नई दिल्ली (आईएएनएस)| नोटबंदी के कारण पैदा हुए नकदी संकट से देश के किसान बुरी तरह प्रभावित हैं। वे रबी की फसल की बुआई नहीं कर पा रहे हैं। इससे आगे चलकर अनाज की कीमतों में भी जबरदस्त इजाफा होनेवाला है। किसान नेताओं ने यह बात कही है।
खेती में ज्यादातर चलती है नकदी
किसान जागृति मंच के अध्यक्ष सुधीर पंवार का कहना है कि भारत की कृषि प्रणाली में ज्यादातर लेनदेन नकदी आधारित है। नोटबंदी के कारण किसानों पर दोतरफा मार पड़ी है। किसानों को अपने उत्पाद बेचने से जो रकम 500 और 1,000 रुपये के नोट में मिली थी, वह अब उनके लिए बोझ बनी हुई है। नोटबंदी की घोषणा के बाद खाद्यान्न व्यापारी खरीदी नहीं कर रहे, क्योंकि उनके पास वैध नकदी नहीं है। इससे किसानों के उत्पाद बिक नहीं रहे हैं।
पंवार उत्तर प्रदेश योजना आयोग के सदस्य भी हैं। उन्होंने आईएएनएस से कहा, "ग्रामीण क्षेत्रों में तो अभी नए नोट शायद ही पहुंच पाए हैं। सरकार ग्रामीण क्षेत्रों को सबसे अंत में वरीयता देती है। किसान पास के शहरों के बैंकों की लाइन में अपना वक्त बरबाद कर रहे हैं। क्योंकि रबी फसल की बुआई में पहले ही 10-15 दिनों की देर हो चुकी है।"
खाद्यान्न व्यापारी हमेशा नकद भुगतान करते हैं। वे कभी चेक आदि का प्रयोग नहीं करते। किसानों के पास नकदी नहीं है।सुधीर पंवार, किसान जागृति मंच के अध्यक्ष
50 और 100 रुपये के नोट ज्यादा जारी करे सरकार
आंध्र प्रदेश के फेडरेशन ऑफ फार्मर ऑर्गनाइजेशन के जयपाल रेड्डी का भी यही कहना है कि नकदी की कमी से किसान तबाह हो रहे हैं।
रेड्डी ने फोन पर बताया, "हम किसानों को काफी परेशानी हो रही है। यह खेती का समय है। लेकिन नोटबंदी के कारण बाजार बंद हैं। हमे न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल नहीं रहा। और नकदी की कमी के कारण कोई हमारी उपज खरीदने भी नहीं आ रहा। सरकार को 50 और 100 रुपये के नोट ज्यादा मात्रा में जारी करनी चाहिए।" उन्होंने कहा कि रबी की फसल की बुआई के लिए काफी देर हो चुकी है, क्योंकि न तो नकदी है और न हीं मजदूर उपलब्ध हैं।
नए 2000 रुपये के नोट को कहां इस्तेमाल करें। कौन इसका खुल्ला देगा? मजदूरों को रोज भुगतान चाहिए होता है और अगर आप उन्हें 2,000 रुपये का नोट दे भी दें तो वे उसका करेंगे क्या?जयपाल रेड्डी, फेडरेशन ऑफ फार्मर ऑर्गनाइजेशन,आंध्र प्रदेश
85 प्रतिशत बीज केंद्र निजी क्षेत्र के
पंवार के मुताबिक, वित्त मंत्रालय ने घोषणा की है कि किसान पुराने नोटों से ही बीज की खरीद कर सकते हैं। लेकिन 85 फीसदी निजी क्षेत्र से खरीदे जाते हैं, जो पुराने नोट स्वीकार नहीं कर रहे। अब इससे भला किसानों का क्या फायदा होगा।
उन्होंने कहा, "बीज के अलावा किसानों को खाद-पानी, कीटनाशक आदि की भी जरूरत होती है। जोकि पुराने नोट से नहीं खरीदे जा सकते हैं। नोटबंदी से सब दुखी हैं।"
चेक जमा करने पर बैंक पैसा काट ले रहे
वहीं, नोटबंदी से दूसरा नुकसान जो किसानों को हुआ है, वह यह कि खाद्यान्न व्यापारी उन्हें चेक से भुगतान कर रहे हैं। जब किसान ये चेक अपने बैंक खाते में जमा कर रहे हैं तो बैंक अपना पुराना कर्ज उसमें से वसूल कर रहे हैं।
वे कहते हैं, "सामान्यत: किसान सीधे व्यापारियों से नकदी लेते हैं। लेकिन अब व्यापारी चेक दे रहे हैं। अगर मैं यह चेक बैंक में जमा करूंगा तो बैंक अपने उधार की रकम इसमें से काट लेगा।"