'अब कोई नहीं कहता मुश्किल है गाँव की छोरी का माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना, टेक्निकल स्कूवा डाइविंग में भी बना दिया है विश्व रिकॉर्ड '

माउंट एवेरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली मध्य प्रदेश की पहली महिला मेघा परमार के नाम टेक्निकल स्कूबा डाइविंग में विश्व रिकॉर्ड भी है। ज़िंदगी में कई मुश्किल दौर को पार कर दुनिया के सबसे ऊँचे शिखर पर कदम रखने वाली मेघा ने गाँव पॉडकास्ट पर कई नई बातों का खुलासा किया है।

Update: 2024-04-13 12:51 GMT

आपका बचपन कैसा था?

बचपन मेरा बहुत उदंड रहा है, इमली के पेड़ पर चढ़कर डाली पर झूलना और फिर डाली के टूट जाने और फिर धम से नीचे गिरना, मम्मी के पास रोते-रोते जाना; क्योंकि मैं जिस बैकग्राउंड से आती हूँ वहाँ हम सिर्फ 14 साल तक ही खेल पाते हैं, उसके बाद हमको खेलने भी नहीं देते, लोग कहते थे 'अच्छो लगे छोरी बड़ी हो गयी और खेले' तो खेलने का भी बहुत कम समय होता है।

तो मेरे अलावा मेरे भाई लोग ही हम उम्र थे बाकी लड़कियाँ तो थी ही नहीं। बचपन में बहुत मस्ती करी है, पढ़ने में बहुत कमजोर रही हूँ, तीन का पहाड़ा याद ही नहीं होता था। गाँव में स्कूल पाँचवी कक्षा तक था उसके बाद पढ़ने के लिए मामा के यहाँ गयी। मध्य प्रदेश में एक जिला है सीहोर और वहाँ का एक गाँव है भोजनगर, वही मेरा गाँव है, मेरे पापा किसान हैं।


मेरा बाकी का बचपन और किशोर अवस्था मामा जी के घर पर बीता और जब हम दूसरों के घर में रहते हैं तो जीवन थोड़ा कठिन हो जाता है, मेरे साथ भी यही हुआ। फिर थोड़े और बड़े हो गए तो चीज़े और समझ आने लगी तो कठनाईयाँ और इमोशनली बढ़ गईं। फिर 12th करने के बाद में अपने गाँव वापस आ गई थी।

किन कठिनाइयों का सामना आपको करना पड़ा?

मैं जिस परिवेश से आती हूँ वहाँ जब बच्चे दो-दो साल के होते हैं तो उनकी सगाई हो जाती है और मैं भी उनमे से एक हूँ। ऐसे नहीं होता की रिंग सेरेमनी नहीं होती, बस नारियल यहाँ से वहा जाता है और सगाई हो जाती है। अगर थोड़ी ज़मीन जायदाद है और लड़की 18 की हो गयी तो हम शादी कर देंगे ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ।

लड़की को बारहवीं भी इसीलिए करवाते थे ताकि सरकारी कागज़ तैयार करने में दिकत न हो और लड़की बालिग है ये भी दिखा सके। सबकी शादी ऐसी ही होती थी मेरी भी ऐसी ही होनी थी। तो हुआ ये की जब मेरी लगन निकली उस समय मेरे भी सपने ऐसे ही थे कि अब तो मेरी शादी कुछ दिनों में होने वाली है; बस इतना मिल जाए की सामने वाले के घर पर मुझे राख से बर्तन न मांजने पड़े या बस फ्रीज़ हो वहाँ, बस मुझे इतना ही चाहिए था।

ऐसे परिवेश में आगे की पढ़ाई कैसे पूरी की?

मेरे बड़े पापा मेरे भाइयों को बार-बार शहर छोड़कर आते थे और वो वापस गाँव भाग आते थे, कारण ये था की उनको शहर का खाना पसंद नहीं आ रहा था। फिर बड़े पापा ने देखा की भैया के रूम के कुछ दूर पर सामने एक गर्ल्स कॉलेज था तो उनको मेरा ख्याल आया की मेघा ने अभी बारहवीं करी है और यहाँ लड़कियों का कॉलेज है; कोई दिक्कत नहीं होगी तो एक काम करते हैं इसकी शादी होल्ड पर डाल देते हैं तो ये भी छोरियों के कॉलेज में ग्रेजुएशन कर लेगी और लड़को की रोटी भी बन जाएगी।

भले मेरे आगे पढ़ने का कारण भाइयों के लिए रोटी बनाना रहा हो; लेकिन और क्या वजह थी जो मुझे आगे पढ़ने देती। मैं तो हर लड़की से ये ही कहती हूँ कि पढ़ाई करो भले धक्का मार के पढ़ो, लेकिन कम नंबर लाओ लेकिन पढ़ो और खासकर अगर आप गाँव के परिवेश से हैं तो ज़रूर आगे पढ़ना चाहिए।


