यह किसान बकरियों की अलग-अलग नस्ल पालकर सालाना कर रहे लाखों की कमाई

Update: 2018-11-26 11:15 GMT

लखनऊ। कम लागत, साधारण आवास और सामान्य रख-रखाव से ताज बाबू ने बकरी पालन व्यवसाय को मुनाफे का सौदा बना दिया। इस व्यवसाय को शुरू करके उन्होंने अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारा है साथ ही आस-पास के गाँव में लोगों के लिए मिसाल भी बन गए।

ताज बाबू ने जब बकरी पालन की शुरुआत की थी तब उनके पास केवल देसी बकरियां थी लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अपने फार्म में उच्च नस्लों को पालना शुरू किया। ''हमारे फार्म में सिरोही, बरबरी, ब्लैक बंगाल नस्ल की 35 बकरे/बकरियां है। इन सभी बकरियों की अपनी अलग-अलग खासियतें हैं।" ताज बाबू ने बताया, ''जब हमने बकरी पालन शुरू किया था तब हमारे पास सिर्फ देसी नस्ल की बकरियां थी लेकिन उन पर खर्चा करने बाद भी ज्यादा लाभ नहीं मिलता है। तब इटावा जिले से अलग-अलग नस्ल की बकरियां पाली।''


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लखनऊ जिले के गोसाईंगंज ब्लॅाक के गंगागंज गाँव में तीन वर्षों से ताज बाबू 'ताज गोट फार्म' से अपना फार्म चला रहे हैं। ताज बताते हैं, ''फार्म में हमने बकरियों को रखने के लिए 6 तख्त रखे हुए हैं। यह जमीन से 5 से 7 फीट ऊपर है। इससे बकरियों का मल-मूत्र सीधे जमीन में चले जाए। इसमें बार-बार सफाई की भी जरूरत नहीं पड़ती है। पूरे फार्म को बनाने में तीन लाख रूपए की लागत आई जो बकरियों को बेचकर निकल भी आई।''

कम समय में ज्यादा मुनाफे के चलते भारत में बकरी पालन व्यवसाय करने में लोगों का रुझान तेजी से बढ़ रहा है। इस व्यवसाय से देश के 5.5 मिलियन लोगों की आजीविका जुड़ी हुई है। हर छह साल में देश में होने वाली (जो 2012 में हुई ) पशुगणना (इसे 19वीं पशुगणना कहते हैं) के मुताबिक पूरे भारत में बकरियों की कुल संख्या 135.17 मिलियन है।


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600 स्क्वायर फीट में बने गोट फार्म में ताज बाबू ने बकरियों के लिए अच्छा प्रबंध किया हुआ है। बकरियों को बीमारियों से बचाने के लिए वह समय-समय पर बकरियों को टीकाकरण कराते हैं। सर्दी, गर्मी और बरसात में बकरियों को बीमारी न हो इसके लिए अलग-अलग प्रबंध कर रखे हैं। ''बकरियों को बीमारी से बचाने के लिए तीन साल में एक बार पीपीआर का टीका और छह-छह महीने में खुरपका-मुंहपका का टीका जरूर लगवाते है ताकि फार्म में बीमारी न फैले।'' ताज बाबू ने बताया।

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