अब तक 1000 से भी अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं वर्षा

कोरोना महामारी के दौरान बहुत से लोगों ने अपने किसी न किसी को हमेशा के लिए खो दिया। उस समय जहाँ कोरोना वायरस का ख़तरा पग पग पर था, वहीँ कुछ लोग ऐसे भी थे जो अपनी परवाह किये बगैर दूसरों की मदद में जुटे रहे। ऐसी ही एक शख़्स हैं वर्षा वर्मा।

Update: 2024-02-09 06:00 GMT

वर्षा वर्मा उस समय सुर्ख़ियों में आईं जब कोरोना की दूसरी लहर में वो अस्पतालों के बाहर एक बोर्ड लेकर खड़ी रहती थीं; और बोर्ड पर लिखा रहता था नि:शुल्क शव वाहन।

कोरोना के उस दौर में जब लोग अपने घरों से नहीं निकल रहे थे; हर तरफ सन्नाटा था, सड़कें खाली थीं और डर का माहौल था, तब किसी अपने का अंतिम संस्कार करना भी आसान नहीं था। उस समय बड़ी समस्या थी कि लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार कैसे करें, कैसे बाहर निकले? कुछ ऐसे लोग भी महामारी की भेंट चढ़ गए जिनका कोई नहीं था, तब उनके अंतिम संस्कार की ज़िम्मेदारी वर्षा वर्मा ने अपने कंधों पर उठायी।

वर्षा गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "लोग कहते हैं कि तुम्हारे खून में ही समाज सेवा हैं; मैंने बहुत सारी जॉब्स भी की और भी काफी सारी चीज़ें मैंने की, उनमें बहुत से रोचक पड़ाव भी आए, बावजूद उसके मेरा मन सिर्फ समाज सेवा में ही लगता है, इसका बीज भी मेरे परिवार से ही आया और 14 साल की उम्र में मैं छोटी-छोटी सेवाओं में लगी रहती थी।"

वो आगे कहती हैं, " जिस इंसान को आप नहीं जानते, जिससे दूर-दूर तक आपका कोई रिश्ता नहीं है, जब आप उसके लिए कुछ करते हैं तो एक अलग तरह का सुकून मिलता हैं; मान लीजिए जो बुजुर्ग हैं उनका इलाज़ हमने करवाया और वो ठीक हो गए तो हम उनको शेल्टर होम में छोड़ देते हैं; दूसरा, सेवा के बाद भी वो ठीक नहीं हो पाते और उनकी डेथ हो जाती है तो उनका हम पूरे सम्मान के साथ दाह संस्कार करवाते हैं। "


कोरोना संकट में जब अपने भी मरीज से दूर-दूर रहते थे, वर्षा लोगों की मदद के लिए दिन भर श्मशान और अस्पतालों का चक्कर लगाती थीं। इनके इस फैसले का असर उनके परिवार पर कैसे पड़ा, इसके बारे में वो बताती हैं, "मैंने जब ये काम शुरू किया तो करीब दस दिनों तक मेरी माँ ने मुझसे बात नहीं की थी, उन्हें लग रहा था कि शायद इस काम की वजह से वो मुझे खो देंगी; ऐसा ही मेरे हस्बैंड के साथ हुआ, लेकिन जब उन्हें लगा कि मैं मानने वाली नहीं हूँ, तो अब वो मेरा ख्याल रखते हैं और इम्युनिटी बूस्टर देते रहते हैं, पीपीई किट, लंच सबका ध्यान रखते हैं, अब मेरी मम्मी भी नॉर्मल हो गई हैं, मेरी बेटी शुरू से मेरे साथ थी।"

अपनी समाज सेवा की वजह से सोसाइटी और लोगों के विरोध को लेकर वर्षा बताती हैं, " कोरोना के समय की बात हैं हम सब डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खाना खा रहे थे, मेरे पति ने बहुत संकोच के साथ मुझसे कहा कि अपार्टमेंट में तुम्हे बायकाट करने की बात चल रही है और भगवान न करें की तुम्हारी वजह से अपार्टमेंट में पहला कोरोना का केस आ जाए या फिर हमारी फैमिली में किसी को न हो; लोग अपार्टमेंट में तुम्हारी एंट्री बैन करना चाहते हैं, मैंने साफ़ बोला की हम काम तो नहीं छोड़ पाएँगे लेकिन अगर ज़्यादा समस्या हैं तो आप और बिटिया यहाँ रह लेना मैं नगर निगम के रेन बसेरे में रह लूँगी।"

अभी भी वर्षा वर्मा लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करती हैं। हर दिन उनके पास फोन आते रहते हैं। वो कहती हैं, "मैं जब कोई भी बॉडी क्रिमेट करती हूँ तो उसके पैर छूती हूँ, अंत समय उसे कोई लावारिस नहीं कह पाता है, एक कंधा ऐसा था जो उनका वारिस बन गया।"

वर्षा वर्मा के साथ गाँव पॉडकास्ट में आप और भी बातें सुन सकते हैं जहाँ उन्होंने अपने जीवन के कई पड़ावों के बारें में बात की है। साथ ही उन पड़ावों से जुड़ी संघर्षों की कहानियाँ भी उन्होंने गाँव कनेक्शन के साथ साझा की है।  

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