सकता है।

पाकिस्तान से आने वाली ये रेगिस्तानी टिड्डियां राजस्थान और गुजरात के रास्ते भारत में प्रवेश करती हैं, जिस तरफ हवा का रुख होता है, उसी के साथ अपना रास्ता भी बदलती रहती हैं। राजस्थान के बाद मध्य प्रदेश, फिर उत्तर प्रदेश तक ये टिड्डियां पहुंच गईं हैं। विशेषज्ञों के अनुसार ये टिड्डियां जल्द महाराष्ट्र, उड़ीसा और पंजाब, हरियाणा और दिल्ली तक पहुंच सकती हैं।

गुजरात में हर साल टिड्डियां आती हैं, जहां पर इनका नियंत्रण कर लिया जाता, लेकिन इस बार कोरोना संकट ने इन्हें आगे बढ़ने का मौका दे दिया। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन आने वाले डायरेक्टोरेट ऑफ प्लांट प्रोटेक्शन, क्वारैंटाइन एंड स्टोरेज के अनुसार साल 1812 से भारत टिड्डियों के हमले झेलते आ रहा है।


भारत में टिड्डियों के नियंत्रण के लिए कृषि मंत्रालय के अंर्तगत टिड्डी चेतावनी संगठन काम करता है। टिड्डी चेतावनी संगठन (एलडब्ल्यूओ) के उपनिदेशक डॉ. केएल गुर्जर बताते हैं, "भारत में टिड्डियों का हमला राजस्थान और गुजरात में ही होता है, ये रेगिस्तानी टिड्डियां होती हैं जो पाकिस्तान से भारत में आती हैं। ब्रीडिंग के लिए ये रेगिस्तान में आती हैं। इन टिड्डियों का ब्रीडिंग का समय जून-जुलाई से लेकर अक्टूबर-नंवबर तक होता है।"

भारत में 2 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र अनुसूचित रेगिस्तान क्षेत्र के अंतर्गत आता है। टिड्डी चेतावनी संगठन और भारत सरकार के 10 टिड्डी सर्कल कार्यालय (एलसीओ) राजस्थान (जैसलमेर, बीकानेर, फलोदी, बाड़मेर, जालौर, चुरू, नागौर, सूरतगढ़) और गुजरात (पालमपुर और भुज) बनाए गए हैं।

डॉ. केएल गुर्जर आगे कहते हैं, "टिड्डियों के नियंत्रण के लिए राजस्थान और गुजरात में टिड्डी चेतावनी संगठन के कई केंद्र बनाएं गए हैं, जहां से टिड्डियों की निगरानी की जाती है। जिस दिशा में हवा चलती है, उसी दिशा में टिड्डियां चलती हैं।"

पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भारत भर में विशाल टिड्डी दलों के पहुंचने के बीच, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएसी एंड एफडब्ल्यू) राजस्थान, पंजाब, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे प्रभावित राज्यों में टिड्डियों पर नियंत्रण पाने की कार्रवाइयों में तेजी लाए हैं। आज तक, ये टिड्डी दल राजस्थान के बाड़मेर, जोधपुर, नागौर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर, जयपुर जिलों और मध्य प्रदेश के सतना, ग्वालियर, सीधी, राजगढ़, बैतूल, देवास, आगर मालवा जिलों में सक्रिय हैं।

टिड्डी दल ज्यादातर फसलों जैसे मक्का, मूंग, उड़द, गन्ना, सब्जियां, आम आदि को खत्म कर देता है। इन्हें जहां भी हरियाली दिखती है, वहीं पर धावा बोल देती हैं और पूरी फसल को चट कर देती हैं।

भारत में अभी तक टिड्डियों का प्रभाव

शुरूआत में जब राजस्थान में टिड्डियों का हमला हुआ तो देश भर के कई राज्यों में एकीकृत प्रबंधन केंद्रों (आईपीएम) के विशेषज्ञ भी वहां पर बुला लिए। एकीकृत प्रबंधन केंद्र (आइपीएम) के विशेषज्ञ राजीव और उनके कई साथी भी जैसलमेर बुला लिए गए थे। राजीव बताते हैं, "हम लोग अप्रैल में ही जैसलमेर चले गए थे, अभी जब मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तक टिड्डियां पहुंची तो अभी मध्य प्रदेश और झांसी तक टिड्डी नियंत्रण के लिए जा रहे हैं।"

