जून महीने से करें हरी खाद की बुवाई

Update: 2016-05-26 05:30 GMT
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लखनऊ। हरी खाद उस सहायक फसल को कहते हैं, जिसकी खेती मिट्टी में पोषक तत्त्वों को बढ़ाने और उसमें जैविक पदाथों की पूर्ति करने के लिए की जाती है। जून महीने में ढैंचा और सनई जैसी हरी खाद की बुवाई की जाती है। सनई अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक मनोज कुमार त्रिपाठी हरी खाद से होने वाले फायदे के बारे में बताते हैं, “इस समय खेत में सनई या फिर ढैंचा लगा देने से किसानों को अगली फसल के लिए अच्छी हरी खाद मिल जाती है। इनकी जड़ों में राइजोबियम नाम का जीवाणु होता है, जो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाता है।”

ढैंचा : यह एक दलहनी फसल होती है। यह सभी प्रकार के जलवायु और मिट्टी में विकसित हो जाती है। यह फसल एक सप्ताह में 60 सेमी. तक जल भराव को भी सहन कर लेती है। ऐसे में ढैंचा के तने से जड़ निकलकर मिट्टी में पकड़ मजबूत बना लेती है। जो उसे तेज हवा चलने पर भी गिरने नहीं देती। अंकुरित होने के बाद यह सूखे को सहन करने की क्षमता रखती है। ये क्षारीय और लवणीय मृदाओं में भी अच्छी तरह से तैयार हो जाती है। ऊसर में ढैंचे से 45 दिन में 20-25 टन हरी खाद और 85-100 किलो तक नाइट्रोजन मिल जाता है। धान रोपाई के पहले ढैंचा को पलटने से खरपतवार भी नष्ट हो जाते हैं। 

सनई: यह अच्छे जल निकास वाली बलुई या दोमट मिट्टी के लिए सही हरी खाद की फसल होती है। इसकी बुवाई मई से जुलाई तक बारिश शुरू होने के बाद की जा सकती है। यह जल्दी विकसित होने वाली फसल होती है जो खरपतवार को नष्ट कर देती है। बुवाई के 40-50 दिन बाद इसको खेत में जुताई करके पलट देते हैं। सनई की फसल से एक हेक्टेयर में 20-30 टन तक हरी खाद मिल जाती है। किस्में: ढैंचा की नरेन्द्र ढैंचा-1, पंत ढैंचा-1 और सनई की अंकुर, स्वास्तिक और शैलेश मुख्य किस्में हैं।

हरी खाद की बुवाई का समय

ढैंचा और सनई के बुवाई के लिए मई से जून के महीने में हल्की बारिश के बाद इनकी बुवाई कर सकते हैं।

बुवाई की तैयारी और बीज की मात्रा

हल्की बारिश के बाद या फिर हल्की सिंचाई करके जुताई कर बीज छिड़क दिया जाता है। ढैंचा के हरी खाद को प्रति हेक्टेयर 60 किलो बीज की जरूरत होती है और सनई के लिए एक हेक्टेयर खेत में 80-90 किलो बीज बोया जाता है। जबकि मिश्रित फसल में 30-40 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। 

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