मध्य प्रदेश: पहले बारिश से तिल, उड़द और मूंग की फसल बर्बाद हुई, अब धान की फसल बर्बाद कर रहा कंडुआ रोग

मध्य प्रदेश के बघेलखंड का किसान सितम्बर की बारिश में मूंग, उड़द और तिल की फसल खो चुका है। उम्मीद थी कि धान की फसल मेहनत सफल करेगी लेकिन इसमें भी रोग लग गया। वह अगले खरीफ सीजन में फसल बदलने की सोच रहा है।

Update: 2021-10-26 13:27 GMT

सतना/रीवा (मध्य प्रदेश)। पिछले महीने हुई बारिश से किसानों की तिल, उड़द और मूंग की फसल तो बर्बाद हो गई थी, लेकिन किसानों को धान की फसल से कुछ उम्मीद थी, लेकिन अब धान की फसल में कंडुआ रोग लगने से वो उम्मीद भी चली गई।

''हमने साढ़े पांच एकड़ के खेत में केवल धान की फसल ही लगाई है। इसका पौधा बढ़िया था, अंतिम-अंतिम में कंडो (कंडुवा) रोग लग गया। फसल धीरे-धीरे खराब हो रही है। कई कीटनाशक भी डाले लेकिन कंडो रोग से नहीं बचा पाए।" रोगग्रस्त धान की फसल का एक पौधा उखाड़ कर दिखाते हुए किसान वीरेन्द्र सिंह (56 वर्ष) ने गांव कनेक्शन को बताया। वीरेन्द्र मध्यप्रदेश के रीवा जिले के गांव चचाई के निवासी है। वह धान को लगे रोग से दुखी हैं और अगले साल से फसल बदलने की योजना बना रहे हैं।

धान की बालियों पर लगने वाली इस बीमारी को आम बोलचाल की भाषा में लेढ़ा रोग, गंडुआ रोग, बाली का पीला रोग/ हल्दी रोग, हरदिया रोग से किसान जानते है। वैसे अंग्रेजी में इस रोग को फाल्स स्मट और हिन्दी में मिथ्या कंडुआ रोग के नाम से जाना जाता है।


''300 रुपए प्रति किलो में धान का बीज लिया था। एक एकड़ में 7 किलो बीज का रोपा लगा हुआ है। इस हिसाब 11550 रुपए का केवल बीज लगा हुआ। इसके अलावा रोगों से बचाने के लिए प्रति एकड़ में 4000 रुपए की दवा डाली गई। यह भी 22000 रुपए की पड़ी इसके बाद भी कंडो रोग लगा। इसका कोई उपचार नहीं है। लगा था कि इस बार 30-32 क्विंटल धान मिलेगी लेकिन इस रोग के बाद तो यह भी उम्मीद नहीं रही। इसलिए फसल बदलने का मन बना लिया है अगले साल यहां गन्ना लगाएंगे।" किसान वीरेन्द्र सिंह ने अपनी बातों में आगे जोड़ा।

इन्हीं बातों को दोहराते हुए अनूपपुर जिले के गांव लखनपुर के किसान तेजभान नामदेव (34 वर्ष) कहते हैं, "दो-तीन साल से धान की फसल को रोग लग रहा है। जिससे बीज भी नहीं निकल पा रहा है इसलिए अगले खरीफ सीजन में धान की जगह कोई और फसल बोएंगे। ताकि इस नुकसान की भरपाई हो सके।"

कंडुआ रोग (False smut) रोग की वजह से फसल उत्पादन पर असर पड़ता है, अनाज का वजन कम हो जाता है और आगे अंकुरण में भी समस्या आती है। ये रोग जहां उच्च आर्द्रता और 25-35 सेंटीग्रेड तापमान होता है वहां पर ज्यादा फैलता है, ये हवा के साथ एक खेत से दूसरे खेत उड़कर जाता है और फसल को संक्रमित कर देता है। इसमें शुरूआत में पीली गांठ पड़ती है बाद में वो काली पड़ जाती है।

अनूपपुर जिले के डीडीए (उप संचालक कृषि) एन डी गुप्ता ने बताया कि जिले में धान का रकबा बढ़ रहा है। वर्ष 2020 में 116 हज़ार हेक्टेयर था जो वर्ष 2021में 122 हज़ार हेक्टेयर हो गया है। यह वर्ष 2019 में 115 हज़ार हेक्टेयर था। 2021 में धान के जो लक्ष्य था उसकी पूर्ति हो चुकी है।


