डेढ़ महीने एक कमरे में बंद रहे, कोई पूछने तक नहीं आया, अब दोबारा वापस नहीं जाएंगे

Update: 2020-05-21 12:00 GMT

कैमूर (बिहार)। एक कमरे में डेढ़ महीने तक बंद थे, एक बार कोई पूछने नहीं आता था। जब कभी बाहर निकलते थे तो लोग परेशान करते थे, कब तक वहां बंद रहते, इसलिए पैदल ही गाँव के लिए निकल लिए। अब अपने गाँव में तो हैं, दोबारा वापस नहीं जाएंगे, "गुड़गांव से बिहार तक पैदल आए सतेंद्र बताते हैं।

बिहार के कैमूर जिले के देवहलिया गांव में बने आईसेशन सेंटर पर अलग-अलग राज्यों से आए लोग क्वारंटाइन हैं। सबकी अपनी समस्याएं हैं, कोई गुड़गांव से आया है तो कोई हैदराबाद से। इनमें से कुछ गुड़गांव तो कुछ हैदराबाद से पैदल घर के लिए निकल गए।

कहीं रास्ते में ट्रक मिल गया तो उसपर बैठकर गए बाकी का सफर पैदल ही पूरा किया। अपने साथियों के साथ गुड़गांव से पैदल आए सतेंद्र कहते हैं, "कंपनी बंद हो चुकी थी। खाने पीने का परेशानी हो रही थी। कमरे से बाहर निकलते तो पुलिस मारती और उनसे बचते तो वहां की पब्लिक बिहारी कहकर गाली देती और भगाती। जब तक जेब में पैसा था। उस वक्त तक हम रहे। लेकिन पैसा खत्म होने लगा तो आगे जीवन कैसे चलेगा। सरकार खाना देने की बात तो करती। लेकिन वह भी हमारे पास नहीं पहुंच पता। तब तय किया कि मरना हैं तो घर पर ही मरना है यहां क्यों मरें।"

मुंबई, सूरत, दिल्ली एनसीआर जैसे महानगरों में वर्षों से रहकर अपना गुजर-बसर करने वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी मजदूरों के रिवर्स माइग्रेशन का सिलसिला लगातार जारी है। लॉकडाउन तीन और चार में शहर से आने वाले इन प्रवासी मजदूरों की संख्या और भी बढ़ी है। 

आगे सामान्य स्थिति होने पर जब उनसे वापस जाने की बात पर वो कहते हैं, "गांव में खेती, मजदूरी कर लिया जाएगा। मगर वापस नहीं जाना है।"

उन्हीं के साथ गुड़गांव से आए रामनिवास सिंह कहते हैं कि गांव में भी रोजगार के अपार संभवनाएं हैं। बस सरकार को ध्यान देने की जरूरत है। आना तो नहीं था मगर घर में दो लोग बीमार थे। उनको देखने वाला कोई नहीं था। इसको देखते हुए आना पड़ा। वापस जाने की इच्छा नहीं है। लेकिन जरूरत कुछ भी कराने को मजबूर कर देती है।"

हैदराबाद से अपने घर वापस आए धनु यादव कहते हैं, "जब हम अपने आस पास करोना के मरीज के बारे में सुनते थे तो डर लगने लगा की हमें भी न हो जाए। 12 हजार रुपए महीनें कमाते हैं। अप्रैल का पैसा कंपनी ने दिया नहीं हैं।"

इन लोगों से यह पूछा गया कि शहर को छोड़कर आप गांव वापस आ गए हैं। जबकि गांव में इलाज की कोई सुविधा नहीं हैं। वे कहते है यह पता है। लेकिन हमें अपने गांव वापस आना था।

ये लोगो आईसोलेसन सेंटर में रह तो रहें है। लेकिन इनका खाना घर से आता है। नाश्ता और पानी की व्यवस्था गांव के समाज सेवी लोगों के माध्यम से हो रही है। सरकार ने केवल सरकारी कमरा दिया है। उसके अलावा कुछ नहीं। वहीं दूसरी तरफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यह घोषणा की थी इनके भोजन से लेकर सभी जरूरत की वस्तु सरकार मुहैया करा रही है।

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