ऐसे ही रहा तो आलू की खेती नहीं करेंगे किसान

Update: 2016-12-26 18:29 GMT
आलू के दाम अचानक से गिरने से आलू की अगैती फसल का किसानों को दाम नहीं मिल रहा है।

लखनऊ। प्रदेश के आलू किसानों के सामने नया संकट आ गया है। एक तरफ जहां आलू के दाम अचानक से गिरने से आलू की अगैती फसल का किसानों को दाम नहीं मिल रहा है वहीं आलू की पर फसल पर झूलसा रोग ने भी हमला बोल दिया है। प्रदेश में इस बार छह लाख हेक्टेयरे में आलू की खेती की गई है। जिसमें से 20 प्रतिशत अगैती आलू की फसल तैयार होकर विभिन्न मंडियों में बिकने रोजाना पहुंच रही है। लेकिन आलू के दाम गिरने से किसानों को आलू का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है और स्थिति यह है कि उनकी लागत निकलना भी मुश्किल हो गया।

सीतापुर रोड स्थित लखनऊ की नवीन सब्जी मंडी में रोजाना 60 से लेकर 70 ट्रक आलू की आवक है। इस बारे में जानकारी देते हुए यहां के आलू के आढ़ती ज्ञान सिंह ने बताया ''प्रदेश में सभी सब्जी मंडियों में आलू के दाम अचानक से गिर रहे हैं। थोक में आलू 4 से लेकर साढ़े चार रूपए किलो बिक रहा है। जिससे आलू उत्पादक किसानों की लागत नहीं निकल रही है। ''लखनऊ की सब्जी मंडी में कन्नोज की मंडी से आलू लेकर पहुंचे सूरजभान शाक्य ने बताया कि आलू का रेट इतना गिर जाएगा वह लोग सोचे भी नहीं थे। अगैती आलू की फसल की की लागत ही 6 से लेकर 7 रुपए है। ऐसे में हमे घाटा हो रहा है। अगर आने वाले महीने में दाम ऐसे रहे तो आलू की मुनाफा तो छोड़िए लागत निकालना भी मुशिकल हो जाएगा। प्रदेश में कन्नोज, कौशाम्बी, फतेहाबाद, मैनपुरी, आगरा, इटावा और एटा जैसे जिलों में आलू की फसल तैयार हो गई है। यहां से पूरे प्रदेश में नए आलू की सप्लाई की जा रही है। वहीं पंजाब बाकी का नया आलू पंजाब से आ रहा है। लेकिन आलू के गिरते दामों से आलू उत्पादक किसान निराश है। गोरखपुर जिले के सैरो गांव निवासी

रामनारायण यादव बड़े आलू उत्पादक किसान है उन्होंने इस बार 50 बीघे में आलू की खेती की है जिसमें से 15 बीघा उन्होंने अगैती आलू बोया था। आलू तैयार हो चुका है लेकिन इसके बाद भी इसकी खुदाई वह नहीं करा रहे हैं उनका कहना ''आलू को खेत से लेकर मंडी तक पहुंचाने में जो खर्च आएग उतना पैसा भी अभी आलू बेचने से नहीं मिल पाएगा। आलू को 40 किलोमीटर गोरखपुर सब्जी मंडी जाकर बेचन पड़ता है और मंडी में आलू की दाम इतने कम है कि सिर्फ घाटा ही लगेगा, ऐसे में अभी इंतजार कर रहा हूं कि आलू का रेट सही होने का। ''महराजगंज जिले के गांगी बाजार भेड़िया टोला के किसान मनोज कुमार ने बताया ''इस साल आलू के खेत में गेहूं की बुवाई भी कर हूं इसलिए अगैती आलू की लगाया था। आलू की खुदाई करा हूं और इसमें गेहूं बोना है लेकिन अब चिंता इस बात को लेकर हो रही है कि जो आलू पैदा हुआ है उसका उचित दाम ही नहीं मिल पा रहा है। आलू अभी कच्चा है इसे कोल्ड स्टारेज में भी नहीं रखा जा सकता। अगली बार तो आलू की खेती करने के लिए सोचना पड़ेगा''

25 दिसंबर से लेकर 25 जनवरी तक मंडराता रहता है खतरा

आलू की फसल में हर साल 25 दिसंबर से लेकर 25 जनवरी के बीच का समय सबसे ज्यादा संवेदनशील होता है। क्योंकि यही वह समय होता है जब तामपान में ज्यादा उतार-चढ़ाव होता और आलू की खेती पर इसका सीधा असर पड़ता है। इस बारे में जानकारी देते हुए उत्तर प्रदेश बागवानी और खाद्य प्रसंस्करण विभाग में उपनिदेशक सह आलू मिशन के मैनेजर डीएन पांडेय ने बताया ''अधिक शीतलहर और तापमान में गिरावट आलू की फसलों को नुकसान पहुंचाता है। इस बार भी मौसम अचानक से जिस तरह से बदल रहा है वह निशिचत रूप से आलू की फसल के लिए बहुत शुभ संकेत नहीं है। उन्होंने बताया कि इसके बाद किसानों को चाहिए कि वह बिना घबराए आलू की फसल को बीमारियों खासकर पाला रोग से कैसे बचाया जाए इसका ध्यान रखना चाहिए। शीत लहर ओर पाला रोग से बचने के लिए आलू की खेत में हल्की सिंचाई और खेत के आसपास धुंआ करना जरूरी है।

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