जुलाई में कम हुई बारिश की वजह से देरी से हुई बुवाई

किसानों का कहना है कि जुलाई माह में काम बारिश हुई जिससे फसल पिछड़ गई। जून से सितम्बर तक ही आधिकारिक रूप से बारिश का सीजन माना जाता है। अधिकारियों का कहना है कि इस साल मध्यप्रदेश में अपने समय ही मानसून आया था लेकिन जुलाई जो हमेशा ज्यादा बारिश का महीना है वह अपेक्षाकृत सूखा रहा। यही कारण की किसानों ने धान की बुवाई देर से की।

सतना जिले के गांव मसनहा के किसान राम कंकन रजक (38 वर्ष) गांव कनेक्शन को बताते हैं, "धान की रोपाई जुलाई माह में करना था लेकिन उस समय तक बारिश कम हुई। जिन किसानों के पास खुद के मोटर पंप की व्यवस्था है उनकी फसल ठीक है लेकिन हमारी लेट हो गयी। यह अगले माह तक पकेगी।"

वह आगे बताते हैं, "हर बार धान की फसल के साथ कुछ न कुछ हो रहा है इसलिए बीज बचाना मुश्किल हो रहा है। बाजार से ही बीज लिया तो दुकानदार ने बताया था कि 90 दिन में पक जाएगी लेकिन 120 दिन से अधिक हो गया अब तक नहीं पकी।"

मौसम विज्ञान केंद्र भोपाल के वरिष्ठ मौसम विज्ञानी जीडी मिश्रा के मुताबिक चार माह के बरसाती सीजन में जुलाई में कम बारिश हुई। जबकि ज्यादा होनी चाहिए।


मध्यप्रदेश में सामान्य बारिश 940.6 मिमी की अपेक्षा 945.2 मिमी बारिश हुई है। जबकि पूर्वी मध्य प्रदेश में 15 फीसदी कम और पश्चिमी मध्यप्रदेश में 15 फीसदी अधिक बरसात हुई। मध्यप्रदेश को मौसम के आधार पर दो भागों में बंटा गया है पूर्वी और पश्चिमी। पूर्वी में 20 और पश्चिमी में 31 जिले शामिल है। दोनों ही जोन में टीकमगढ़ को शामिल नहीं किया गया।

किसानों की चिंता, रोग से खराब क्या धान की फसल बिक पाएगी

धान की फसल का देरी से पकना तो किसान के परेशान किये हुए हैं। उसकी दुविधा यह भी है कि रोग ग्रस्त धान बिकेगा या नहीं। उचित दाम मिलेगा या नहीं।

सतना जिले के सितपुरा निवासी किसान करण उपाध्याय गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "बीज तो बाजार से लिया था ताकि बढ़िया उत्पादन होगा लेकिन पहले ब्लास्ट और अब कंडवा रोग लग गया। जो बचा खुचा तो बेमौसम बरसात ने बिगाड़ दिया। धान अच्छी नहीं है इस लिए बिकने पर अच्छे दाम दे जाएगी या नहीं इस पर असमंजस है।"

सतना ज़िला में खरीफ सीजन 2021 में धान की बुवाई लक्ष्य से ज्यादा हुई है। किसान कल्याण एवं कृषि विभाग के एसएडीओ (वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी) आर के बागरी ने बताया कि सतना जिले में खरीफ सीजन 2021 में धान के लिए 249.680 लाख हेक्टेयर का लक्ष्य रखा गया था इस पर 249.890 लाख हेक्टेयर की पूर्ति हुई है।



हाइब्रिड बीजों में लग रहा रोग और कीट

"धान की फसल में रोग या कीट का प्रकोप है उसकी बड़ी वजह बीज का हाइब्रिड होना है। कृषि वैज्ञानिक रिसर्च बीज का उपयोग करने की सलाह भी देते हैं लेकिन अधिक उत्पादन के कारण किसान अत्यधिक हाइब्रिड बीजों का उपयोग कर रहे हैं, "कृषि विज्ञान केंद्र मझगवां सतना के पौध रोग विज्ञानी हिमांशु शेखर ने गांव कनेक्शन को बताया

"धान की फसल में कंडुवा सहित अन्य रोग और कीट लग चुका है। इसकी वजह हाइब्रिड बीज है। फील्ड में देखने में भी आया है। जिला के नागौद ब्लॉक के गांव गौरा, मढी कला, कोनी, कोटा व झिंगोदर और रामनगर ब्लॉक के गोरसरी, देवरी, रामचुआ, मनकहरी, बड़वार और हरदुआ जागीर के किसानों के खेत की धान देखी थी। उचित सलाह दी है।"

हिमांशु आगे बताते हैं, "हाइब्रिड धान में कंडवा रोग का कारण मौसम है। जब भी मौसम बादलों वाला होगा तो कंडवा लगता ही है। इसलिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वह 50 फीसदी बाली आने के बाद ही दवा का छिड़काव करें।" 

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