हाथों में परोसा जा रहा मिड-डे मील

Update: 2016-07-19 05:30 GMT
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लखनऊ। मिड-डे-मील का मुद्दा किसी न किसी वजह से विवादों में रहता है और बच्चों को किसी न किसी चीज के लिए बस इंतजार ही करना पड़ता है।

 कभी खाना स्कूलों में पहुंचता ही नहीं और जहां पहुंचता है वहां उसकी गुणवत्ता सवालों के घेरे में रहती है। दूध की बाट तो बच्चे पहले से ही जोह रहे हैं और फल के लिए भी बच्चों को खासा इंतजार करना पड़ता है। बच्चों को अब इंतजार है एमडीएम खाने के लिए बर्तन का, जिसके मिलने के बारे में वह पिछले वर्ष से सुनते आ रहे हैं, लेकिन अब तक बच्चों को खाना हाथ में लेकर खाना पड़ रहा है।  

गौरतलब है कि स्कूलों में बच्चों को एमडीएम परोसने के लिए खांचेदार थाली, गिलास और चम्मच देने की योजना के विषय में शासनादेश जारी किया जा चुका है। इसके लिए लगभग 50 करोड़ रुपए का बजट भी जारी किया गया था, लेकिन अब तक इस योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया गया है।

एमडीएम निदेशक श्रद्धा मिश्रा इस बारे में बात करना नहीं चाहतीं, लेकिन पिछले दिनों शहर में आयोजित हुए मलाला दिवस के अवसर पर राज्यपाल रामनाईक ने भी यह वादा किया था कि राज्य सरकार जल्द ही इस योजना को लागू करेगी। 

इस सम्बन्ध में आदर्श जूनियर हाईस्कूल, काकोरी में कक्षा छह में पढ़ने वाली पारुल (11 वर्ष) कहती हैं, “एमडीएम खाने के लिए बर्तन न होने के चलते मुझे हाथ में रोटी लेकर खानी पड़ती है और सब्जी किसी अन्य छात्र के साथ किसी डिब्बे में खानी पड़ती है।

मैं पहले एक-दो बार प्याली और प्लेट स्कूल लेकर आयी लेकिन खो जाते हैं। मेरे पिता कमल किशोर चौरसिया मजदूरी करते हैं इसलिए हर बार तो वह बर्तन लाकर नहीं दे सकते हैं। हम लोगों को स्टील की प्लेट और गिलास का इंतजार है।”

रिपोर्टर- मीनल टिंगल 

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