गहने बेचकर महिला ने छुड़ाई गिरवीं रखी जमीन, सब्जियों की खेती से अब सालाना 2 लाख तक की बचत

झारखंड की सुनीता देवी के लिए अपनी गिरवी रखी जमीन को छुड़वाना और उसपर खेती करना इतना आसान नहीं था। लेकिन आज वो सब्जियों की मिश्रित खेती करके अपने क्षेत्र की सफल किसान बन गयी हैं।

Update: 2020-07-05 07:54 GMT

रांची (झारखंड)। एक साधारण महिला अपनी मेहनत और लगन से सहफसली सब्जियों की खेती करके पांच वर्षों में अपने क्षेत्र की एक सफल किसान बन गयी हैं। ये एक साथ कई तरह की सब्जियां उगाती हैं और बाजार पहुंचाकर आज अच्छा मुनाफा कमा रहीं हैं। इनकी सालाना दो लाख रुपए तक की खेती से बचत हो जाती है। 

पर सुनीता देवी (37 वर्ष) के सफल किसान बनने की राह इतनी आसान नहीं थी। इनके घर के हालात ऐसे थे कि इनका परिवार वक़्त जरूरत पड़ने पर अपनी जमीन गिरवी रख देता था। एक समय ऐसा आया जब इनकी पूरी पांच एकड़ जमीन गिरवी रख गयी और इनका पूरा परिवार मजदूरी करने लगा।


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आर्थिक तंगी को झेलते-झेलते सुनीता देवी ऐसे हालातों में पूरी तरह से टूट चुकी थीं। मजदूरी करके चार बच्चों की परवरिश करना और उन्हें पढ़ाना इनके लिए मुश्किल होता जा रहा था। इन हालातों से उबरने के लिए सुनीता ने अपने जेवर बेचकर और कुछ उधार पैसा लेकर सबसे पहले गिरवी रखी जमीन छुड़वाई। जमीन तो छूट गयी थी पर इनके पास इतने पैसे नहीं थे जिससे ये खेती कर सकें। इसी दौरान इन्हें सखी मंडल के बारे में पता चला और ये वर्ष 2013 में स्वयं सहायता समूह से जुड़ गईं।

रांची जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर बुड़मू प्रखंड के ठाकुरगाँव बड़काटोली की रहने वाली सुनीता देवी अपने पक्के घर की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं, "ये पक्का घर हमने खेती करके बनवाया है। आज हमारे बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। हमने पति को चप्पल-जूता की दुकान खुलवा दी है। एक भाड़ा गाड़ी भी खरीद ली है जिससे सब्जियां बाजार भेजते हैं।"

वो आगे बताती हैं, "ये सारा काम हमने चार पांच साल में पूरा कर लिया। अगर सखी मंडल से न जुड़ते तो हमें खेती करने के लिए लोन नहीं मिलता और हम खेती नहीं कर पाते। लोन के पैसों से ही खेत के पास पानी के इंतजाम के लिए कुआं खुदवाया। पानी का इंतजाम होने से खेती में अच्छी उपज होने लगी और धीरे-धीरे आमदनी बढ़ने लगी। खेती की आमदनी से आज हमारे घर में जरूरत की सभी सुविधाएँ हैं।"

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सुनीता देवी वर्ष 2013 में कल्पना महिला स्वयं शक्ति समूह से जुड़ी और उसकी सचिव बनाई गईं। इन्होंने अपनी गिरवी रखी जमीन तो गहने और उधारी के पैसों से छुड़वा ली थी लेकिन बिना पैसे ये खेती कैसे करें इनके सामने एक बड़ी चुनौती थी। सखी मंडल से जुड़ने के बाद इन्होंने लोन लिया और खेती करने की शुरुआत की। ये अपने खेतों में ज्यादातर सब्जियां लगाती हैं। एक साथ दो से तीन प्रकार की सब्जियां लगाने से इनकी आमदनी अच्छी हो जाती है। मौसम के हिसाब से सब्जियां लगाती हैं। कभी करेला, मिर्च, टमाटर तो कभी पत्ता गोभी, फूल गोभी, साग एक साथ लगाकर ताजी सब्जियां बाजार पहुंचाती हैं।

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सुनीता आत्मविश्वास के साथ कहती हैं, "खेती करके हमारी स्थिति इतनी अच्छी हो जायेगी ये सोचा नहीं था। लेकिन खेती में मेहनत खूब करती थी। घर के खर्चे और खेती की लागत निकालकर सालाना डेढ़ से दो लाख रुपए बचा लेते हैं। पति की दूकान भी अच्छी चलती है। जिससे अलग आमदनी होती है।" वो आगे बताती हैं, "अभी भी वक़्त जरूरत पड़ने पर सखी मंडल से ही लोन लेती हूँ। जैसे खेती से आमदनी होती है चुका देती हूँ। बुरे वक़्त से निकलनी की मैंने थोड़ी हिम्मत कर ली दो चार साल में सब ठीक हो गया।" 

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