मार्च-अप्रैल मेंथा की रोपाई के लिए बेहतर

Update: 2016-04-07 05:30 GMT
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लखनऊ। मेंथा की खेती नगदी खेती मानी जाती है। यह कम खर्च में अधिक मुनाफा कमाने का सबसे बेहतर तरीका है और इसे नीलगाय और जंगली सुअर जैसे जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

लखनऊ स्थित केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक संजय कुमार मेंथा की खेती के बारे में बताते हैं, “आलू, सरसों और गेहूं जैसी रबी की फसलों के बाद तीन-चार महीने तक खेत खाली रहता है, इसमें किसान मेंथा की रोपाई कर सकते हैं। 

इसकी रोपाई मार्च से अप्रैल महीने के बीच कर सकते हैं। सीमैप की सिम कोसी, सिम सरयू और अब मेंथा की नई प्रजाति सिम क्रांति को किसान लगा सकते हैं, लेकिन रोपाई करते समय ज्यादा पानी नहीं होना चाहिए नहीं तो मेंथा की जड़ें सड़ जाती हैं।’’

बाराबंकी जिले के मसौली ब्लॉक के मेढ़िया गाँव के किसान राम सिंह विश्वकर्मा (55 वर्ष) पिछले कई साल से मेंथा की खेती कर रहे हैं।

 राम सिंह बताते हैं,  ‘‘इस बार सीमैप से लाकर सिम क्रांति की नर्सरी लगाई है, मेंथा की सबसे अच्छी बात ये होती है इसको जानवर भी नहीं नुकसान पहुंचाते हैं।’’ प्रदेश में बाराबंकी सीतापुर और लखनऊ जिले के ज़्यादातर किसान मेंथा की खेती करते हैं। 

सीमैप के अनुसार मेंथा के उत्पादन में भारत शीर्ष पर है। मेंथा तेल को किसान लखनऊ, कानपुर और कन्नौज की बाजार में बेंच सकते हैं।

खेत की तैयारी

मेंथा की खेती के लिए गहरी जुताई की जरूरत होती है इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से कम से कम एक बार जुताई करें। यदि मिट्टी पलटने वाला  हल नहीं है तो हैरो से एक बार गहरी जुताई करनी चाहिए। इसी के साथ 250 से 300 कुंतल प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद खेत में मिलाएं। उसके बाद दो  या तीन जुताई देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करें और हर बार जुताई के बाद पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभूरा कर लें।

निराई-गुड़ाई

मेंथा की जड़ें अधिक गहराई जाने के कारण इनको वायु संचार की अधिक आवश्यकता पड़ती है, इसलिए निराई-गुड़ाई के से खरपतवारों को नष्ट करते हैं। साथ ही मिट्टी को भूरभूरा कर देने से वायु का संचार अच्छा हो जाता है। मेंथा में निराई-गुड़ाई दो बार की जाती है। पहली निराई-गुड़ाई मेंथा लगाने के  15 से 20 दिन के बाद और दूसरी गुड़ाई के 40 से 45 दिन के बाद करना लाभदायक होता है।

सिंचाई: मेंथा के बढ़ते समय अधिक पानी की जरूरत पड़ती है, ताकि जड़ें अच्छी तरह से विकसित हो सकें। गर्मी के दिनों में प्रत्येक सप्ताह सिंचाई करना जरूरी है। 

कटाई: इसकी पहली कटाई बरसात से पहले मई-जून में करते हैं। दूसरी कटाई बरसात के बाद सितम्बर अक्टूबर में की जाती है।

उपज: एक हेक्टेयर मेंथा की फसल से लगभग 150 किलो तेल प्राप्त हो जाता है। यदि अच्छे से प्रबंधन किया जाए और समय से रोपाई हुई हो तो 200 से 250  किलो तेल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है। मेंथा के तेल के लिए मेंथा की फसल को कटाई करने के बाद तेल निकालने वाले संयंत्र के पास फसल को ले जाते  हैं। फिर कटे हुए मेंथा को कुछ समय के लिए फैला देते हैं, जिससे पत्तियां कुछ पीली पड़ जाती हैं और वजन भी कम हो जाता है, उसके बाद  डिस्टिलेशन संयंत्र में भरकर इसे गर्म करते हैं।

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