गुलबर्ग मामला: दोषियों को 17 जून को सुनाई जाएगी सजा

Update: 2016-06-13 05:30 GMT
गाँव कनेक्शन

अहमदाबाद (भाषा)। विशेष एसआईटी अदालत ने आज कहा कि वह गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार मामले के 24 दोषियों को सजा शुक्रवार 17 जून को सुनाएगी।

गुजरात में वर्ष 2002 में गोधरा दंगों के दौरान हुए गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार मामले में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसन जाफरी सहित 69 व्यक्ति मारे गए थे।

विशेष न्यायाधीश पीबी देसाई की अदालत ने कहा कि दोषियों को सजा की मात्रा के बारे में 17 जून को ऐलान किया जाएगा। इससे पहले अभियोजन पक्ष ने सभी 24 दोषियों द्वारा जेल में बिताई गई अवधि का ब्यौरा सौंपा जो कि अदालत ने मांगा था। अदालत ने दो जून को इस मामले में हत्या और अन्य अपराधों के लिए 11 लोगों को दोषी ठहराया जबकि विहिप नेता अतुल वैद्य सहित 13 अन्य पर कम गंभीर अपराधों के आरोप लगाए। साथ ही अदालत ने मामले में 36 अन्य लोगों को बरी कर दिया।

दोनों पक्षों, बचाव पक्ष के वकीलों और पीड़ितों के वकीलों की दलीलों पर विचार करने के बाद पिछले सप्ताह शुक्रवार को अदालत ने सजा की मात्रा पर जिरह पूरी की थी। जिरह के दौरान, विशेष लोक अभियोजक और उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल के लिए वकील आरसी कोडेकर ने अदालत से कहा कि सभी 24 दोषियों को मृत्युदंड या मौत होते तक जेल में रहने की सजा से कम दंड नहीं दिया जाना चाहिए।

कोडेकर ने कहा कि सभी 24 दोषी भादंवि की धारा 149 के तहत अपराध के दोषी पाए गए हैं और सजा का ऐलान करते समय इस बात को ध्यान में रखा जाना जरुरी है। धारा 149 में कहा गया है कि किसी समूह द्वारा अपराध को अंजाम दिए जाते समय उस समूह का सदस्य हर व्यक्ति उस अपराध का दोषी है। कोडेकर ने अदालत में कहा कि अपराध का तरीका क्रूर, निर्मम और अमानवीय था। पीड़ितों को जिंदा जलाया गया और अपराध को बिना किसी उकसावे के अंजाम दिया गया और महिलाएं और बच्चे असहाय थे।

उन्होंने सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि गुलबर्ग सोसायटी के निवासियों को मारने के इस जघन्यकृत्य में शामिल लोग या तो उनके जानकार थे या उनके पड़ोसी थे, न कि दूसरे देश से आए आतंकवादी थे। पीड़ितों के वकील एसएम वोरा ने भी आरोपियों के लिए अधिकतम सजा की मांग करते हुए दलील दी कि हर अपराध के लिए सजा साथ-साथ नहीं चलनी चाहिए ताकि दोषी अपना पूरा जीवन जेल में बिताएं।

बहरहाल, आरोपियों के वकील अभय भारद्वाज ने अपनी जिरह के दौरान अधिकतम सजा या मृत्युदंड की मांग खारिज करते हुए कहा था कि घटना पर्याप्त उकसावे के बाद हुई थी। पूर्व में भारद्वाज ने अदालत में कहा था, ‘‘चूंकि षड्यंत्र की बात साबित नहीं हुई है इसलिए आंशिक रुप से भरोसे योग्य सबूत के आधार पर अदालत से मृत्युदंड की मांग करना सही नहीं है।''

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