मध्यप्रदेश के ताराचन्द्र किसानों को दे रहे जैविक खेती की सीख

Update: 2016-06-03 05:30 GMT
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लखनऊ। जहां एक ओर किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है, वहीं कुछ ऐसे भी किसान हैं, जो खेती के परंपरागत तरीकों से ही खेती में अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गाडरवाड़ा गाँव में रहने वाले किसान ताराचन्द्र बेलजी (40 वर्ष) पिछले छह साल से जैविक खेती कर रहे हैं। यही नहीं उनके आस-पास के हजारों किसान उन्हीं से प्रेरणा लेकर पूरी तरह से जैविक खेती कर रहे हैं। 

अपने खेती की शुरुआत के बारे में ताराचन्द्र बताते हैं, “अक्सर किसानों से सुना करता था कि खेती घाटे का सौदा है। ये बात मेरे दिमाग को परेशान करती थी और मैं सोचता था कि ऐसा हम क्या प्रयास करें, जिससे हमारे किसान भाई खेती को घाटे का सौदा न मानकर मुनाफे का सौदा समझें।”

वो आगे कहते हैं, “इसके लिए आज से 15 साल पहले खेती पर अध्ययन शुरू किया, पांच साल लगातार अध्ययन करने के बाद, कई कृषि संस्थानों में भ्रमण किया, कई कृषि वैज्ञानिको से प्रशिक्षण लेने के बाद पिछले छह वर्षों से पूरी तरह जैविक खेती को अपना लिया है।”

एक खेत में एक साल में कम दिनों की तीन से चार फसलें मुख्य रूप से मूंग, अरहर, मटर, ज्वार, बाजरा ले लेते हैं, जैविक ढंग से खेती करने में लागत तो कम लगती ही है साथ ही सिंचाई में भी बहुत बचत होती है और ये अनाज हमारी सेहत के लिए भी लाभदायक है, कई जिलों के साथी अक्सर नरसिंहपुर गाँव  में जैविक खेती को देखने के लिए आते रहते हैं |

ताराचन्द्र बेलजी प्राकृतिक खेती शोध संस्थान नरसिंह पुर, मध्यप्रदेश के अन्वेषक और संस्थापक भी हैं। उन्होंने खेती के सोलह पाठ, प्रकृति का जीवन विज्ञान भगवान जैसी कुछ किताबें लिखी हैं और प्रतिदिन शून्य लागत पर कई जगहों पर प्रशिक्षण भी देते हैं, मंशा ये है कि किसान खेती को घाटे का सौदा न समझे और कृषि छोड़कर पलायन न करें।

रिपोर्टर - नीतू सिंह

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