मधुबाला के जन्मदिन पर विशेष: वो जब भी मुस्कुराती थीं बहारें खिलखिलाती थीं

उसका चेहरा आज भी अपनी एक झलक में न जाने कितनी मासूमियत, कितने दर्द और कितनी मोहब्बत लिए हुए दिखता है। 36 वर्ष की छोटी-सी ज़िंदगी में प्यार, उदासी, अलगाव और टूटे वादों को समेटे इस दुनिया से रुख़सत हो गई वो सुंदरता की मूरत मधुबाला।

Update: 2024-02-14 09:51 GMT

कहते हैं कि फिल्म मुगल-ए-आज़म के लिए मधुबाला ने बिना पैसों के काम किया था। वो केवल सेट पर दिलीप कुमार की एक झलक पाने के लिए बेताब दिखती थीं। मौत से पहले मधुबाला ने कहा था कि वह दोबारा इस दुनिया में आना चाहती हैं और एक बार फिर अभिनेत्री बनना चाहती हैं।  

हमें देखकर ये कौन छिप गया बहार?

छिपा नहीं साहिबे आलम छिपाया गया है

क्यों

संगतराश का ये दावा है कि

जब ये मुजस्सिमा बेनकाब होगा तो..

बेख़ौफ होकर कहो,

कभी-कभी दावे दिलचस्प भी हुआ करते हैं।

उसका ये दावा है कि इसे देखकर

सिपाही अपनी तलवार,

शहंशाह अपना ताज़ और इंसान अपना दिल निकालकर

उसके कदमों में रख देंगे।

संगतराश का दावा दिलचस्पी की हदों से

आगे बढ़ गया है। हम उसके फ़न का गुरूर

देखना चाहते हैं....

और शहंशाह देखता रह गया... नीली आँखें, सांचे में ढला चेहरा, दिलकश मुस्कान, मरमरी हाथ और तराशा हुआ संगमरमरी बदन...ताज़ा हवा के झोंके की मानिंद था उसकी खूबसूरती का पैमाना। मदहोश कर देने वाली ख़ुशबू और ओस-सी मासूमियत भरी ताज़गी। वो अनारकली थी।

अनारकली शब्द सुनते ही, आँखों के आगे फिल्म 'मुगल-ए-आज़म' की ख़ूबसूरत और मासूम अभिनेत्री मधुबाला का अक्स उभरता है। वो तारीख़ जिस दिन दुनिया मोहब्बत का दम भरती है, उसी तारीख 14 फरवरी,1933 को दिल्ली में जन्मी थी प्यार के रंग में डूबी यह तसवीर। एक ऐसे गरीब मुस्लिम परिवार में, जहाँ दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से मयस्सर होती थी।


अताउल्ला ख़ाँ को मुमताज की शक्ल में रोशनी की एक किरण नज़र आई। उन्होंने परिवार के साथ मुंबई जाने का फैसला कर लिया। आठ वर्ष की मुमताज मुंबई पर परचम लहराने चल पड़ी। एक दिन भाग्य ने उनके दर पर दस्तक दी। मुमताज को 'बसंत' फिल्म में मुमताज शांति के बचपन का रोल मिला। पगार सौ रुपए महीना। उस दिन पूरा घर खुशी से झूम उठा और उसे बेबी मुमताज के नाम से पहचान मिली। इसी बीच उसकी मुलाकात सुपर स्टार देविका रानी से हुई। उन्होंने उसे मधुबाला नाम दिया।

अताउल्ला ख़ाँ को मुमताज की शक्ल में रोशनी की एक किरण नज़र आई। उन्होंने परिवार के साथ मुंबई जाने का फैसला कर लिया। आठ वर्ष की मुमताज मुंबई पर परचम लहराने चल पड़ी। एक दिन भाग्य ने उनके दर पर दस्तक दी। मुमताज को 'बसंत' फिल्म में मुमताज शांति के बचपन का रोल मिला। पगार सौ रुपए महीना। उस दिन पूरा घर खुशी से झूम उठा और उसे बेबी मुमताज के नाम से पहचान मिली। इसी बीच उसकी मुलाकात सुपर स्टार देविका रानी से हुई। उन्होंने उसे मधुबाला नाम दिया।

