हजारों को बेरोजगार कर देगी छोटी लाइन

Update: 2016-05-14 05:30 GMT
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लखनऊ। पूर्वोत्तर रेलवे के ऐशबाग-सीतापुर रूट पर 15 मई से ट्रेनों का संचालन ठप हो जाएगा। रोजाना इस रूट की 11 जोड़ी ट्रेनों में सफर करने वाले हजारों यात्रियों को अब बस या अपने निजी वाहन से सफर करना पड़ेगा। इसकी वजह से लखनऊ- सीतापुर राजमार्ग पर ट्रैफिक का दबाव भी बढ़ेगा।  

ऐशबाग से सीतापुर तक बड़ी लाइन बनाने का कार्य होने की वजह से इस रूट को 15 मई से पूर्णतया बंद कर दिया जाएगा जिसकी वजह से इन रूट पर रेलगाड़ी के जरिए रोजाना यात्रा करने के अलावा विभिन्न कार्य करने वाले लोगों की समस्या बढ़ने वाली है। इस रूट के सभी 11 स्टेशनों पर यात्रियों के आवागमन से हजारों लोगों को रोजगार प्राप्त होता है। रेलखण्ड बंद होने से यहां पर कार्य करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे जिन्हें अपनी जीवनचर्या चलाने के लिये नया रोजगार ढूंढना पड़ेगा। इटौंजा में रहने वाली 22 वर्षीय नित्या बताती है कि छोटी लाइन की ट्रेन बंद होने से अब मुझे अपने कोचिंग बंद करनी होगी, क्योंकि हमारे घर के लोग बस का किराया वाहन नहीं कर पायेंगे। जब आठ महीने बाद ये लाइन पुनः शुरू होगी तब कहीं जाकर हम आगे की पढ़ाई के बारे में सोच पाऊंगी।

पहले चरण में ऐशबाग से सीतापुर, दूसरे चरण में सीतापुर से मैलानी और तीसरे चरण में मैलानी से पीलीभीत तक 262 किमी. में बड़ी लाइन बनाने का निर्माण कार्य किया जाएगा। ऐशबाग से सीतापुर तक 80 किमी. के बदलाव के लिए डालीगंज सहित बीच के सभी स्टेशनों पर नए भवन का निर्माण कार्य शुरू किया जा चुका है। सिंधौली में रहने वाले 20 वर्षीय शुभम  बख्शी तालाब में ट्रिपल सी कम्प्यूटर कोर्स करने प्रतिदिन आते हैं। उनका कहना है कि छोटी लाइन की ट्रेन बंद हो जाने से हम विद्यार्थियों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। हम समय से कोचिंग नहीं पहुंच पायेंगे, अगर खुद के साधन से जायेंगे तो महंगा बहुत पड़ेगा। 185 रुपए की एमएसटी से पूरे एक महीने की यात्रा ट्रेन से कर लेते है जो अब 1000 रुपये हर महीने किराये पर खर्च करना पड़ेगा। 

रूट के सभी स्टेशनों की कैन्टीन होगी बंद

ऐशबाग से सीतापुर के बीच दस स्टेशनों पर सैकड़ों की संख्या में लोग कैन्टीन, ट्राली, ठेला पर सामान बेचते हैं। इसके अलावा ट्रेनों के अन्दर चना, समोसा और पानी की पाउच बेचने वाले सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलता है लेकिन रविवार से इस रूट की ट्रेन बंद होने से इन सभी लोगों का रोजगार के लिये कोई नई जगह तलाशने की जरूरत पड़ेगी। ऐशबाग से सीतापुर के बीच दस स्टेशनों पर जो कैन्टीन और ट्राली हैं वो 2018 तक एलॉट की गयी हैं। एक साल बाद कार्य पूरा होने के बाद ये कैन्टीन और ट्राली दोबारा खोली जा सकती हैं। मेहबुल्लापुर स्टेशन पर कैन्टीन पर कार्य करने वाले शैलेन्द्र कुमार बताते हैं कि मैं पिछले पांच वर्षों से इसी स्टेशन पर कार्य कर रहा हूं। बड़ी लाइन बनने की वजह से स्टेशन को बन्द किया जा रहा है जिसकी वजह से हमारी सामान की ट्राली भी बन्द हो जायेगी। कैन्टीन बन्द होने से स्टेशन पर कार्य करने वाले सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गये हैं। 

स्टैन्ड पर पसरेगा सन्नाटा   

इस रूट पर रोजाना लाखों लोग सफर करते हैं। जो लोग लखनऊ से सीतापुर के रूट पर रोजाना अपडाउन करते हैं वो यात्री अपने साधन को स्टैंड पर खड़े करते हैं। स्टेशन बन्द होने से यात्रियों का आवागमन यहां बन्द हो जायेगा जिसकी वजह से यहा पर बने स्टैन्डों पर सन्नाटा परसने वाला है। बीकेटी स्टेशन के पार्किंग स्टैन्ड के संचालक सर्वेश कुमार बताते हैं कि यह रूट बन्द होने से स्टेशन पर आने वाले लोगों का आवागमन बंद हो जायेगा। आवागमन बंद होने से गाड़ी न होने से स्टैंडों पर सन्नाटा पसरा रहेगा। जब तक बड़ी लाइन बनकर तैयान नही हो जाती तब तक स्टैंड बन्द ही रहेंगे। 

छोटे दूध व्यापारियों का आवागमन होगा बंद 

अटरिया में रहने वाले 35 वर्षीय अमरीश जो रोज ट्रेन से दूध लेकर लखनऊ आते है बताते है छोटी लाइन बंद हो जाने से हम दूधियों का आवागमन बाधित हो जायेगा। जो कम दूध लेकर हमारे सहयोगी साथी बने थे,अब उनके बिछड़ने का डर सता रहा है। जो यात्रा 165 रुपये की एम.एस.टी. से हम पूरे एक महीने करते है वह अब महीने में 5000 हजार रुपये खर्च तक आ सकता है। ट्रेन बंद हो जाने से अब डाले के जरिये सभी दूधहा दूध लेकर शहर आयेगे। यह योजना हम सभी दूधहा भाईयों ने मिलकर बनायी है। 

अटरिया में ही रहने वाले 45 वर्षीय विश्वनाथ जो की यही काम करते है  छोटी लाइन बंद होने से बहुत दुखी हैं,वो छोटी जोत के किसान है। उनके खेत में जो सब्जियां प्रतिदिन निकलती थी उन्हें वो दस रूपये के किराये में लखनऊ बेचने चले आते है और शाम तक घर वापस भी चले जाते है। कम किराया और सब्जी को रेट अच्छा मिलने से इनकी रोजमर्या की गृहस्थी अच्छे से चल रही थी। लेकिन इस लाइन के बन्द होने से ये बस के जरिये अपनी सब्जी शहर बेचने नही आ पायेगे क्योकि जितने की सब्जी होगी उसका आधा पैसा तो किराये में ही चला जायेगा। इस वजह से इन्होने गांव के बाजार में ही सब्जी बेचने का निर्णय लिया है। अब उनके दैनिक खर्चे कैसे चलेंगे,ये सोचकर वो परेशान है,एक मौसम की मार से परेशान,दूसरी छोटी लाइन बंद से परेशान।

 रिपोर्टर - अविनाश सिंह/नीतू सिंह

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