लखनऊ/फर्रुखाबाद। किसान कम खर्च और कम अवधि वाली फसलें लगा मुनाफा कमा सकते हैं। अप्रैल से जुलाई के बीच लौकी, तरोई, बैंगन, टमाटर जैसी फसलें उगाई जा सकती हैं। कृषि विशेषज्ञों, जागरूक किसानों ने किसान को कम समय में ज्यादा उपज देने वाली फसल लगाने की सलाह दी है।
नरेन्द्र देव कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक एसपी सिंह कहते हैं, ‘‘अधिकतर किसान गेहूं काटने के बाद धान की रोपाई तक खेत को खाली छोड़ देते हैं। अगर इस दौरान किसान कम अवधि वाली लौकी, तरोई, कद्दू, टमाटर, बैगन, लोबिया, बाजरा, मेंथा जैसी फसलों की बुआई कर सकते हैं, जो उन्हें बेहतर मुनाफा दे सकती हैं।’’
फर्रुखाबाद जिले के जैतपुर ग्राम पंचायत के नगला जैतपुर गाँव के सालिगराम (48 वर्ष) एक सफल किसान हैं। पिछले वर्ष सालिगराम पूरे उत्तर प्रदेश में मक्का पैदा करने वालों में दूसरा स्थान प्राप्त किया था।
सालिगराम कहते हैं, ‘‘मैंने 90 दिन में तैयार होने वाला मक्का बोया है। मक्का काटने के बाद मैं इसी खेत में धान भी लगा दूंगा।’’ किसानों को सलाह देते हुए बताते हैं, ‘‘किसान को चाहिए कि वो कम समय में ज्यादा लाभ देने वाली फसलें मक्का, मूंग या सब्जियों की खेती करें।’’
ये फसलें भी लाभदायक
मेंथा
कम समय में उगने वाली नगदी फसलों में मेंथा भी शामिल है। इस स्थिति में मेंथा की ‘सिम क्रांति’ किस्म लगाना किसानों के लिए उचित रहेगा। क्योंकि यह किस्म बाकी प्रजातियों से प्रति हेक्टेयर 10 से 12 फीसदी ज्य़ादा तेल देगी। सीमैप के वैज्ञानिकों के मुताबिक यह मौसम के छुट-पुट बदलावों के प्रति प्रतिरोधी है। यानि कम या ज्यादा बरसात होने पर इसके उपज में अंतर नहीं पड़ेगा। ‘सिम क्रांति’ प्रजाति से प्रति हेक्टेयर 170-210 किलो तेल प्राप्त होगा।
लोबिया
मुख्य फसल धान से पहले किसान 60 दिन में पैदा होने वाली लोबिया भी बो सकते हैं। पंत नगर कृषि विश्वविद्यालय ने ये किस्म हाल ही में विकसित की है, जो समतल इलाकों में खेती के अनुकूल है। आमतौर पर लोबिया की सामान्य किस्मों को तैयार होने में 120-125 दिन लगते हैं। अल्प अवधि लोबिया की प्रजातियों जैसे पन्त लोबिया-एक, पन्त लोबिया-दो एवं पंत लोबिया-तीन की बुआई 10 अप्रैल तक की जा सकती है। इस किस्म में पानी की बहुत कम आवश्यकता होती है, इस नई किस्म को जीरो टिलेज (बिना खेत जोते) भी उगाया जा सकता है।