मिर्च किसानों ने मिलकर शुरू की अपनी मंडी

Update: 2017-01-12 11:13 GMT
मिर्च किसानों की अपनी मंडी

मोबिन अहमद (कम्यूनिटी जर्नलिस्ट)

रायबरेली। कुछ महीने पहले तक वे किसान जिनको अपनी मिर्च औने-पौने दाम में दुकानदारों को बेचना पड़ता था आज उन्हीं किसानों नें मिलकर इस समस्या का समाधान निकाल लिया है। किसानों ने गाँव में ही खुद की छोटी-मोटी मंडी शुरू कर दी है, जिससे छोटे-छोटे किसानों को भी उनकी फसल की अच्छी कीमत मिलने लगी है।

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हरचन्दपुर ब्लॉक के नंदाखेड़ा गाँव के आस-पास के किसान मिर्च की खेती करते हैं, कुछ दिनों पहले तक ये अपना मिर्च लेकर बछरावाँ और लालगंज के दुकानदारों के पास जाते थे, जहां औने-पौने दाम में बेचना पड़ता था, लेकिन पिछले साल से नन्दाखेड़ा गाँव के गया प्रसाद (38 वर्ष) ने एक नया प्रयास शुरू किया।

गया प्रसाद ने अपने तीन बीघा खेत में मिर्च बोया और उसे लखनऊ मण्डी में बेचने की योजना बनाई। जब ये बात अपने साथियों से बतायी तो श्याम लाल (35 वर्ष) और ननकऊ (26 वर्ष) भी तैयार हो गये और तीनों अपना मिर्च लेकर लखनऊ में अच्छी कीमत में बेचकर आये। इसके बाद तो इन तीनों ने आस-पास के अन्य किसानों का मिर्च भी खरीदना शुरू कर दिया। पाँच किलो, दस किलो वाले किसान भी इनके माध्यम से अपना मिर्च लखनऊ बेचने को तैयार हो गये।

अघोरा गाँव के राम शंकर ने अब लालगंज बाजार जाना बंद कर दिया है, जिससे आने-जाने का किराया तो बचता ही है साथ ही भाव भी अच्छा मिल जाता है।

मन्डी की शुरूवात करने वाले नन्दा खेड़ा निवासी गयाप्रसाद बताते हैं, ''पिछले साल के सीजन मे काम शुरू किया था और इस बार तो देखिये मन्डी मे भीड़ लगने लगी है।''

लगभग 42 वर्ष की कला वती टेरा बरौला मे एक बिसवा मे मिर्च बोती हैं और अक्सर 3 से 5 किलो मिर्च यहां बेच जाती हैं। कलावती बताती है, ‘’पहले सब्जी वाले घर आकर ले जाते थे जो भाव वो लगाते थे उसी मे बेचना पड़ता था अब यहां बेचती हूं तो करीब 10-15 रुपये प्रति किलो का फ़ायदा होने लगा है।

गया प्रसाद बताते हैं कि अगर अच्छा बीज हो तो एक बीघा में 18 से 20 हजार की लागत लगाकर 50 हजार से ज्यादा कमाया जा सकता है। गया प्रसाद के अनुसार एक बीघा में 25 से 30 कुन्तल तक मिर्च पैदा हो जाता है। नन्दा खेड़ा के श्याम लाल ने बताया कि हाइब्रिड मिर्च बोने में नुकसान है क्योंकि देसी के मुकाबले में हाइब्रिड मिर्च कम बिकता है।

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