रजनीगंधा की खेती: कम खर्च में ज़्यादा मुनाफ़ा, जानिए कब और कैसे करें इसकी खेती

पारंपरिक खेती में नुकसान उठा रहे किसानों के लिए रजनीगंधा की खेती एक अच्छा विकल्प है। फरवरी के अंतिम सप्ताह से मार्च की शुरुआत तक रजनीगंधा की खेती की जा सकती हैं।

Update: 2021-02-11 12:23 GMT
लंबे समय तक ताज़ा बने रहने के कारण बाजार में रजनीगंधा की मांग ज़्यादा रहती है। बुके से लेकर सजावट तक में रजनीगंधा का खूब इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ ही सुगंधित पदार्थों और परफ्यूम आदि में भी इसका इस्तेमाल होता है।

उन्नाव (उत्तर प्रदेश)। राजधानी लखनऊ से लगे उन्नाव जिले के सिकन्दरपुर सरोसी ब्लॉक के भागू खेड़ा गाँव के 47 वर्षीय कृष्ण कुमार ने सिर्फ 8वीं तक पढ़ाई की है। लेकिन फूलों की खेती के लिए उनकी योग्यता किसी डिग्री से कम नहीं है। कृष्ण कुमार, पिछले लगभग 10 वर्ष से रजनीगंधा की खेती कर रहे हैं।

"बाजार में मांग को देखते हुए रजनीगंधा की खेती काफी फ़ायदेमंद साबित हो रही है। एक बार लगाने पर तीन से चार साल तक उत्पाद ले सकते है। अगर किसान इसकी खेती करना चाहते हैं यही समय है जब वो इसकी तैयारी कर सकते हैं," कृष्ण कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया।


रजनीगंधा की खेती कैसे करें, इस सवाल के जवाब में कृष्ण कुमार बताते हैं कि रजनीगंधा की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी ज्यादा अच्छी मानी जाती है लेकिन इसे किसी भी तरह की मिट्टी में लगा सकते हैं। बस, इसके लिए खेत या क्यारियां ऐसी होनी चाहिए जिनमें पानी का समुचित निकास हो। खेत में गोबर की खाद या कम्पोस्ड खाद डालकर कई बार जोत कर अच्छी तरह मिट्टी की भुरभुरी कर ले। एक बीघा ज़मीन पर रजनीगंधा लगाने के लिए लगभग 5 कुंतल बीज यानी कंद (गांठ) की आवश्यकता होती है। कंद (गांठ) का आकार दो सेंटीमीटर व्यास (लगभग 20 से 25 ग्राम वजन) से कम नही होना चाहिए। कंद (गांठ) अच्छी और स्वस्थ हो तो अंकुर जल्दी आता है।

रोपाई करने के लिए कृष्ण कुमार बताते हैं कि पंक्ति में एक-एक कंद को ज़मीन में 3 से 5 सेंटीमीटर की गहराई में गाड़ते हुए एक कंद से दूसरी कंद की दूरी 12 से 15 इंच होनी चाहिए। जबकि एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति की दूरी 20 से 25 इंच होनी चाहिए। जिससे पौधों के विकास की पर्याप्त जगह बनी रहे। रोपाई करते समय खेत में पर्याप्त नमी हो जिससे अंकुरण तेजी से होने लगता है। इसके बाद समय-समय पर नमी बनाए रखने के लिए हल्की सिंचाई करते रहे। खरपतवार की स्थिति को देखकर निराई से खरपतवार निकालते रहे। जिससे पौधों में नियमित वृद्धि होती रहे, खरपतवार के लिए रासायनिक दवाओं के बजाय निराई-गुड़ाई अधिक लाभकारी होती है। 60 से 80 दिन होने पर पेड़ में कलियां बननी शुरू हो जाती हैं। इस समय निराई करते समय जैविक खाद या कम्पोस्ड खाद डाल कर निराई-गुड़ाई करें तो ज्यादा लाभप्रद रहेगा।


रजनीगंधा की सही देखभाल करने पर 120 से 140 दिन में फूल तैयार हो जाते हैं, फरवरी से मार्च में लगाई गई फसल जुलाई में फूल देने लगती हैं। इसके बाद यह लगातार फूल देती रहती है। ज्यादा सर्दी होने पर ( जनवरी से फरवरी के बीच ) फूल आना बंद हो जाते हैं, परन्तु मौसम में गर्मी आते ही (मार्च के आने पर) फिर से फूल निकलने लगते हैं। अच्छी तरह देखभाल करने पर एक पेड़ में 60 से 80 फूल तक निकल सकते हैं। एक बीघे रजनीगंधा में रोज़ में 1,000 से 1,200 तक फूल आ सकते हैं।

कृष्ण कुमार बताते हैं कि फूल निकलते समय खेत मे पर्याप्त नमी बनाए रखे और समय से खरपतवार निकालते रहे। रजनीगंधा एक बार लगाने पर 3 से 4 साल तक लगातार फूल देती रहती है। वैसे तो रजनीगंधा में रोग कम लगता है लेकिन फिर भी फसल को लगातार देखते रहे किसी भी तरह का परिवर्तन या रोग का असर दिखने पर विशेषज्ञ की सलाह से ही उपचार करें।

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