कोटे पर 2 रुपए में मिलने वाले गेहूं के लिए 24 तो 3 रु. किलो वाले चावल के लिए सरकार खर्च करती है 32 रुपए

Update: 2017-05-22 18:38 GMT
सरकारी एजेंसियों की तमाम कोशिशों के बावजूद गेहूं व चावल की लागत बढ़ रही

नई दिल्ली (भाषा)। शहर और गांव के कस्बे के कोटे (सरकारी राशन की दुकान) पर जो गेहूं 2 रुपए और चावल तीन रुपए किलो मिलता है, सरकार उसके लिए 24 और 32 रुपए खर्च करती है। सरकारी एजेंसियों की तमाम कोशिशों के बावजूद किसान अऩाज खरीदकर आप तक पहुंचाने में सरकार की लागत बढ़ गई है। सरकारी एजेंसियों की तमाम कोशिशों के बावजूद गेहूं और चावल की आर्थिक लागत पिछले पांच वर्षों में करीब 25 फीसदी बढ़ गई है।

भारतीय खाद्य निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘2017-18 में गेहूं की आर्थिक लागत 2408.67 रुपए प्रति क्विंटल (24.09 रुपए किलो) जबकि चावल की 3264.23 रुपए क्विंटल (32.6 रुपए किलो) रहने का अनुमान है।’ अधिकारी ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य, मजदूरी और अन्य लागतें बढ़ने से आर्थिक लागत बढ़ी है।

वर्ष 2013-14 में गेहूं की प्रति क्विंटल लागत जहां 1908.32 रुपए यानी 19 रुपए किलो से कुछ अधिक थी, वहीं 2017-18 तक यह बढ़कर 2408.67 रुपए क्विंटल यानी 24.09 रुपए किलो हो गई। वहीं चावल की लागत 2013-14 में 2615.51 रुपए प्रति क्विंटल (26.15 रुपए किलो) से बढ़कर 2017-18 में 3264.23 रुपए क्विंटल (32.6 रुपए किलो) हो गई। इस लिहाज से गेहूं की खरीद और उसके रख-रखाव पर आने वाली लागत जहां प्रति क्विंटल 26.22 प्रतिशत बढ़ी वहीं चावल की लागत में इस दौरान 24.80 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

किसानों से अनाज की खरीद करने से लेकर उसे बोरियों में भरकर गोदामों तक पहुंचाने और उसका रखरखाव करने वाले सार्वजनिक उपक्रम भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को इस समय गेहूं पर 24 रुपए और चावल पर 32 रुपए किलो की लागत पड़ रही है जबकि राशन में इन अनाज को क्रमश: दो रुपए, तीन रुपए किलो पर उपलब्ध कराया जाता है। आर्थिक लागत और बिक्री मूल्य में अंतर की भरपाई सरकार सब्सिडी के जरिए करती है।

यह पूछे जाने पर कि लागत में कमी के लिए क्या कुछ कदम उठाए गए हैं, एफसीआई अधिकारी ने कहा, ‘हमने कार्यबल को युक्तिसंगत बनाकर व कुछ अन्य अनावश्यक खर्चों को कम कर पिछले कुछ साल में 800 करोड़ रुपए की बचत की है।' उन्होंने कहा, ‘लेकिन एमएसपी, ब्याज और कर्मचारियों के वेतन आदि पर होने वाला खर्चा ऐसा है जहां हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। हां, प्रशासनिक लागत है जहां कुछ किया जा सकता है जिसे हमने कुछ हद तक युक्तिसंगत बनाया है।' उल्लेखनीय है कि फसल वर्ष 2012-13 में धान (सामान्य) का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1250 रुपए प्रति क्विंटल था जो 2016-17 में बढ़कर 1470 रुपए हो गया। इसी प्रकार, गेहूं का एमएसपी इस दौरान 1350 रुपए से बढ़कर 1625 रुपए प्रति क्विंटल हो गया।

मजदूरी में बढ़त महंगाई के हिसाब से जरूरी

अधिकारी ने कहा, ‘हमने अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारियों के मामले में चीजों को युक्तिसंगत बनाया है लेकिन इसकी भी सीमा है। अगर आप ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों को कम पैसा देंगे, तो फिर गलत काम को बढ़ावा मिलेगा इसलिए मजदूरी में वृद्धि भी महंगाई के हिसाब से जरूरी है।' एफसीआई व राज्यों की विभिन्न एजेंसियों ने चालू विपणन सत्र में 15 मई तक लगभग 278.01 लाख टन गेहूं खरीद कर ली है। रबी विपणन सत्र अप्रैल से मार्च तक होता है लेकिन खरीद कार्यक्रम लगभग जून में ही पूरा हो जाता है।

चावल खरीद में हुआ इजाफा

एफसीआई आंकड़ों के मुताबिक खरीफ विपणन वर्ष 2016-17 (अक्तूबर-सितंबर) में चावल की खरीद 15 मई तक 359.24 लाख टन रही जो इससे पिछले विपणन सत्र में 342.18 लाख टन थी। इसके अलावा निगम ने सरकार के 20 लाख टन दलहन बफर स्टॉक के लिए पिछले खरीफ सत्र में लगभग तीन लाख टन दाल की भी खरीद की है।

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