प्रतापगढ़। जहां एक समय युद्ध के दौरान हवाई जहाज उतरते थे, वही हवाई पट्टी आज गोबर के कंडे सुखाने और खलिहान बनाने के काम आ रहा है और गाँव लड़कों के लिए क्रिकेट खेलने के भी।
जिला मुख्यालय से दक्षिण-पूर्व दिशा में लगभग 15 किमी दूर रानीगंज ब्लॉक के पृथीगंज द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश गवर्नमेंट नेे हवाई अड्डा बनाया बनवाया था। साल 1940 तक बने इस हवाई अड्डे में आसपास के एक दर्जन गाँवों की जमीन ली गयी थी। ये हवाई अड्डा लगभग 500 बीघे में बना था।
हवाई अड्डे पर देख रेख के लिए मकरी गाँव के रामकिशोर पाण्डेय को नौकरी पर रखा गया था। इक्यानवे वर्ष के रामकिशोर पाण्डेय उस समय को याद करते हुए बताते हैं, ''जब हवाई अड्डा बनना शुरू हुआ तो आसपास के गाँव के लोगों की तरह हम लोग भी यहां से चले गए। उस समय सभी बहुत डर गए थे उन्हीं में से हम भी थे।'' वो आगे बताते हैं, ''फिर जब हवाई अड्डे बन गया तो मुझे बुलाकर नौकरी पर रख लिया गया और तनख्वाह मिलती थी (पच्चीस रूपये) जो उस समय बहुत थी।''
यहां के मकरी, नमकशायर, अउआर, भगेसरा, खरहरे, पूरे रामा, भुईदहा, राजापुर, पूरनपुर, खरहर, घाटमपुर जैसे आसपास के एक दर्जन गाँव के लगभग पांच सौ बीघे में ये हवाई पट्टी फैला था। अब ये जगह भारतीय सेना के नाम है। कच्ची जमीन पर आसपास के गाँव के लोगों ने धीरे कब्जा कर के खेती करनी शुरू कर दी और पक्की जगह पर कंडे सूखने लगे।
गाँव के उमा शंकर पाण्डेय कहते हैं, ''इतनी जगह है लेकिन किसी काम के नहीं सेना के नाम की जमीन का दुरुपयोग हो रहा है, बीच में एफसीआई यहां गेहूं भण्डारण करने लगा था।''
मकरी गाँव के सबसे बुजुर्ग 92 वर्ष के राजदेव ओझा हवाई अड्डे के बारे में बताते हैं, ''जब हवाई अड्डा था तो कम लोग थे दूर-दूर घर थे अब इतने लोग हो गए हैं धीरे धीरे सब कब्ज़ा कर लिए।'' जिले के लोगों ने कई बार प्रयास किया कि एयरपोर्ट एक बार फिर शुरू हो जाए, जिले के ज्यादातर लोग मुंबई दिल्ली जैसे शहरों में रहते हैं।
पूर्व क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी पियूषकांत शर्मा कहते हैं, ''द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसे बनाया गया था, उसके बाद इसका अधिकार सेना के पास चला गया। कई बार लोगों ने प्रयास किया कि इसे फिर से शुरू कर दिया जाए। यहां के लोगों को फ्लाइट के लिए लखनऊ बनारस जाना पड़ता है।'' वो आगे बताते हैं, ''यहां के व्यापारी को भी बहुत परेशानी होती है। जब यहां पर सुविधा है तो बस एक बार फिर से शुरू कराना है।''