किसानों के लिए सहारा बनीं सब्जि़यां

Update: 2016-03-27 05:30 GMT
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इलाहाबाद। मौसम में लगातार हो रहे बदलाव से किसानों की फ़सल ख़राब हो रही है। पहले पानी न मिलने के कारण धान की फसल ख़राब हुई, फिर बेमौसम बरसात में गेहूं और दलहन की पूरी फसल ख़राब हो गयी। इसलिए जनपद मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर कौधियारा ब्लाक के कर्मा क्षेत्र के किसानों ने अब सब्जी की खेती शुरू कर दी है, जिससे उनको फायदा हो रहा है।

गेहूं, धान और दलहन की फसल की बर्बादी के बाद अब सब्जियां इन किसानों के लिए सहारा बनी हुई हैं। यहां के कुछ किसानों ने अब सिर्फ सब्जियां बोना शुरू कर दिया है।

इन्द्रजीत (30 वर्ष) ने अपने तीन बीघे खेत में पहले आलू और अब कद्दू की खेती की है। वो बताते हैं, “पहले मैं अपने खेतों में आलू की फसल लगाता हूं और कुछ दिन के बाद उसी खेत में कद्दू के बीज डाल देता हूं, जिससे जब तक आलू की खुदाई होती है तब तक  कद्दू भी तैयार हो जाता है। अब हर दूसरे दिन दो से तीन कुंतल कद्दू बिक जाता है। एक कुंतल की कीमत 1000 से 1200 रुपए तक आराम से मिल जाती है।” वह आगे बताते हैं, “इस बार आलू की फसल भी अच्छी हुई और बाज़ार अच्छा होने से कीमत भी अच्छी मिली है।” कद्दू की खेती में इन्द्रजीत को एक बीघे में करीब 2000 रुपए का खर्च आया और मुनाफा इससे कहीं ज्यादा हुआ।

कर्मा गाँव के पास ही जसरा सब्जी मंडी है जो जनपद की सबसे बड़ी सब्जी मंडी है। इसलिए किसानों को सब्जियां बेचने के लिए भी बहुत दूर भी नहीं जाना पड़ता है।

समर बहादुर (40 वर्ष) ने अपने खेत में सिंदूरी गाज़र की खेती की है। वो कहते हैं, “लाल गाज़र ठण्ड में होती है और सिंदूरी गाज़र गर्मी में इसलिए बहुत कम लोग सिंदूरी गाज़र बोते हैं, मैंने जो गाज़र बोई है उसकी लगता लगभग एक हज़ार रुपए आई है और जब गाज़र की पैदावार होगी तो ये गाजर 50 से 60 रुपए किलो बिकेगी, जिससे हमें 15000 से 20000 रुपए तक मिल जाएगा।”

यहां की सब्जियां सिर्फ इलाहाबाद में ही नहीं बिकतीं बल्कि रीवा, चित्रकूट, कौसम्बी और आसपास के कई जिलों में जाती हैं। यहां के किसानों के मुताबिक अगर किसी सब्जी की फसल में घाटा हो गया तो दूसरी फसल में निकल आता है, जबकि अगर धान में घाटा हो गया तो वो गेहूं में नहीं निकल पाता है। इसलिए हम लोग सब्जियों की खेती ही ज्यादा करते हैं।

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