जब पहली बार बाहर की हवा लगी तो मैंने भी कुछ गलती कर दी थी। मैंने फ़र्ज़ी फेसबुक अकाउंट बनाये थे; फिर एक बार मैंने अपने पापा के पास से 250 रूपए चोरी किये , जिसे लेकर मैं अपनी हॉस्टल की लड़कियों के साथ वाटर पार्क गयी । गाँव के एक भैया ने देख लिया की इनकी लड़की पानी में मस्ती कर रही है, फिर मुझे घर ले जाया गया और बहुत मारा था।

पापा को सब लोग बोल रहे थे कि इसको जल्दी से विदा करो आज वाटर पार्क गयी है; कल पता नहीं कहा कहाँ जाएगी। मेरे पापा ने मुझे बोला की वाटर पार्क जाने में बुराई नहीं है, लेकिन तुम बता देती मुझे की तू कहा है तो मैं इन सब को बता देता की मुझे पता था। उस समय मुझे समझ आया की जो काम बताने में हमको शर्म आये वो काम गलत है।

कब ऐसा लगा की आपको पहाड़ चढ़ना है?

मैं भी गयी थी एसआई (सब - इंस्पेक्टर ) की तैयारी करने, लेकिन मेरे कुछ पल्ले नहीं पड़ा और मुझे लगा की इसके मैं लायक नहीं हूँ और मुझे पता था की अगर मैं तैयारी करती तो कांस्टेबल भी नहीं बन पाती। लेकिन आज जब कोई बच्चा जब सरकारी परीक्षा की तैयारी करता है तो वो ज़रूर पढ़ता है की मध्य प्रदेश की पहली लड़की जिसने माउंट एवेरेस्ट पर चढाई की तो वो मेरा नाम पढ़ता है।

मुझमे लाख कमी है लेकिन मेरे पूरे व्यक्तित्व की एक ताक़त है की मैं बहुत ज़िद्दी हूँ। बचपन में अगर मेरी मम्मी किसी खिलौने के लिए मुझे मना कर देती थी या मुझे मारती थी तो भी मैं खिलौना नहीं छोड़ती थी। तब मेरी मम्मी ये ही कहती थी कि 'या छोरी बहुत ज़िद्दी है'। ये आदत मेरे अंदर बचपन से ही है; लेकिन पहले वो मेरे लिए श्राप था लेकिन अब मेरी वो ताक़त बन चुका है।


मतलब अगर मैंने कोई लक्ष्य तय कर लिया; तो मुझे उस रास्ते से कोई नहीं हटा सकता वो मेरे अंदर घडी की सुई की तरह अटक जायेगा जब तक मैं उसे पा नहीं लेती। जब मैंने पहली बार इंडिया को मालदीव में रिप्रेजेंट किया और जब मैं वापस आयी तो मेरी टीचर ने मुझसे कहा - तुम बाकी लड़कियों से तो अलग हो, कुछ तो बात है तुममें, तो वो 'कुछ' मैं हमेशा खोजती रहती थी, जो मुझे मिल नहीं रहा था।

मैंने इस दौरान बहुत सी छोटी नौकरियाँ की; एक जगह इनपुट पर काम करती थी तो वहाँ मुझे बहुत सारे अखबार पढ़ने होते थे। वहाँ मैंने एक अखबार में पढ़ा की मध्य प्रदेश के दो लड़कों ने माउंट एवेरेस्ट समिट किया। फिर मैंने गूगल सर्च किया और मुझे पता चला की 32 साल पहले बछेंद्री पाल मैम ने ये कारनामा किया, लेकिन मध्य प्रदेश की किसी लड़की ने ये अभी तक नहीं किया, फिर मुझे ऐसा लगा की वो लड़की मैं क्यों नहीं हो सकती? तभी मैंने ये ठान लिया, लेकिन ये करना इतना आसान नहीं था।

पहाड़ चढ़ने के अपने सफ़र के बारे में बताए?

मैंने जब पता किया की भारत में पाँच इंस्टीट्यूट हैं जो पहाड़ चढ़ने की ट्रेनिंग देते हैं, मैंने वहाँ जा कर कोर्स किया। कोर्स करने के बाद पता चला की माउंट एवेरेस्ट चढ़ने के लिए 25 लाख की राशि लगती है। उस राशि को जमा करने के लिए बहुत पापड़ बेले। अब 25 लाख जो कभी देखे नहीं उसे जमा कैसे करें। फिर मुझे लगा की आपकी मार्केटिंग कोई नहीं करेगा वो आपको खुद करनी होगी। फिर अख़बार उठाए उसमें देखा कि किसने अख़बार के प्रथम पृष्ठ पर इश्तेहार दिया है, मतलब ये लोग पैसे वाले हैं और इन सबको अपनी ब्रांडिंग करनी हैं, तो उन सबके 500 नंबर निकाले और बहुत लोगों से न सुनने के बाद मुझे स्पॉन्सरशिप मिल ही गई।

