लखनऊ। फसलों को जल्दी बढ़ाने और हरा करने के लिए यूरिया का अथाह इस्तेमाल करने वाले किसानों को रोकने के लिए एक आईएएस अधिकारी ने नई तिकड़म भिड़ाई है। अगर ये प्रयास सफल रहा तो आने वाले समय में पूरा देश इससे सीख ले सकता है।
भारत के दक्षिण में आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जिले के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर एन. युवराज ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार करवाया है जो ‘यूरिया की पुलिस’ का काम करेगा। ये सॉफ्टवेयर इस बात की निगरानी करेगा कि जिले का हर-एक किसान कितनी यूरिया खरीद रहा है, मात्रा ज़रूरत से ज्यादा होने पर किसान के दोबारा यूरिया खरीदने पर बैन लगा दिया जाएगा।
डिस्टि्रक्ट कलेक्टर की इस पहल का उद्देश्य किसानों की खेती की लागत कम करने के साथ-साथ, मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा की भारी अनियमितता से निपटना भी है।
ये सॉफ्टवेयर कैसे काम करेगा इस बारे में एन. युवराज बताते हैं कि एक किसान ज्यादा यूरिया खरीदने के लिए उर्वरक बेचने वाले अलग-अलग केंद्रों पर जाता है। सॉफ्टवेयर ऐसे मदद करेगा कि इसमें प्राथमिक कृषि ऋण देने वाली सोसाइटी, खाद बेचने वाले सभी डीलर, सरकार के पास पहले से मौजूद हर किसान की ज़मीन की जानकारी पहले से दर्ज होगी। अब जब किसान किसी भी दुकान पर जाकर यूरिया खरीदेगा तो उसकी मात्रा, डीलर द्वारा ऐप या कम्प्यूटर के माध्यम से दर्ज हो जाएगी। यदि मात्रा ज्यादा है तो फिर किसान दूसरी बार यूरिया कहीं से भी खरीद ही नहीं पाएगा।
स्वस्थ मिट्टी के लिए तीन प्रमुख तत्वों की ज़रूरत होती है। नाइट्रोजन (एन) फास्फोरस (पी) और पोटेशियम (के)। इन्हें साथ में एनपीके के भी कहा जाता है। लेकिन किसानों में ऐसा भ्रम है कि नाइट्रोजन यानि यूरिया डालने से फसल हरी दिखती है और उसकी बढ़वार भी तेज हो जाती है।
जबकि होता यह कि मिट्टी में अन्य तत्वों— फास्फोरस और पोटेशियम की असमान मात्रा फसल को अंदर से कमज़ोर बना देती है। इससे फसलों का उत्पादन घटने लगता है और लंबे समय में मिट्टी बंजर भी हो सकती है।
सॉफ्टवेयर में पहले से ही वैज्ञानिक आधार पर फसलों की जानकारी और उनके लिए आवश्यक यूरिया की मात्रा फीड कर दी जाएगी। इस जानकारी की तुलना किसान की ज़मीन के आंकड़ों से करके सॉफ्टवेयर ये तय करेगा कि किसान अधिकतम कितनी यूरिया खरीद सकता है।
जिला कलेक्टर युवराज ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया कि वे दस दिनों में अगली खरीफ की फसल में इस सॉफ्टवेयर का पायलट कार्यक्रम के तौर पर इस्तेमाल शुरू कर देंगे। अगर सफल रहा तो इसे आगे बढ़ाएंगे। वैज्ञानिक तौर पर स्वस्थ मिट्टी में एन-पी-के का अनुपात 4-2-1 का होता है, लेकिन एक सरकारी शोध में पाया गया कि यूरिया के अत्यधिक प्रयोग से देश में यह अनुपात लगभग 8-3-1 हो चुका है।
पूरा भारत इस समय किसानों द्वारा उर्वरकों के अंधा-धुंध प्रयोग से जूझ रहा है और इसे कम करने के प्रयास पर चिंतन चल रहे हैं। पिछला दशक खत्म होते-होते 2013 तक तो उर्वरकों पर सरकारों द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी 76,000 करोड़ का आंकड़ा पार कर गई।