वर्तमान में 200 टिड्डी सर्कल कार्यालय (एलसीओ) प्रभावित राज्यों के जिला प्रशासन और कृषि फील्‍ड मशीनरी के साथ तालमेल कायम करते हुए सर्वेक्षण और नियंत्रण कार्य कर रहे हैं। राज्य कृषि विभागों और स्थानीय प्रशासन के समन्वय के साथ टिड्डी नियंत्रण का कार्य जोरों पर हैं। अब तक राजस्थान के 21 जिलों, मध्य प्रदेश के 18 जिलों, पंजाब के एक जिले और गुजरात के 2 जिलों में टिड्डी नियंत्रण कार्य किया गया है। रेगिस्तानी क्षेत्रों से परे टिड्डियों पर प्रभावी रूप से नियंत्रण पाने के लिए, राजस्थान के अजमेर, चित्तौड़गढ़ और दौसा; मध्य प्रदेश के मंदसौर, उज्जैन और शिवपुरी तथा उत्तर प्रदेश के झांसी में अस्थायी नियंत्रण शिविर स्थापित किए गए हैं।

पाकिस्तान में ईरान के जरिए आती हैं। इसी साल फरवरी में टिड्डियों के हमलों को देखते हुए पाकिस्तान ने नेशनल एमरजेंसी घोषित कर दी थी। इसके बाद 11 अप्रैल से भारत में भी टिड्डियों का आना शुरू हो गया। पिछले कुछ महीनों से गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश भी ऐसी ही स्थिति का सामना कर रहे हैं। दिसंबर 2019 में, टिड्डियों ने गुजरात में 25,000 हेक्टेयर में फैली फसलों को नष्ट कर दिया था।

विश्वभर में रेगिस्ता‍नी टिड्डी के प्रकोप से प्रभावित क्षेत्र

रेगिस्ता‍नी टिड्डी के प्रकोप से प्रभावित क्षेत्र लगभग 30 मिलियन वर्ग किलोमीटर है, जिसमें लगभग 64 देशों का सम्पू्र्ण भाग या उनके कुछ भाग शामिल हैं। इनमें उत्तर पश्चिमी और पूर्वी अफ्रीकन देश, अरेबियन पेनिनसुला, दक्षिणी सोवियत रूस गणराज्य , ईरान, अफगानिस्तान और भारतीय उप-महाद्वीप देश शामिल हैं। टिड्डी प्रकोपमुक्त अवधि के दौरान जब टिड्डियां कम संख्या में होती हैं तब ये शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्र के बड़े भागों में पाई जाती हैं जोकि बाद में अटलांटिक सागर से उत्तर-पश्चिम भारत तक फैल जाती हैं। इस प्रकार ये 30 देशों में लगभग 16 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई जाती हैं।

अब तक (26.05.2020 तक), राजस्थान,पंजाब, गुजरात और मध्य प्रदेश में जिला प्रशासन और राज्य कृषि विभाग के साथ समन्वय करते हुए एलसीओ द्वारा कुल 303 स्थानों के 47,308 हेक्टेयर क्षेत्र में टिड्डियों पर नियंत्रण पाने की कार्रवाइयां की गई हैं। टिड्डियों पर प्रभावी रूप से नियंत्रण पाने के लिए कीटनाशकों के छिड़काव के लिए 89 दमकल गाडि़यों; 120 सर्वेक्षण वाहनों; छिड़काव करने वाले उपकरणों और 810 ट्रैक्टर माउंटेड स्प्रेयर युक्‍त 47 नियंत्रण वाहनों को आवश्यकता के अनुसार अलग-अलग दिनों के दौरान तैनात किया गया।

मध्य प्रदेश में कीटनाशक का छिड़काव

उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के उप निदेशक (फसल सुरक्षा) वीके सिंह बताते हैं, "अभी तक उत्तर प्रदेश में झांसी के मोठ तहसील में टिड्डियों का एक दल देखा गया, जिसे नियंत्रण में लगी टीम ने वहां से भगा दिया। हवा की दिशा के अनुसार इसके जालौन और हमीरपुर तक पहुंचने की संभावना है। एक दूसरा टिड्डी दल सोनभद्र के घोरावल के कर्मा गाँव में देखा गया, जो मिर्जापुर के अहरौरा जंगल तरफ जाता दिखायी दिया है। मिर्जापुर में एक दूसरा दल भी दिखा जो मध्य प्रदेश की तरफ चला गया।"

इस तरह अगर टिड्डियां सोनभद्र तक पहुंच गईं हैं तो ये टिड्डियां झारखंड और छत्तीसगढ़ में प्रवेश कर सकती हैं और चंदौली के रास्ते बिहार में भी तबाही मचा सकती हैं। अभी तक टिड्डियां महाराष्ट्र के नागपुर तक पहुंच गईं हैं।

झांसी के फसल सुरक्षा अधिकारी विवेक कुमार बताते हैं, "हम लोग दिन भर टिड्डियों को शोर से भगाते हैं और रात में उनपर कीटनाशक का छिड़काव करते हैं। जिधर हवा होती है, उधर ही जाते हैं।"

