आप भी शुरु कर सकते हैं गिनी फाउल पालन, मुर्गियों से ज़्यादा मुनाफा है इसमें

अगर आप पोल्ट्री फार्मिंग में कुछ नया करना चाहते हैं तो आप गिनी फाउल पालन शुरु कर सकते हैं; पिछले कुछ सालों में बाज़ार में इनकी माँग भी तेज़ी से बढ़ी है।

Update: 2024-02-22 07:31 GMT

मुर्गी पालन में दवाइयों और टीकाकरण में काफी खर्च हो जाता है, लेकिन गिनी फाउल को किसी तरह का कोई भी टीका नहीं लगता है और न ही कोई अलग से दवा दी जाती है।

पाँच साल पहले अज़ीजुल रहमान जब अपने गाँव में नई तरह की मुर्गी लेकर आए; तो सब को लगा कि क्या उठा लाए हैं। लेकिन आज मुर्गी से उनकी बढ़िया कमाई हो रही है; ये नई मुर्गी है गिनी फाउल।

रायबरेली जिले के नसीराबाद गाँव के रहने वाले अज़ीजुल रहमान ने करीब तीन साल पहले 500 गिनी फाउल से शुरुआत की थी, अभी उनके पास 1500 से अधिक गिनी फाउल और 50 टर्की भी हैं।

अज़ीजुल रहमान गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "तीन-चार साल पहले लखनऊ के जानने वाले से गिनी फाउल के बारे में पता चला था; हमारे यहाँ मुर्गी पालन शुरू से होता आया है तो सोचा क्यों न कुछ नया किया जाए।"

"इसके बारे में पता करके एमपी से इनके 500 बच्चे लेकर आया; उन्हें तैयार किया तो गाँव में सारे गिनी फाउल बिक गए। उसके बाद 1700 के लगभग बच्चे लेकर आया था, जिनमें से कुछ मर भी गए। लेकिन अभी अच्छी तैयार हो गए हैं, "रहमान ने आगे बताया।

हर हफ्ते रविवार के दिन अजीजुल लखनऊ के बाज़ार में गिनी फाउल बेचने जाते हैं।

50 रुपए के लगभग चूजे मिलते हैं, अगर बाज़ार अच्छा रहा तो 800 से 1000 रुपए में एक जोड़ा बिक जाता है। पिछले कुछ वर्षों में गिनी फाउल पालन का चलन तेजी से बढ़ा है, मांस और अंडे के लिए पाल सकते हैं। इसकी सबसे अच्छी बात ये होती है इसको पालने में बहुत ज़्यादा लागत भी नहीं आती है।

हर रविवार अजीजुल अपने घर से लगभग 105 किमी दूर राजधानी लखनऊ में गिनी फाउल बेचने जाते हैं; साथ ही उनके गाँव से भी लोग लेकर जाते हैं। उनको देखकर उनके पास के दो और भी लोगों ने गिनी फाउल पालन शुरू कर दिया है।

कितना ख़र्च आता है इसे पालने में

केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, बरेली की प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सिम्मी तोमर गिनी फाउल पालन, देखरेख से लेकर इनके बाज़ार के बारे में बताती हैं, "छोटे किसान जिनके पास ज़मीन कम है, उन किसानों के लिए गिनी फाउल बहुत उपयोगी है; इसलिए इसे लो इन्वेस्टमेंट बर्ड भी बोलते हैं, इसके रहने के लिए घर में कोई खर्च नहीं लगता है और न ही इसके दाने और दवाई पर अलग से खर्च करना होता है।"

इसका जो आवास बनाया जाता है, वो बस इसे रखने के लिए बनाया जाता है। धूप, सर्दी और बारिश का इनपर असर नहीं होता है, अगर इन्हें खुले में भी रखते हैं तो कोई असर नहीं पड़ता है। दूसरी चीज जो फीड के बारे में, किसी भी मुर्गी पालन की अगर बात करें तो 60 से 70 प्रतिशत खर्च उत्पादन लागत फीड पर ही आती है। लेकिन गिनी फाउल पालन में आपका ये खर्च बच जाता है। क्योंकि ये चुगती हैं, तो जो छोटे किसान हैं और गाँव में बूढ़े और बच्चे इन्हें चराकर (चु्गाकर) ला सकते हैं। इसलिए वहाँ पर थोड़ा बहुत दाना देने की ज़रूरत पड़ती है। इससे आपका आहार का खर्च भी बच जाता है।