काम बढ़ने लगा और दिल ख्वाबों के आसमाँ तले उड़ने लगा। 1947 में चौदह वर्ष की उम्र में केदार शर्मा ने अपनी फिल्म 'नील कमल' में बतौर लीड हीरोइन साइन किया। उनकी ख्याति भोर के सूरज की तरह अचानक उगकर दुनिया को चौंका गई। जब मधुबाला 'पराई आग की शूटिंग में थीं, तब उसकी नज़र कमाल अमरोही पर पड़ी। कमाल मधुबाला के सौंदर्य को परदे पर उतारना चाहते थे। उन्हें अपनी फिल्म 'महल के लिए ऐसी अदाकारा की दरकार थी, जो बिना आत्मा की प्रेतात्मा जैसी नज़र आए और मधुबाला उनके इस पैमाने पर खरी उतरती थी।

कमाल ने उसकी सुंदरता को बड़ी ही नफासत से इस फिल्म के एक गीत 'आएगा आने वाला' में प्रस्तुत किया। इसी के साथ दोनों का प्यार भी खूब परवान चढ़ा, लेकिन यह साथ चंद दिनों का था। कमाल शादीशुदा थे। एक बार शूटिंग के लिए निकलते समय मधुबाला को खांसी आई। मुँह में कफ के साथ खून आया। बाद में पता चला दिल में छेद है। 1954 में मद्रास में फिल्म 'बहुत दिनों' की शूटिंग के दौरान उसे खून की उल्टी हुई। यह ख़बर मीडिया में आग की तरह फैल गई। एक तरफ वो बीमारी से लड़ रही थी, तो दूसरी तरफ उसकी शोहरत आसमां छू रही थी। अब वो प्यार की तलाश में थी।

फिर उनकी जि़ंदगी में प्रेमनाथ आए, लेकिन यह सिलसिला जल्दी ही टूट गया। फिल्म 'तराना' के सेट पर दिलीप कुमार से आँखें चार हुईं। मधुबाला ने अपनी मेकअप आर्टिस्ट के जरिए उन्हें लाल गुलाब और उर्दू में लिखा ख़त भेजा। दिलीप ने प्यार की इस निशानी को खुशी-खुशी कुबूल कर लिया। उन दिनों मधुबाला बेहद खुश थी। वह दिलीप साहब की बेइंतहा मोहब्बत में खोई हुई थी। उनकी सच्ची मोहब्बत परदे पर भी नज़र आ रही थी। लेकिन इस रिश्ते पर किसी का पहरा था। अताउल्ला खाँ इस रिश्ते से नाखुश थे।


पिता की सख्त मिजाजी के कारण दोनों को छुपकर मिलना पड़ता था। उनके रोमांस की खुशबू के आसिफ की फिल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' में बिखरने लगी। इधर, दोनों के निकाह के चर्चे शुरू हुए और उधर दोनों के बीच गलतफहमियों ने जगह बनानी शुरू कर दी। इसी बीच 'नया दौर के लिए बी.आर. चोपड़ा ने दोनों को साइन कर लिया। आउटडोर शूटिंग को लेकर अताउल्ला खाँ की नाराज़गी ने मामले को अदालत तक पहुँचा दिया। मधुबाला और दिलीप के रास्ते जुदा हो गए। दिलीप मधुबाला से शादी के लिए तैयार थे, लेकिन इस शर्त पर कि उसे अपने पिता से सारे रिश्ते तोड़ने होंगे। वह खामोश रही। उसके बाद दिलीप उसकी दुनिया से ऐसे गए कि फिर कभी ना लौटे। मधुबाला के चारों ओर घनी उदासी और पस्तगी थी।

