महिला सशक्तीकरण की पहचान है ‘हापा’

Update: 2016-08-05 05:30 GMT
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लखनऊ। सावन का महीना महिलाओं और लड़कियों की कोमल भावनाओं को व्यक्त करता है। झूला, कजरी, मेहंदी और चूड़ी। मगर राजधानी की शहरी सीमा से बाहर निकलते ही सुल्तानपुर रोड के अहमामऊ गांव में इसी सावन में ही महिला सशक्तीकरण के नजारे भी दिखाई देते हैं। यहां होती है महिलाओं के बीच कुश्ती जिसको नाम दिया गया है, हापा।

लगभग 100 साल पुरानी ये परंपरा है, जिसमें नागपंचमी के दिन महिलाएं पूजा पाठ कर के निकलती हैं। फिर शुरू होता है दंगल। जिसमें पुरूषों का प्रवेश पूरी तरह से प्रतिबंधित होता है। लखनऊ के अहमामऊ में हर साल नागपंचमी पर मेले का आयोजन किया जाता है। इस बार आठ अगस्त को ये आयोजन होगा। यह मेला कई दिनों तक चलता है। इस दौरान गांव की महिलाएं यहां कुश्ती का अयोजन भी करती हैं। इसे ‘हापा’ कहा जाता है।

महिलाओं के बीच दंगल की प्रथा पिछले कई सालों से चली आ रही है। पूजा-पाठ के अलावा महिलाएं मैदान में एक-दूसरे को ललकारती हैं। ‘हापा’ के दौरान सुरक्षा के लिए महिला पुलिस बल भी लगाया जाता है। गांव में चूल्हा-चौका करने वाली महिलाओं का ‘हापा’ में बिल्कुल अलग ही रंग दिखता है। एक-दूसरे को ललकारना और पूरे जोश के साथ दंगल करना। सच में इनका जोश यहां देखते ही बनता है। सबसे खास बात यह है कि इस दंगल में पुरुषों का आना मना रहता है।

‘हापा’ में पुरुषों का आना पूरी तरह से मना होता है। यहां तक कि यदि कोई पुरुष अपनी घर की छत पर भी खड़ा होता है तो उसे भी अंदर जाने के लिए कहा जाता है। ताकि कोई इसे देख ना सके। महिलाओं के साथ केवल छोटे बच्चों को ही आने की अनुमती होती है। करीब 100 साल से पहले नवाबों के जमाने में बेगम यहां आकर आराम फरमाती थीं। उस समय नाच-गाना और खाना-पीना होता था। महिलाएं आपस में मुंहजुबानी चुहलबाजी करती थीं, आज समय के साथ सब बदल गया है। अब यहां कुश्ती का आयोजन होने लगा है। धीरे धीरे इस कुश्ती को ‘हापा’ कहा जाने लगा है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

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