मदरसों और आधुनिक शिक्षा के बीच दूरियां खत्म करने की जरूरत

Update: 2016-03-30 05:30 GMT
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नई दिल्ली (भाषा)। मुस्लिम बुद्धिजीवियों और इस्लामी जानकारों ने कहा कि मदरसों और आधुनिक शिक्षा के बीच बना दी गई दूरियों को खत्म करने की जरुरत है ताकि इस्लामी तालीम हासिल करने वाले बेहतर ढंग से अपनी बात लोगों के समक्ष रख सकें

गैर सरकारी संगठन ‘इंडियन माइनॉरिटी फोरम' की ओर से मंगलवार की रात गालिब अकादमी में आयोजित ‘मदरसा और आधुनिक शिक्षा' विषय पर परिचर्चा में मुस्लिम जानकारों ने अपना विचार रखाकार्यक्रम में जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर जुनैद हारिस ने कहा, ‘‘मदरसों की तालीम और आधुनिक शिक्षा के बीच जानबूझकर दूरियां पैदा कर दी गई। ये दूरियां किसी और ने नहीं, हमारे ही समुदाय के कुछ लोगों ने पैदा की है मदरसों को सिर्फ धार्मिक शिक्षा तक सीमित कर दिया गया, जबकि मदरसे का असल मतलब सिर्फ धार्मिक शिक्षा देना नहीं होता है''

प्रोफ़ेसर जुनैद ने कहा, "अगर मदरसे से पढ़कर निकलने वाला मौलवी या हाफिज अंग्रेजी, हिंदी और दूसरी भाषाएं नहीं जानेगा तो फिर वह इस्लाम के बारे में सही चीजें लोगों कैसे बता सकेगा। इस्लाम में आधुनिक शिक्षा की कहीं मनाही नहीं है इसलिए ये जो दूरियां पैद कर दी गई हैं उनको खत्म करने की जरुरत है''

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष कमर अहमद ने कहा, "सरकार ने मदरसों के आधुनिकीकरण को लेकर योजना शुरु की है उसका हमें फायदा उठाना चाहिए। धर्मिक शिक्षा के साथ आधुनिक शिक्षा हासिल करने के बाद मदरसों से निकलने वाले बच्चे नौकरी के बाजार में दूसरों का मुकाबला कर सकेंगे।'' मक्का आधारित मौलवी ओजैर शम्स ने कहा, "मदरसों की यह शक्ल सिर्फ भारतीय उप महाद्वीप में देखने को मिलती है मदरसों का यह कतई मतलब नहीं है कि वहां सिर्फ धार्मिक शिक्षा दी जाए। इस तस्वीर को बदलने की जरुरत है अगर इसे नहीं बदला गया तो मदरसों का वजूद खत्म हो जाएगा।''

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