मध्य प्रदेश में हर दिन टिड्डियों के दल की संख्या बढ़ती ही जा रही है। छतरपुर जिले के टिड्डी नियंत्रण प्रभारी बीपी सूत्रकार बताते हैं, "टिड्डियों की संख्या हर दिन बढ़ती ही जा रही है, दिन में शोर से उन्हें भगाते हैं और रात में उन पर कीटनाशक का छिड़काव करते हैं। अगर राजस्थान में ही इनका नियंत्रण हो जाता तो ये आगे नहीं पहुंचती, लेकिन लॉकडाउन की वजह से नियंत्रण नहीं हो पाया।"

इस पहले ही आ गए थे टिड्डी दल

टिड्डी दल पाकिस्तान के रास्‍ते से भारत के अनुसूचित रेगिस्तान क्षेत्र में जून / जुलाई के महीने में मानसून के आगमन के साथ ग्रीष्‍मकालीन प्रजनन के लिए प्रवेश करते हैं। इस साल इन हॉपर और गुलाबी रंग की टिड्डियों का प्रवेश समय से काफी पहले हो गया है, जिसकी वजह पाकिस्तान में पिछले सीजन में टिड्डियों की अवशिष्ट आबादी की उपस्थिति बताई गई हैं, जिन्‍हें वह नियंत्रित नहीं कर सका था।

झांसी में मिला टिड्डा

अप्रैल में ही हो गई थी शुरूआत

राजस्थान और पंजाब के सीमावर्ती जिलों में 11 अप्रैल, 2020 से टिड्डी हॉपर और 30 अप्रैल, 2020 से गुलाबी अपरिपक्व वयस्क टिड्डियों के प्रवेश की सूचना मिल रही है, जिन्हें नियंत्रित किया जा रहा है। गुलाबी अपरिपक्व वयस्क ऊंची उड़ान भरते हैं और पाकिस्तान की तरफ से आने वाली पश्चिमी हवाओं के साथ एक दिन में एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान तक की लंबी दूरी तय करते हैं। इनमें से अधिकांश गुलाबी अपरिपक्व वयस्क रात को पेड़ों पर ठहरते हैं और ज्यादातर दिन में उड़ान भरते हैं।

भारत में एफएओ प्रतिनिधि के कार्यालय में 11 मार्च, 2020 को दक्षिण-पश्चिम एशियाई देशों में डेजर्ट लोकस्ट के बारे में एक उच्च-स्तरीय वर्चुअल बैठक आयोजित की गई थी। इस बैठक में चार सदस्य देशों (अफगानिस्तान, भारत, ईरान और पाकिस्तान) और एफएओ, रोम के प्लांट प्रोटेक्शन डिवीजन के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया था। इस बैठक में कृषि एवं किसान कल्‍याण राज्‍य मंत्री श्री कैलाश चौधरी और सचिव, डीएसी एंड एफडब्ल्यू ने भाग लिया था। इस बैठक में सदस्य देशों के तकनीकी अधिकारियों की स्काइप के माध्यम से प्रत्येक सोमवार को वर्चुअल बैठक आयोजित करने का निर्णय लिया गया था और अब तक ऐसी नौ बैठकें हो चुकी हैं। राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब राज्यों को टिड्डी दल के हमले तथा उन पर प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक उपायों और फसल वाले क्षेत्रों में असरदार कीटनाशकों के उपयोग के बारे में परामर्श जारी किए गए हैं।


अभी और मचा सकते हैं तबाही

एफएओ के 21 मई, 2020 के लोकस्‍ट स्‍टेट्स अपडेट के अनुसार, पूर्वी अफ्रीका में वर्तमान स्थिति बेहद चिंताजनक बनी हुई है जहां यह खाद्य सुरक्षा और आजीविका के लिए एक अभूतपूर्व खतरा बना हुआ है। नए टिड्डी दल भारत-पाकिस्तान सीमा के दोनों ओर के साथ-साथ सूडान और पश्चिम अफ्रीका के ग्रीष्मकालीन प्रजनन क्षेत्रों में दाखिल होंगे। जैसे-जैसे वनस्पति सूखती जाएगी, इनके और अधिक झुंड और दल तैयार होंगे और इन क्षेत्रों से भारत-पाकिस्तान सीमा के दोनों ओर ग्रीष्‍म प्रजनन क्षेत्रों का रुख करेंगे। भारत-पाकिस्तान सीमा से सटे क्षेत्रों में जून के शुरुआती दिनों के दौरान अच्छी बारिश का पूर्वानुमान व्‍यक्‍त किया गया है, जो इनके लिए अंडे देने के लिए अनुकूल है ।

