बेग़म परवीन सुल्ताना को सुनना किसी देवालय की सीढ़ियाँ चढ़ना जैसा है

कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनकी आवाज़ एक बार सुनते ही ज़ेहन में हमेशा के लिए बस जाती है, ऐसी ही आवाज़ है बेगम परवीन सुल्ताना की।

Update: 2023-07-03 13:07 GMT

बारिश का मौसम आते ही भोपाल के कलाप्रेमी जिस चीज़ का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं वो है बादल और बादल राग और भारत भवन का पावस की विविध छवियों पर आधारित समारोह।

ये समारोह और यहाँ आने वाले कलाकार हम भोपाल वासियों को इतराने का मौका देते हैं। अब कितने लोग होंगे, जिन्हें अपने जीवन में भारत भर की लगभग सभी नामचीन, मूर्धन्य कलाकरों को देखने सुनने का मौका मिला हो!

एक ऐसी ही शाम एक हस्ती, जिनकी आवाज़ से सराबोर होकर लौटी थी।

वो शाम रिमझिम बूँदों के साथ हवा में घुल रही थी एक ऐसी आवाज़ को कभी मेघ सी गर्जना लिए सुनाई पड़ती तो कभी रुई के फ़ाहे जैसी कानों को सहला जाती। सुन आई हूँ बेगम परवीन सुल्ताना को।

बादल राग का आगाज़ हुआ सरोद सितार और वाइलिन की तिगलबंदी से। उसके बाद थोड़े इंतज़ार के बाद मंच पर आईं लंबी बिंदी से सजा माथा और मुस्कुराती सूरत लिए शाम की ख़ास मेहमान, परवीन सुलताना जी।

उनके आने के पहले जितनी देर मंच खाली रहा, श्रोता साँस रोके बैठे रहे। खामोशी से इंतज़ार भी तो प्यारा होता है।


श्रोताओं से रूबरू होने के बाद सबसे पहले बेगम परवीन सुल्ताना ने राग मियाँ मल्हार छेड़ा। आमतौर पर पुरुषों द्वारा गाए जाने वाले इस राग को गाते हुए उनका गला ऐसा सधा रहा कि श्रोता किसी और ही लोक में पहुँच गए। मुझे ऐसा लगा जैसे किसी पहाड़ की चोटी पर बने देवालय की सीढ़ियाँ चढ़ रही हूँ ...

बिजुरी चमके डर लागे गाने वाली इस गायिका को किसी राग, किसी तान से ज़रा डर नहीं लगता तभी तो मात्र 23 बरस की उम्र में पद्मश्री से नवाज़ी गई।

इसके बाद बारी थी राग हँस ध्वनि पर आधारित तराने की। सच कहूँ तो मुझे राग रागिनियों की ज़रा समझ नहीं, पर अगर कोई दैवीय शक्ति आपकी उँगलियाँ थामे आपको सुर-संगीत के लोक में ले जाए तो फ़िर क्या समझना क्या बूझना! बस डूबना, उतराना...

गाना गाते हुए बेगम को लगातार गर्मी लगती रही और वो ठिठोली करती रहीं और सुनाई मिश्र पीलू की एक प्यारी सी ठुमरी – तुम राधे बनो श्याम, सब देखेंगी ब्रिजबाला ...

फिर भारत भवन का अंतरग और श्रोताओं के मन भक्ति में डूब गए जब उन्होंने मीरा का भजन गाया। परवीन सुल्ताना जी ने बताया कि वो कई मल्हार से बना है सो मल्हार माला कहलाता है।

कार्यक्रम शुरू होने के पहले विनय उपाध्याय जी की मनमोहक उद्घोषणा तो थी ही साथ ही साथ उन्होंने श्रोताओं को मंच के पास चले आने को कहा तो माहौल ऐसा बन गया जैसे एक परिवार से सदस्य मिल कर बैठे कोई उत्सव मना रहे हों। सारी शाम सुन के भी जी तो भरना नहीं था पर जब परवीन जी ने – “हमें तुमसे प्यार कितना, ये हम नहीं जानते” गाना शुरू किया तो दिल चाहा काश उन्हें बता पाती कि कितना प्यार करते हैं हम सब उन्हें।

गाने के दौरान वो रिकॉर्डिंग के गुदगुदे, रोचक किससे भी सुनाती रहीं।

शाम खत्म होती, हम उदास होते, मगर आखिर में जब बेगम परवीन सुल्ताना ने “भवानी दयानी” गाना शुरू किया तो मन तृप्त हो गाया। सुनते हुए रोंगटे खड़े हो गए, ऐसा लगा रुलाई आने को है ...

बहुत बहुत खुश होना कैसा लगता है ये महसूस कर आई हूँ ...

जी भर संगीत भर आई हूँ अपनी झोली में।

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