डेयरी फार्मिंग का ये गणित समझ लिया तो ख़ूब होगा मुनाफ़ा

देसी गाय पालन कितना फायदेमंद हो सकता है, ये हरियाणा के राम सिंह सिंह से सीखना चाहिए, उन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ डेयरी किसान के पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है।

Update: 2023-11-25 12:10 GMT

करीब 25 साल पहले तक दो गायों से डेयरी की शुरुआत करने वाले राम सिंह को कहाँ पता था कि वो अपने जिले के सबसे बड़े पशुपालक बन जाएँगे, जिसके लिए उन्हें देश के सबसे बड़े पुरस्कार राष्ट्रीय गोपाल रत्न से सम्मानित किया जाएगा।

हरियाणा के करनाल जिले के तरावड़ी गाँव के राम सिंह और उनके भाई नरेश सिंह की साहीवाल गायों की डेयरी फार्म देखने आस पास के गाँव से लेकर पंजाब और यूपी के किसान आते हैं।

राम सिंह के बेटे 34 साल के नवदीप सिंह गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "शुरू में हमारे यहाँ भी क्रॉस ब्रीड की गई थीं, लेकिन उनमें ज़्यादा बीमारियाँ होती हैं, इसलिए डैडी (राम सिंह) ने देसी गायों को पालना शुरू किया और धीरे-धीरे हमारे पास आज 300 गाय हो गईं हैं।"


राम सिंह ने जब डेयरी फार्म की शुरुआत की तो उनके छोटे भाई पेशे से इंजीनियर नरेश सिंह ने भी उनका पूरा साथ दिया और दोनों भाई पूरी तरह से डेयरी का व्यवसाय करने लगे।

नवदीप आगे बताते हैं, "आज हर दिन कोई न कोई हमारा फार्म देखने आता है, जैसे-जैसे काम बढ़ता गया, हम दोनों भाई भी अब डेयरी में डैडी और चाचा का हाथ बँटाने लगे हैं।"

20वीं पशुगणना के अनुसार देश में गोवंशीय पशुओं की कुल संख्या 192.49 मिलियन है, जबकि मादा गायों की कुल संख्या 145.12 मिलियन है। इनमें साहीवाल किस्म की गायों की संख्या 5949674 है।


नरेश सिंह गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "गाँव में लोगों की शिकायत होती है कि दूध का सही दाम नहीं मिलता, जबकि इसका भी हल उनके पास है, अगर दूध नहीं बिक रहा तो घी बनाकर बेचिए, जो ख़राब भी नहीं होगा और अच्छा रेट भी मिल जाएगा।"

पिछले पाँच साल से हरियाणा में पशुओं को लेकर जितनी भी प्रतियोगिता हुई हैं, उनमें रामसिंह डेयरी फार्म की गाय और साँड़ जीतते आए हैं। उनके पास साहीवाल के साथ ही राठी और थारपारकर नस्ल की भी गायें हैं।

राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के मौके पर गाय और भैंस के देसी नस्लों के संरक्षण के लिए हर बार राष्ट्रीय गोपाल पुरस्कार दिया जाता है, राम सिंह को इस बार इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। सर्वश्रेष्ठ डेयरी किसान के लिए पुरस्कार के रूप में प्रथम रैंक के लिए 5 लाख रुपये दिए जाएँगे।

देसी गायों के पालन के साथ ही राम सिंह अपने 30 एकड़ ज़मीन में पूरी तरह से जैविक खेती करते हैं। नवदीप बताते हैं, "तीस एकड़ में चारा और बासमती धान की खेती करते हैं, पिछले 15-20 साल से तो हम जैविक ही खेती करते हैं।"


देसी गायों की खासियतों के बारे में नवदीप कहते हैं, "गर्मियों में भी अच्छा दूध देती हैं, जबकि विदेशी गाय गर्मियों में दूध देना कम कर देती हैं, उनपर ज़्यादा खर्च करना होता है; गर्मी में पंखा नहीं लगाना पड़ता है, बीमारियाँ इसमें नाममात्र की होती हैं।" वो आगे बताते हैं, "हॉलिस्टियन और फ्रीजिशियन को ज़्यादा चारा देना पड़ता है, उसका लेबर कॉस्ट ज़्यादा बढ़ जाता है, उनमें थनैला जैसे रोग हो जाते हैं।"

राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक समय-समय पर इन्हें सलाह देते रहते हैं। जिससे ज़्यादा दूध उत्पादन पा सकें।

राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल हरियाणा के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ एके चक्रवर्ती बताते हैं, "संकर नस्ल की गायों का दुग्ध उत्पादन तापमान बढ़ने पर कम हो जाता है। स्वदेशी नस्ल की गायें विपरीत मौसमी परिस्थितियों को झेलने में अधिक सक्षम होती हैं। साहीवाल प्रजाति की गाय एक उदाहरण है, उसे मुर्रा नस्ल की भैंस की तरह देश के किसी भी राज्य में पाला जा सकता है।"

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