जिन के पास इंजन है वो खर्च के बारे में सोच रहे हैं, बाकी अफसरों को रहे कोस
बेनीपुर (सीतापुर)। रबी फसलों की बुवाई शुरू हो गई है, लेकिन नहरें अभी तक सूखी पड़ी हैं। किसान रबी और खरीफ मौसम में पहले ही काफी नुकसान उठा चुका है, ऐसे में अब किसान को इंजन से पानी लगाने के लिए काफी सोचना पड़ रहा है।
सीतापुर से करीब 12 किमी दूर खैराबाद ब्लॉक की ग्राम पंचायत बद्रीपुर के गाँव बेनीपुर के किसान हेतराम वर्मा (45 वर्ष) का खेत नहर से सटा हुआ है। लेकिन वो गेहूं की बुवाई के लिए 400 फुट जीन पाइप डालकर इंजन से सिंचाई कर रहे थे। हेतराम के बेटे महेश प्रशाद वर्मा (25 वर्ष) बताते हैं, ''नहर में पानी जब नहीं आता है तो मजबूरी में इंजन से पानी लगाना पड़ता है। नहर में पानी पिछली बार गेहूं की फसल के समय आया था, तब एक पानी उससे लगाया था। उसके बाद से अभी तक नहर में पानी नहीं आया।''
महेश के पास तीन एकड़ खेत है, जिसमें से करीब एक एकड़ खेत नहर से एकदम सटा हुआ है, जिसमें वो इंजन से पानी लगा रहे थे। खेत में पानी को बहने से रोकते हुए महेश बताते हैं, ''इस बार बारिश नहीं हुई है तो इंजन भी सही से पानी नहीं देता है। सुबह सात बजे से इंजन चला रहे हैं और शाम के पांच बजे गए हैं, लेकिन अभी भी करीब एक डेड़ बीघे खेत सींचने को बचा है। जब इंजन, बोरिंग, जीन पाइप सब कुछ अपना है तब भी करीब इतने खेत में दो हज़ार रुपए पानी लगाने में खर्च हो जाएंगे।''
गाँव कनेक्शन के रिपोर्टर ने जब आठ अगस्त को लघु सिंचाई विभाग के अधिसाषी अभियंता देवेन्द्र पाल सिंह से नहरों के रोस्टर के बारे में बात की, तो उन्होंने बताया कि रोस्टर जारी किया जा चुका है। लेकिन अभी तक हमें बरेली से पानी नहीं मिल पाया है, जिस वजह से नहरों में अभी पानी नहीं छोड़ा गया है। सीतापुर की नहरों में 17 नवम्बर को पानी छोड़ा जाएगा। लेकिन जब 17 नवम्बर को गाँव कनेक्शन के रिपोर्टर ने सीतापुर की कुछ नहरों का जायजा लिया, तो हालात ऐसे थे कि पानी की तो बात दूर अभी तक नहरों की सफाई तक नहीं हुई है।
गेहूं की बुवाई का समय 14 नवम्बर से होता है, लेकिन उस समय तक तो नहर में पानी आया नहीं, जबकि पानी की ज़रूरत बुआई के करीब दस दिन पहले होती है। अब अगर पानी आएगा भी तो कुछ ही किसान को उसका फायदा मिल पाएगा, क्योंकि उस समय तक अधिकतर किसान बुवाई कर चुके होंगे।
उसी गाँव के किसान रामप्रकाश रावत (60 वर्ष) का भी करीब आधा एकड़ खेत नहर के किनारे है और उन्होंने अभी तक अपना खेत ऐसे ही छोड़ रखा है। वो बताते हैं, ''अभी पैसे का जुगाड़ नहीं हो पाया है। धान की फसल में तो कुछ हुआ नहीं, नहीं तो धान बेचकर ही सिंचाई करते। नहर का क्या भरोसा?''