मध्य प्रदेश के इस जिले में अफीम किसानों के घर बेटा-बेटी का रिश्ता क्यों करना चाहते हैं स्थानीय लोग

सरकारी नियंत्रण में होने वाली अफीम की खेती कभी भारत के कई राज्यों में होती थी, लेकिन पिछले कुछ दशकों में ये राजस्थान, मध्य प्रदेश और यूपी के कुछ हिस्से में सिमटकर रह गई है। मध्य प्रदेश के मंदसौर में अफीम की खेती करने वालों को सम्मान की नज़र से देखा जाता है।

Update: 2024-02-28 12:47 GMT

मध्य प्रदेश के मंदसौर में अब बेटी का रिश्ता अफीम की खेती करने वाले परिवार में तय होना किसी सम्मान से कम नहीं है; वजह साफ़ है आर्थिक सम्पन्नता।

प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 350 किलोमीटर दूर मंदसौर के ज़्यादातर गाँव में अफीम की खेती होती है।

"अगर आपके पास अफीम की खेती का लाइसेंस है तो गाँव और रिश्तेदारी में आपका मान सम्मान होगा; यही नहीं आपके घर रिश्ते भी जल्दी आएँगे।" मंदसौर में अफीम के किसान कमल कुमार पाटीदार ने गाँव कनेक्शन को बताया।

वे आगे कहते हैं, "आपको लग रहा होगा कि आखिर अफीम की खेती में ऐसा क्या है? दरअसल अफीम की खेती वही कर सकता है, जिसके पास सरकार की तरफ से दिया गया लाइसेंस होगा, बिना लाइसेंस इसकी खेती कानूनी रूप से अपराध है, जिस पर कड़ी सजा हो सकती है।"


मंदसौर जिले में इन दिनों अफीम की फसल तैयार हो गई है और किसानों का अधिकतर समय खेत में बीत रहा है, लेकिन इसकी खेती करने वाले किसानों को चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है।

सुबह से खेत की देखभाल कर रहे किसान कमल कुमार पाटीदार एक-एक पौधे को देखते हैं कि सब सही चल रहा है न। कमल कुमार गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "मैं 30 साल से खेती कर रहा हूँ; पहले दो बार में लाइसेंस मिला था, लेकिन फसल खराब हो गई थी तो फसल को नष्ट करना पड़ा ; उसके बाद फिर मुझे लाइसेंस मिला ।"

वो कहते हैं, "इस खेती में कई पाबंदियां है, 10 आरी या 5 आरी का लाइसेंस मिलता है; अब अफीम के मार्फिन के आधार पर लाइसेंस मिलता है, आपकी अफीम सही हुई तो ठीक, नहीं तो आने वाले साल में आपका लाइसेंस निरस्त कर दिया जाता है; किसान कैसे भी करके लाइसेंस को बचाने के लिए नुकसान भी सहन कर लेता है, लाइसेंस को किसान बरकरार रखता है, अफीम की खेती करना बहुत रिस्की काम होता है।"

केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो के अनुसार साल 2018-19 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 69455 किसानों के 6949 हेक्टेयर ज़मीन को लाइसेंस दिया गया था। जबकि इन राज्यों में 6107 हेक्टेयर में अफीम की खेती की गई।

मंसौर के ही अमृतलाल पाटीदार के मुताबिक मध्य प्रदेश हो या राजस्थान अफीम का पट्टा सम्मान से जुड़ा है। लोगों के पास ज़मीन कम हैं। ऐसे में जिसके पास पट्टा होता है उसे लोग सम्मानित मानते हैं। वो कहते हैं, "अफीम का पट्टा है तो बेटा-बेटियों की शादी-बारात में आसानी होती है, वर्ना यहाँ क्या रखा है।"

कब होती है इसकी खेती

नवंबर में फसल की बुवाई की जाती है और मार्च अप्रैल में तैयार हो जाती है। आपको एक हेक्टेयर में इसकी खेती करने के लिए करीब 7-8 किलो बीज की जरूरत पड़ती है।

