माइट कीट से मधुमक्खियों में आती है विकलांगता 

Update: 2017-02-05 15:01 GMT
माइट कीट एक परजीवी कीट है जो अन्य फसलों के साथ मधुमक्खीपालन में भी पाया जाता है।

सुधा पाल

लखनऊ। शहद उत्पादन में आई कमी केवल पर्याप्त परागण की कमी की वजह से ही नहीं होता बल्कि इस गिरावट की एक बड़ी वजह कीटों का प्रकोप भी है। मधुमक्खियों में लगने वाले कीटों में सबसे घातक माइट कीट होती है। इससे जहां एक ओर मधुमक्खियों का विकास रुक जाता है वहीं दूसरी ओर इस कीट से मधुमक्खियों में विकलांगता आ जाती है। इसका सीधा असर शहद उत्पादन पर पड़ता है।

माइट कीट एक परजीवी कीट है जो अन्य फसलों के साथ मधुमक्खीपालन में भी पाया जाता है। इस कीट से होने वाला रोग कुत्तों में ज्यादा पाया जाता है जिसमें चपटी पड़ जाती है। इस कीट के लगने से मधुमक्खियों को कई तरह की परेशानियों हो सकती हैं। मधुमक्खियों में लगने वाले इस कीट से होने वाली बीमारियां संक्रामक होती हैं जो मक्खियों के संपर्क में आने से आसानी से एक दूसरे को लग जाती हैं। जिस भी मधुमक्खी में यह कीट लगता है, उसके अंडे, ब्रूड और उसके पर कट जाते हैं। इस तरह से मक्खी विकलांग हो जाती है। इसके साथ ही मक्खी का विकास रुक जाता है। कुछ माइट मक्खियों को अपनी चपेट में लेते हैं तो कुछ अंदर से प्रहार करते हुए छत्ते में घुसकर लार्वा को भी नुकसान पहुंचाते हैं।

गोसाईंगंज के मधुमक्खीपालक आशाराम बताते हैं, “बैरोवा माइट और ट्रोपीलीलेप्स क्लेरी माइट मधुमक्खियों को लारवा, प्यूपा और वयस्क मधुमक्खी के शरीर से खून चूसते हैं। ये कीट मक्खियों की श्वास नलिका में जाकर धीरे -धीरे विकास करता है और जिससे मक्खियों को सांस लेने में परेशानी होती है।” उन्होनें आगे बताया कि इससे लारवा, प्यूपा और वयस्क मधुमक्खियां मर जाती हैं। ट्रोपीलीलेप्स क्लेरीमाइट प्रभावित मधुमक्खियों के पंख, पैर अविकसित और शरीर कमजोर हो जाता है।”

वो आगे बताते हैं, “इससे लार्वा सड़ने लगता है और धीरे धीरे वायरस फैलने लगती है जो पूरे मौनवंश पर असर करता है। इसके अतिरिक्त मक्खियां केवल 6- से 90 दिन तक ही वे जीवित रह सकती हैं। छत्ते, मोम या शहद के संपर्क में आने से भी इस कीट से रोग का फैलाव हो ता है।”

“ये माइट भी 12 से 14 दिन में बच्चे दे देते हैं वहीं मक्खियां भी 20 से 21 दिन में, इससे इस कीट के बच्चे भी सभी मक्खियों पर अपना असर दिखाने लगते हैं।” आशाराम ने आगे बताया।

कैसे करें माइट से प्रभावित मधुमक्खियों का उपचार

माइट के प्रकोप की स्थिति में 85 फीसद (एमजी) फार्मिक एसिड का उपयोग रुई के फाहे में एक लकड़ी की मदद से लपेटकर बक्से में रख देना चाहिए जिससे उसकी गंध से कीटों से छुटकारा पाया जा सकता है। यह मौनवंश के बक्से के दरवाजे (प्रवेश द्वार) पर ही रख देना चाहिए। इसके अतिरिक्त बीमारी से उपचार के लिए मधुमक्खीपीलक थाइमोल दवा (अजवाइन सत्त) के साथ इथेनॉल एल्कोहल के बराबर मात्रा में मिश्रण का भी उपयोग कर सकते हैं जो किसी भी तरह से घातक नहीं होता है क्योंकि अजवाइन आयुर्वोदिक है और इथेनॉल एल्कोहल गैस बनकर उड़ जाता है जबकि उसकी गंध कीटों को भगाने और रोकने का काम करती है।

माइट की चपेट में आने से कैसे करें बचाव?

  • ऐसी जगह जहां कीटों का प्रकोप ज्यादा हो वहां उन क्षेत्रों में मधुमक्खियों के परागण के लिए पलायन न करें।
  • माइट कीट से प्रभावित मधुमक्खी के अंडे और लार्वा वाले छत्ते स्वस्थ मधुमक्खियों से दूर रखने चाहिए।
  • मधुमक्खियों को भोजन में पर्याप्त पोषक तत्व उपलब्ध कराएं।

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