टिशू कल्चर से 60 फीसदी तक बढ़ेगा केला उत्पादन

Update: 2016-11-03 17:44 GMT
टिशू कल्चर से 60 फीसदी तक बढ़ेगा केला उत्पादन।

रिपोर्टर- सुधा पाल

लखनऊ। केले की बढ़ती मांग को लेकर टिशू कल्चर से केले की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी उद्देश्य से राजधानी के बाराबंकी में निजी क्षेत्र के सहयोग में टिशू कल्चर लैब खोला जा रहा है। इस सम्बन्ध में हाल ही में मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलेपमेंट हॉर्टिकल्चर द्वारा आयोजित जॉइंट सेक्रेटरी की बैठक का आयोजन किया गया।

दिल्ली में आयोजित इस बैठक में उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग (उत्तर प्रदेश) के निदेशक एसपी जोशी भी शामिल रहे। निदेशक एसपी जोशी ने बताया कि केले की मांग इन दिनों काफी बढ़ गई है जिसकी वजह से केले के अधिक उत्पादन पर ज़ोर दिया जा रहा है। इसके लिए टिशू कल्चर लैब बनाया जा रहा है। यह लैब टिशू कल्चर से केले के अच्छे और बेहतर उत्पादन को बढ़ावा देगा। यह लैब फैज़ाबाद एक्सप्रेस वे से लगभग आठ-नौ किमी दूर हाइवे पर बनाई जाएगी। बाराबंकी में लैब खोलने का कारण यह है कि इस जिले के तराई जैसे अन्य क्षेत्रों में भी किसान केले का उत्पादन अधिक करते हैं। इसके लिए सरकार द्वारा निजी क्षेत्र के सहयोग में एक करोड़ 20 लाख का फंड दिया गया है। एसपी जोशी ने बताया कि लैब में लगभग 25 लाख केले के टिशू कल्चर पौधे तैयार किए जाएंगे। उनका कहना है कि प्रयोगशाला के ज़रिए सही समय पर किसानों को प्लांटिंग मटीरियल उपलब्ध होगा जिससे किसान समय से अच्छी गुणवत्ता की फसल तैयार करके केले के उत्पादन में इज़ाफा कर सकते हैं।

निजी क्षेत्र के सहयोग में इस प्रयोगशाला के लिए सरकार की तरफ से 50 फीसदी (एक करोड़ रुपए) का अनुदान दिया गया है।
एस पी जोशी, निदेशक, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग (उत्तर प्रदेश)

टिशू कल्चर से बढ़ेगा उत्पादन

किसान आधुनिक खेती अपनाकर टिशू कल्चर से कम समय में अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। टिशू कल्चर से केला उत्पादन में लगभग 60 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। पारंपरिक खेती करने पर पहले केले की फसल 18 महीने में तैयार होती थी। अब वहीं टिशू कल्चर से तैयार पौधों में नौ महीने बाद फूल आना शुरू होता है और 12 से 14 महीने में फसल पककर तैयार हो जाती है। उत्पादन भी 50 फीसदी ही हो पाता था। इसके साथ ही टिशू कल्चर से केले के घार का वजन भी दोगुना होता है। पहले घार का वजन लगभग 12 किलो तक होता था वहीं अब लगभग 20 किलो तक हो रहा है।

प्रयोगशाला में तैयार किए जाएंगे पूर्वअगर पौधे

एसपी जोशी ने जानकारी देते हुए बताया कि बाराबंकी में स्थित इस प्रयोगशाला में केले के पूर्वअगर पौधे तैयार किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि पूर्वअगर पौधे तैयार होने पर किसानी से जुड़ी दक्षिण की कम्पनियां को भेजे जाते हैं जिसके बाद इन पौधों का कठोरीकरण किया जाता है। प्रदेश में लाकर ग्रीनहाउस के ज़रिए इनका कठोरीकरण किया जाता है जिसके बाद लगभग 30 सेमी के तैयार हुए पूर्वअगर पौधों को किसान अपने खेतों में लगाते हैं।

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