पिछले साल भी किया था नुकसान

वर्ष 2019-20 के दौरान, भारत में बड़े पैमाने पर टिड्डियों का हमला हुआ, जिसे सफलतापूर्वक नियंत्रित किया गया। 21 मई, 2019 से लेकर 17 फरवरी 2020 तक, कुल 4,03,488 हेक्टेयर क्षेत्र का उपचार किया गया और टिड्डियों को नियंत्रित किया गया। इसके साथ ही, राजस्थान और गुजरात के राज्य कृषि विभाग ने राज्य के फसल वाले क्षेत्रों में टिड्डियों पर नियंत्रण पाने के लिए तालमेल किया। वर्ष 2019-20 के दौरान, राजस्थान के 11 जिलों के 3,93,933 हेक्टेयर क्षेत्र; गुजरात के 2 जिलों के 9,505 हेक्टेयर क्षेत्र और पंजाब के 1 जिले के 50 हेक्टेयर क्षेत्र में नियंत्रण कार्य किए गए । 16-17 जनवरी 2019 को भारत का दौरा करने वाले एफएओ के सीनियर लोकास्‍ट फोरकास्टिंग ऑफिसर ने टिड्डियों को नियंत्रित करने में भारत की ओर से किए गए प्रयासों की सराहना भी की।


एक बार देती हैं 150 अंडे

एफएओ के मुताबिक, एक टिड्डी एक बार में 150 अंडे तक देती है। ऐसा कहा जाता है कि टिड्डियां बड़ी तेजी से बढ़ती हैं। इनकी पहली पीढ़ी 16 गुना, दूसरी पीढ़ी 400 गुना और तीसरी पीढ़ी 16 हजार गुना से बढ़ जाती है। आमतौर पर टिड्डियां ऐसी जगह पाई जाती हैं, जहां सालभर में 200 मिमी से कम बारिश होती है। इसलिए ये पश्चिमी अफ्रीका, ईरान और एशियाई देशों में मिलती हैं। रेगिस्तानी टिड्डियां आमतौर पर पश्चिमी अफ्रीका और भारत के बीच 1.6 करोड़ स्क्वायर किमी के क्षेत्र में रहती हैं।

अब तक कब-कब हुआ भारत में हमला

साल 1926 से 31 के दौरान टिड्डियों के हमले में 10 करोड़ रुपए की फसल बर्बाद हुई थी। इसके बाद 1940 से 1946 और 1949 से 1955 के बीच भी टिड्डियों का हमला हुआ। इसमें दोनों बार 2-2 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। 1959 से 1962 के बीच टिड्डी दल ने 50 लाख रुपए की फसल तबाह की।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 1962 के बाद टिड्डियों का कोई ऐसा हमला नहीं हुआ, जो लगातार तीन-चार साल तक चला। लेकिन, 1978 में 167 और 1993 में 172 झुंड ने हमला कर दिया था। इसमें 1978 में 2 लाख रुपए और 1993 में 7.18 लाख रुपए की फसल बर्बाद हो गई थी। 1993 के बाद भी 1998, 2002, 2005, 2007 और 2010 में भी टिड्डियों के हमले हुए थे, लेकिन ये बहुत छोटे थे। 

मानसून से पहले टिड्डी दल के अंडे भी करने होंगे नष्ट

देश के लगभग 50 जिलों में पहुंच चुके टिड्डी दलों का कहर थमता नहीं दिख रहा है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के टिड्डी वार्निंग ऑर्गेनाइजेशन (एलडब्ल्यूओ) ने चेताया है कि वर्तमान टिड्डी समस्या से भी बड़ी समस्या टिड्डियों की नई नस्ल हो सकती है।

एलडब्ल्यूओ के उपनिदेशक के एल गुर्जर बताते हैं, "एक वयस्क मादा टिड्डी अपने तीन महीने के जीवन चक्र में तीन बार 80 से 90 अंडे देती है। ये अंडे नष्ट नहीं हुए तो एक झुंड में 4 से 8 करोड़ तक टिड्डियां प्रति वर्ग किलोमीटर में दिखाई देंगी। किसानों की खरीफ की फसल भी जुलाई, अगस्त और सिंतबर कि दौरान तैयार होती है, जिसे ये टिड्डी दल पहल में चट कर सकता है। उन्होंने कहा कि खाली पड़े खेतों में मानसून चालू होते ही उनका प्रजनन बड़े पैमाने पर होने लगेगा। खाली खेतों में अंडे देने के कारण इनकी नई नस्ल परेशानी का सबब बनेगी। क्योंकि इनक अंडे देने का क्रम दो और महीने तक जारी रहेगा। जिससे खरीफ की फसल के उन्नत होने और टिड्डियों की नई पीढ़ी के बढ़ने का समय लगभग एक ही होगा।


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