तस्वीरों में देखिए : दिमागी बुखार से प्रभावित बच्चे और उनका परिवार

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के कई जिलों में दिमागी बुखार से किसी तरह बच्चे बच तो गए, लेकिन उनका पूरा परिवार इस बीमारी से जूझ रहा है।

Update: 2018-08-14 07:30 GMT

गोरखपुर। पूर्वांचल के कई जिलों में दिमागी बुखार से किसी तरह बच्चे बच तो गए, लेकिन उनका पूरा परिवार इस बीमारी से जूझ रहा है।

तेरह साल की पिंकी जेईएस से बच तो गईं, लेकिन अब वो न बोल पाती हैं और ही खा पाती हैं। पिंकी की तरह ही सैकड़ों बच्चे हैं जो जेईएस से बच तो गए लेकिन पैरालाइसिस से उनकी ज़िंदगी ठहर गई है। 

ये है कुशीनगर ज़िले का खैरटिया गाँव, जहाँ पर लोग पिछले कई वर्षों से दिमागी बुखार से जूझ रहे हैं।

चौदह साल की रिंकी को दिमागी बुखार ने ऐसा बना दिया है कि न वो बोल पाती हैं और न ही कुछ समझ पाती हैं, अपने माँ के साथ अपने घर के सामने चारपाई पर बैठी रिंकी।

जानकारी के अभाव में इतने साल बाद भी ग्रामीण दिमागी बुखार के बारे में नहीं जानते कि ये बीमारी कैसे फ़ैलती है।

मानबेला गाँव का आठ साल का गोलू न अब चल पाता है और न ही बात कर पाता है, उसकी आंखें भी चली गईं हैं। दिमागी बुखार से वो बच तो गया, शारीरिक व मानसिक रूप से अक्षम हो गया। गोलू के माता-पिता मजदूरी करके किसी तरह उसका इलाज करा रहे हैं।

गांव में साफ-सफाई के नाम पर कुछ नहीं है, दिहाड़ी मजदूरी करने वाले ये ग्रामीण इतना कमा नहीं पाते कि बच्चों की ढंग से देखभाल कर सकें, यही वजह दिमागी बुखार का एक कारण बनती है। 


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