पोस्ता बीजों की बिक्री वैध अफीम फसल से होने वाली आय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। बीज निकालने के बाद बची हुई कुचली हुई फली को खसखस का भूसा कहा जाता है। इस खसखस के भूसे में मॉर्फिन अवशेषों की थोड़ी मात्रा होती है। भारत में राज्य सरकारें चिकित्सा और वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए खसखस की बिक्री को नियंत्रित करती हैं।


"पिछले साल ओलावृष्टि के चलते काफी नुकसान हो गया था; लेकिन सरकार की तरफ से कोई मुआवजा नहीं मिला था, "कमल कुमार पाटीदार ने आगे कहा।

किसान अफीम के खेत को अपने बच्चे की तरह पालते हैं, एक-एक पौधे से निकलने वाले डोडे पर चीरा लगाते हैं। इससे मॉर्फिन निकलती है, जिसे नारकोटिक्स विभाग को जमा करना पड़ता है। पूरी खेती नारकोटिक्स विभाग की निगरानी में होती है।

पिछले कुछ साल से अफीम की खेती करने वाले किसानों के सामने एक नई मुसीबत आ गई है। तोतो ने किसानों के नाक में दम कर रखा है; जो सुबह से शाम तक अफीम पर मंडराते रहते हैं और मौका मिलते ही बड़ी फुर्ती से अफीम को तोड़कर उसे अपनी चोच में दबाकर उड़ जाते हैं और बड़े मजे से अफीम खाते रहते हैं।

इसके किसानों के लिए अफीम की एक एक बूँद कीमती होती है; ऐसे में इन तोतों की वजह से किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। यह तोते इतने शातिर हैं कि किसान की नज़र झुकते ही यह अपनी चोच की सफाई दिखा जाते हैं। अफीम के एक डोडे में कम से कम लगभग 20 से 25 ग्राम अफीम तो निकलती ही है, ऐसे में तोते दिन भर में 30 से 40 बार अफीम चुराते हैं; जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है।


किसान कमल कुमार पाटीदार बताते हैं, "पहले खेत की बाउंड्री नहीं करना पड़ती थी, लेकिन अब 50 हज़ार का खर्चा आता है; खेत के चारों तरफ बाउंड्री कर जाली लगानी पड़ती है; अगर आपने जाली नहीं लगाई या फसल में बीमारी हो गई, पॉँच डोडा भी अगर गायब हो गया तो सारी ज़िम्मेदारी या रिस्क कहिए हमारी होती है।"

कहाँ कहाँ होता है अफीम का इस्तेमाल

अफीम का इस्तेमाल मॉर्फिन, थेबाइन और कोडीन जैसे एल्कलॉइड निकालने के लिए किया जाता है। अफीम निकालने के बाद, फलियों को कुचल दिया जाता है और पोस्त के बीज निकाले जाते हैं और इसका इस्तेमाल मसालों में किया जाता हे।

ज़्यादातर अफीम का इस्तेमाल दवा तैयार करने के लिए किया जाता है। लेकिन नशा की दुनिया में इसकी बढ़ती माँग के कारण इसकी खेती सिर्फ सरकारी लाइसेंस लेकर ही की जा सकती है। बिना लाइसेंस इसकी खेती कानूनी अपराध है, जिस पर कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है।

सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया के कई देशों में अफीम की खेती सरकारी नियंत्रण में होती है।

अफीम की खेती के लिए वित्त मंत्रालय की ओर से लाइसेंस जारी किया जाता है , लेकिन यह लाइसेंस हर जगह के लिए नहीं दिया जाता है। इसकी खेती कुछ ही जगहों पर की जाती है। किसान कितनी ज़मीन पर इसकी खेती कर सकता है और कहाँ करेगा सरकार ही तय करती है। लाइसेंस और इसकी खेती से जुड़ी शर्तों की अधिक जानकारी किसान क्राइम ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स की वेबसाइट से ले सकते हैं। एक बार जब आपको लाइसेंस मिल जाता है तो फिर आप नारकोटिक्स विभाग के इंस्टीट्यूट्स से अफीम का बीज ले सकते हैं।

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