गिनी फाउल पालन अंडे और माँस दोनों के लिए किया जाता है, 12 हफ़्तों में इसका वजन 10 से 12 सौ ग्राम तक हो जाता है। 

अजीजुल भी इन्हें बाहर चुगाने ले जाते हैं, वो कहते हैं, "धान कटने के बाद इन्हे रोज़ बाहर लेकर जाता था, इनकी खास बात ये होती है कि ये मुर्गियों की तरह तेज़ी से भागती नहीं हैं।"

इसी तरह मुर्गी पालन में दवाइयों और टीकाकरण में काफी खर्च हो जाता है, लेकिन गिनी फाउल को किसी तरह का कोई भी टीका नहीं लगता है और न ही कोई अलग से दवा दी जाती है। इस तरह से ये ग्रामीण क्षेत्रों के लिए काफी उपयोगी होता है।

इसकी एक और खासियत होती है, इसके अंडे के छिलके दूसरे अंडों के मुकाबले दो से ढाई गुना ज़्यादा मोटा होता है, इसलिए ये आसानी से नहीं टूटता है और जहाँ पर बिजली वगैरह नहीं होती है; वहाँ पर भी मुर्गी के अंडों की तुलना में देर से खराब होते हैं। जैसे कि गर्मियों के दिनों में मुर्गी का अंडा खुले में बिना फ्रिज के सात दिन में सड़ जाता है, वहीं इसका अंडा 15 से 20 दिनों तक सुरक्षित रहता है।

बिहार के कई किसान इससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, गिनी फाउल पालन से वो आठ से दस लाख रुपए तक कमाई कर रहे हैं। अभी ज़्यादा लोगों की इसकी जानकारी नहीं है, इसलिए बड़े शहरों में इसकी माँग है। इसकी सबसे अच्छी बात होती इसे दो-तीन पक्षियों से भी शुरुआत कर सकते हैं।

कहाँ की है गिनी फाउल

ये मूल रूप से अफ्रीका गिनिया द्वीप की रहने वाली है, उसी के नाम पर इसका नाम गिनी फाउल रखा गया है। वैसे इसका पूरा नाम हेलमेट गिनी फाउल है, इसकी कलगी को हेलमेट बोलते हैं, जो कि हड्डी का होता है। इसलिए इसका हेलमेट गिनी फाउल नाम मिला है।

इसकी कलगी से मादा और नर की पहचान की जाती है, 13 से 14 हफ्तों में मादा की कलगी नर के आपेक्षा में छोटा होता है। कोई किसान व्यावसायिक तरीके से गिनी फाउल पालन शुरू करना चाहता है तो 50 से 10 बर्ड्स से शुरुआत कर सकता है। इसके चूजे की कीमत 17-18 रुपए तक होती है।

इसकी सबसे अच्छी बात होती इसे दो-तीन पक्षियों से भी शुरुआत कर सकते हैं।

गिनी फाउल पालन अंडे और माँस दोनों के लिए किया जाता है, 12 हफ़्तों में इसका वजन 10 से 12 सौ ग्राम तक हो जाता है। अप्रैल से अक्टूबर तक इनका प्रोडक्शन होता है, इस दौरान ये 90 से 100 अंडे तक देती हैं, पूरी दुनिया में जहाँ पर दिन लंबे होते हैं और रात में तापमान अधिक होता है। उसी समय ये अंडे देती हैं। लेकिन पिछले चार-पाँच साल में केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान ने कई नए शोध किए हैं, जिससे ये सर्दियों में भी अंडे देती हैं।

अधिक जानकारी के लिए यहाँ करें संपर्क

अगर आप भी गिनी फाउल पालन का प्रशिक्षण या फिर चूजे लेना चाहते तो, केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान बरेली से संपर्क कर सकते हैं। जहाँ पर इसका प्रशिक्षण भी दिया जाता है और साथ ही चूजे भी मिल जाते हैं।

केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, बरेली (Central Avian Research Institute)

Phone Numbers: 91-581-2303223; 2300204; 2301220; 2310023

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