अब नेपाल की अलग ही चुनौतियाँ थी। 12 दिन में हम लोग बेस कैंप पहुँचते हैं: जहाँ दिल बहुत तेज़ धड़कता है जैसे किसी 16 मंज़िल की इमारत पर करता है। फिर बेस कैंप से कैंप जाने के लिए आपको 12 घंटे लगेंगे। बेस कैंप में आप खाना खा सकते हो; उसके बाद खाना नहीं खा सकते, क्योंकि शरीर ऑक्सीजन दिमाग को देगा लेकिन पचने नहीं देगा। वहाँ जाने के बाद धीरे धीरे आपके सेल्स मरने लगते हैं। बेस कैंप की हाइट 5345 मीटर है ,जहाँ आपको चढ़ के जाना है। दूसरी स्पोर्ट्स में ऐसा रहता है कि या तो आप हारते हो या तो आप जीत जाते हो, लेकिन एडवेंचर स्पोर्ट्स और पहाड़ चढ़ने में या तो आप मरते हो या ज़िंदा रहते हो।

बेस कैंप के बाद हम लोग रात को क्लाइम्बिंग करते हैं बेस टॉर्च लगा कर। उस समय स्नो हार्ड होती है, रात में एवलांच ज़्यादा नहीं होते, लेकिन दिन में एवलांच बहुत आते हैं। एक महिला को क्लाइम्बिंग में ज़्यादा दिक़्क़त होती है; पुरुषों की तुलना में, हार्मोन्स का संतुलन बिलकुल बिगड़ जाता है। हम लोगों का पीरियड्स यहाँ पाँच दिन आता है; लेकिन वहाँ दो महीने लगातार आ सकता है।


हम लोगों के ब्लड का कलर पीला हो जाता है। सूट की वजह से हम लोग कम पानी पीते हैं; इसकी वजह से डिहाइड्रेशन का खतरा रहता है होठ सफ़ेद पड़ जाते है। हम बर्फ पिघलाते हैं पानी पीते हैं, सपने आना बंद हो जाते हैं; क्योंकि दिमाग के पास ऑक्सीजन नहीं पहुँच पाती। खून की उल्टियां होती हैं, पेट का एसिड बाहर आ जाता है। बेस कैंप से अगले कैंप 1 तक हेलीकॉप्टर से रेस्क्यू हो सकता है इसके बाद नहीं होता ,इसलिए आधे लोग यही से वापस हो जाते हैं।

कैंप एक के बाद हम कैंप दो पहुँचते हैं, मतलब 6500 मीटर जहाँ और लोगों की डेथ शुरू हो जाती है। चेहरे से परत निकलने लगती है, चाहे मैं आज 29 साल की हूँ, लेकिन मेरी स्किन 10 साल बड़ी है; क्योंकि इसकी इतनी लेयर्स निकल चुकी है। इसीलिए पहाड़ चढ़ने वाले लोगो को झुर्रियां आती हैं उनके घुटने जल्दी ख़राब हो जाते है वो जल्दी बूढ़े होते हैं।

कैंप दो के बाद कैंप तीन आता है जिसकी हाइट होती है 7900 मीटर, जहाँ हवा की रफ़्तार होगी 180 KMH। आप उड़ सकते हैं। आपके टेंट भी उड़ सकते हैं, तो कई बार हम बहुत से लोग एक ही जगह चिपक के बैठ जाते हैं। वहाँ पर तापमान -47 शुरू हो जाता है। इस दौरान हम सप्लीमेंट ऑक्सीजन लेते हैं; और यही वो जगह है जहाँ आपने सुना होगा की माउंट एवरेस्ट पर गार्बेज है; तो ये गार्बेज डेड बॉडी का गार्बेज है।

अगर मैं वहाँ मरती हूँ और आप मुझे 25 साल बाद देखोगे तो मैं आपको वैसी ही दिखूंगी बस थोड़ी सी सफ़ेद हो जाऊँगी। माऊंट एवरेस्ट पर 350 से ज़्यादा डेड बॉडी का गार्बेज है; कई बार आपको उनके बगल से क्रॉस करना होता है, तो कई बार आपको उनके ऊपर से गुजरना पड़ता है। वो समय सबसे कठिन समय होता है, तब लगता है, यार ये भी तो ये ही करने आया था, जो मैं करने आई हूँ।

मेघा परमार अपने पहले प्रयास में सफल नहीं हो पाई थी और अपने लक्ष्य से सिर्फ 700 मीटर दूर होते हुए उन्हें वापस आना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने अगले प्रयास में वो सफल हुई; लेकिन वो यहाँ भी नहीं रुकी,उसके बाद उन्होंने टेक्निकल स्कूबा डाइविंग में भी कीर्तिमान रचा और बना दिया गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड, जिसके बारे में उन्होंने गाँव पॉडकास्ट में खुल कर बात की है।

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