लखनऊ। अप्रैल के महीने में तापमान बढ़ने से पशुओं के शरीर में पानी की कमी, भूख का कम लगना जैसे लक्षण दिखायी देने लगते हैं। इससे उनकी उत्पादकता पर भी प्रभाव पड़ता है। इस महीने पशुओं का खास खयाल रखना चाहिए।
भार ढोने वाले पशुओं को दोपहर से शाम चार बजे तक छाया वाले हवादार स्थान पर आराम करने देना चाहिए। पीने के पानी पर विशेष ध्यान देना चाहिए। पानी की नांद साफ रखनी चाहिए और पशुओं को दिन में कम से कम चार बार पानी पिलाना चाहिए। गाभिन पशुओं को अतिरिक्त आहार देना चाहिए।
इस समय थनैला रोग होने की संभावना बढ़ जाती है, इसलिए इसकी पहचान कर रोग निदान करें। मेमनों को फड़किया और भेड़ में चेचक का टीका भी लगवाएं। चारागाहों में घास न के बराबर होती है, ऐसे में लवण विशेषकर फॉस्फोरस की कमी के कारण पशुओं में पाइका रोग के लक्षण नजर आने लगते हैं, इसलिए चारे में लवण मिश्रण जरूर मिलाएं।
सामुदायिक प्रयासों से सुनिश्चित करें कि चारागाहों के रास्तों और जहां से पशुओं का आना जाना होता है, वहां पर मृत पशु, हड्डी, चमड़ा, कंकाल आदि न इकट्ठा हो। ऐसे स्थानों की तारबंदी कर पशुओं को जाने से रोके, नहीं तो मृत पशुओं के अवशेषों को खाने व चबाने से प्राण घातक रोग बोचुलिज्म हो सकता है, जिसका को इलाज नहीं है।
स्रोत - पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार