सौ कृषि विज्ञान केंद्रों में एकीकृत खेती शुरू करेगी सरकार    

Update: 2016-10-26 11:35 GMT
एक कृषि विज्ञान केन्द्र का दृश्य।

नई दिल्ली (भाषा)। केंद्र सरकार जल्द ही देशभर के 100 कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) में एकीकृत खेती शुरू करेगी, जिसे कृषि विज्ञान केंद्रों के रूप में जाना जाएगा।

देशभर के ग्रामीण जिलों में कुल 645 केवीके हैं। जिसे कृषि प्रौद्योगिकी का आकलन करने का अधिकार तथा उपयोग और क्षमता विकास को प्रदर्शित करने का अधिकार मिला हुआ है। प्रत्येक केवीके का कम से कम 1,000 किसानों से सीधा रिश्ता है।

कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय बहुत जल्द 100 केवीके में एकीकृत खेती को शुरू करने जा रहा है। इन जिलों में रहने वाले किसान इसे अपनाकर अपनी आय बढ़ा सकते हैं। केवीके की किसानों की आय को बढ़ाने और कृषि को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए मंत्री ने केवीके और राज्य स्तर के कृषि अधिकारियों से अपील की कि उन्हें खेती की आय को बढ़ाने के लिए किसानों के सानिध्य में काम करना चाहिए।
राधा मोहन सिंह कृषि मंत्री (12 दक्षिणी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के केवीके अधिकारियों के साथ एक वीडियो कांफ्रेंस में कहा)

दलहनों की कमी दूर करने के लिए आईसीएआर और कृषि मंत्रालय एकजुट

सिंह ने कहा कि दलहनों की कमी को पूरा करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और कृषि मंत्रालय उत्पादकता बढ़ाने और रकबा विस्तार के जरिए उत्पादन बढ़ाने की दो आयामी नीति पर मिलकर काम कर रही है। तिलहन के संदर्भ में उन्होंने कहा कि खाद्य तेल की खपत की वृद्धि दर 4.3 प्रतिशत बढ़ी है जबकि तिलहन का वार्षिक उत्पादन करीब 2.2 प्रतिशत ही बढ़ा है।

उन्होंने कहा, भारत को अपनी आवश्यकता के 50 प्रतिशत भाग खाद्य तेलों का आयात करता है। पिछले वर्ष घरेलू मांग को पूरा करने के लिए 69,717 करोड़ रुपए के खाद्य तेलों का आयात किया गया। देश में वर्ष 2020 और वर्ष 2025 तक वनस्पति तेल की खपत को पूरा करने के लिए यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2020 और वर्ष 2025 तक क्रमश: आठ करोड़ 68.4 लाख टन और नौ करोड़ 33.2 लाख टन तिलहन उत्पादन करने की आवश्यकता होगी।

वनस्पति तेल के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास के तहत उन्होंने कहा कि तिलहन के लिए उत्पादकता उन्नयन कार्यक्रम को आईसीएआर के प्रौद्योगिकी समर्थन के अलावा अभियान के स्तर पर संस्थागत और नीतिगत समर्थन की आवश्यकता होगी।


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