करोड़ों रुपए खर्च फिर भी हाईटेक मंडियां बनीं शो-पीस

Update: 2016-04-28 05:30 GMT
gaonconnection, करोड़ों रुपए खर्च फिर भी हाईटेक मंडियां बनीं शो-पीस

लखनऊ। किसानों को अधिक लाभ पहुंचाने के लिए प्रदेश भर में बनीं 1646 छोटी मंडियां (एग्रीकल्चर मार्केटिंग हब) शो-पीस बन गई हैं। इनमें से 500 मंडियां ज़मीनी विवाद में चालू ही नहीं हो सकीं। गाँव के लोग इनमें अब जानवर बांध रहे हैं।

उत्तर प्रदेश मंडी परिषद ने किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए करीब तीन अरब रुपये खर्च कर प्रदेश भर में 1646 एग्रीकल्चर मार्केटिंग हब बनवाए थे। मकसद था कि छोटे किसान गाँव के पास बनीं इन मंडियों में अपने उत्पादों को असानी से उचित मूल्य पर बिना किसी दिक्कत के बेच पाएंगे।

हालांकि प्रदेश भर में बने इन एग्रीकल्चर मार्केटिंग हब के बारे में मंडी परिषद के निदेशक डॉ. अनूप यादव कहते हैं, “कुल 1646 एग्रीकल्चर मार्केटिंग हब में से 1100 क्रियाशील हैं।”

आगे बताते हैं, “सहकारिता विभाग से मिली ज़मीन पर बनी मंडियों का अभी हस्तांतरण नहीं हुआ है। इसमें जमीन को लेकर विवाद था, जिसे बीच का रास्ता निकलते हुए मंडी से होने वाली आय- मंडी शुल्क का 25 फीसदी हिस्सा और दुकानों का किराया मंडी समिति सहकारिता विभाग को देगी। जिन मंडियों में दुकानों का आवंटन होने के बाद भी क्रियाशील नहीं हुई है, उनका पता कर जल्द चालू कराया जाएगा।” 

लखनऊ के हरदोई-सीतापुर रिंग रोड पर घैला, भड़सर और जेहटा खंडर में तब्दील हो रही हैं। मंडी की दुकानों के शटर टूट चुके हैं। लाखों की लागत से बनाए गए टीन शेड के बोल्ट चोरी हो गए हैं। प्रदेश में 100 वर्ग किमी के दायरे में प्रत्येक 10 किमी की दूरी पर एक एग्रीकल्चर मार्केटिंग हब का निर्माण कराया जाना था। इसके तहत मंडियों की भूमि के आधार पर चार से 10 नग तक दुकान, नीलामी चबूतरा, दो हैंडपम्प लगने थे। वर्ष 2011-12  से 2014-15 तक पंचायतीराज विभाग, सहकारिता और ग्राम समाज से ज़मीन लेकर एग्रीकल्चर मार्केटिंग हब बनवाए गए हैं।

रिपोर्टर - जसवंत सोनकर

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