सुनिए मैथिली विवाह गीत : Folk Studio एपिसोड 2

Update: 2019-03-06 09:23 GMT

लखनऊ। दहेज़ प्रथा हमारे देश में प्राचीन काल से चली आ रही है। बिहार के मिथिलांचल प्रदेश में शादियों के कुछ दिन पहले ही लड़की वालों के यहाँ होने वाले गीत-नाद में यह गीत ज़रूर गया जाता है जिसमें दहेज़ प्रथा से होने वाली दिक्कतों को कहानी के रूप में गया जाता है। यह मैथिली गीत मधुबनी जिले के जितवारपुर गांव में मशहूर कलाकार सीता देवी की बहुएं मिलकर गए रही हैं।

Jitwarpur, Bihar (Photo by Jigyasa Mishra)

ये लोक-गीत कई दशकों से मिथिलांचल संस्कृति का हिस्सा रहे हैं। गांव कनेक्शन स्टूडियो की नई पेशकश 'फ़ोक स्टूडियो' के दूसरे एपिसोड में आपको बिहार के मिथिलांचल की इस लोक-गीत से रूबरू करवाया जा रहा है जहाँ शादी के कुछ दिन पहले दहेज़ की कु-प्रथा को उजागर करता हुआ, घर की महिलाओं द्वारा ये गीत गया जाता है। "यह गीत किसी एक व्यक्ति के लिए या फ़िर किसी पर्टिकुलर वर्ग के लिए नहीं है। यह आम रूप से समाज का प्रतिबिम्ब है और कटाक्ष के रूप में गया जाता है," डॉक्टर अजय मिश्रा, मधुबनी के रहने वाले साहित्यकार, बताते हैं।

यह मैथिली गीत होने वाली दुल्हन की मां और परिवार की बाकी महिलाएं परिछन के समय गाती हैं। ज़्यादातर यह गीत मैथिल विवाह में परिछन के समय गाया जाता है साथ ही इसका संदेश समाज की गंभीर समस्याओं को उजागर करना भी है। प्रस्तुत गीत में गरीबी और दहेज प्रथा की वजह से बेटियों की शादी में होने वाली दिक्कतों की बात कही जा रही है। 

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