मधुबाला ने हमेशा एक आदर्श पत्नी होने का सपना देखा था, लेकिन पिता के स्वार्थ के कारण उसे सच्चा प्यार हासिल नहीं हुआ। वहीं के. आसिफ की 'मुग़ल-ए-आज़म पूरी होने में नौ वर्ष लग गए। फिल्म पूरी हुई और उसके नाम न जाने कितने रिकॉर्ड दर्ज हुए, न जाने कितने अवॉर्ड। हॉलीवुड के अखबार भी मधुबाला की शान में कसीदे पढ़ रहे थे। उसे 'वीनस ऑफ इंडियन सिनेमा' की उपाधि दी जा रही थी, पर उसका स्वास्थ्य साथ छोड़ रहा था। मरने से पहले वह शादी के बंधन में बंधना चाहती थी। इसी बीच उसके जीवन में भारत भूषण, प्रदीप कुमार और किशोर कुमार के प्रस्ताव आए।

आखिरकार मधुबाला ने किशोर कुमार से शादी कर ली, लेकिन दिलीप की जगह वो किसी को न दे पाई। किशोर कुमार के साथ हार्ट सर्जरी के लिए लंदन गईं। वापसी पर उन्हें महसूस होने लगा कि किशोर के साथ शादी उनकी सबसे बड़ी भूल थी। मधु अपने पुराने घर लौट आई। मौत की पदचाप अब उसे साफ सुनाई देने लगी थी। अंतिम दिनों में उसने अपनी पसंदीदा सभी फिल्में देख लीं। जिनमें मुगल-ए-आज़म, बरसात की रात, चलती का नाम गाड़ी और महल थी। वो खुद के लिए उर्दू कविताएँ गाती।

प्यार किया तो डरना क्या उन्होंने करीब पाँच बार देखी। आखिरी दिनों में उनकी दिलीप कुमार से बातचीत होने लगी थी। वो मरना नहीं चाहती थी। 23 फरवरी, 1969 को लंबी बीमारी के बाद एक घुप्प काली रात में बेचैन दिल की धड़कनें सो गईं। दिल में कई अधूरे सपने लिए मधुबाला ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उसे उसकी डायरी के साथ दफनाया गया। उस समय दिलीप कुमार अपनी फिल्म की शूटिंग के लिए मद्रास गए थे। वापसी तक उसे सुपुर्द-ए-ख़ाक किया जा चुका था। दिलीप कुमार सीधे कब्र पर पहुँचे। वो देर तक देखते रहे उसे, दुआ करते रहे और याद करते रहे उन गुजरे हसीन लम्हों को, जो अब याद बन चुकी थीं।

खुशनसीब, जिसे मिला पहला गुलाब

कहते हैं कि बचपन के साथी लतीफ़ जिनसे मधुबाला को पहला प्यार हो गया था, ने उनकी कब्र पर वही लाल गुलाब रखा, जो उसने रुख़सती के वक्त लतीफ़ को इस वायदे के साथ दिया था कि वो लौटकर आएगी। लतीफ़ सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी थे। लोगों का कहना है कि हर साल वो मधुबाला की पुण्यतिथि पर उनकी क़ब्र पर जाकर लाल गु़लाब के फूल चढ़ाते थे।

यादों के झरोखे से

मधुबाला ने 12 वर्ष की उम्र में फिल्म निर्माता मोहन सिन्हा से कार चलाना सीखा।

देश में आज भी सबसे ज़्यादा अगर किसी अभिनेत्री के पोस्टर बिकते हैं, तो वह मधुबाला हैं।

वो हॉलीवुड की प्रशंसक थी। उन्हें शुरू में सिर्फ उर्दू और पश्तो ही आती थी। बाद में उन्होंने धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलना सीखा। वे होम प्रोजेक्टर पर अमेरिकन फिल्में भी देखती थीं।

कहते हैं कि फिल्म मुगल-ए-आज़म के लिए मधुबाला ने बिना पैसों के काम किया था। वो केवल सेट पर दिलीप कुमार की एक झलक पाने के लिए बेताब दिखती थीं। मौत से पहले मधुबाला ने कहा था कि वह दोबारा इस दुनिया में आना चाहती हैं और एक बार फिर अभिनेत्री बनना चाहती हैं।  

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