फ्री में बांटतें है खरबूजे, बीज से कमाते हैं हज़ारों

Update: 2016-06-07 05:30 GMT
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लखनऊ। “जिसको भी खरबूजे खाने हों, हमारे गाँव आ जाए, मीठे खरबूजे खिलाएंगे और एक भी पैसे नहीं लेंगे, जो खरबूजा मीठा न निकले उसे न खाएं। उसे हमारा जानवर खा लेगा” ये कहना है रामदीन गौतम का। 

कानपुर नगर के शिवराजपुर ब्लॉक से 14 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में दलीपपुर, कंजती, देवकली, सखरेज गाँव हैं, जहां लगभग 50 बीघे में खरबूजे की खेती की जाती। यहां खरबूजे बाजार में बेचे नहीं जाते, बल्कि इन खरबूजों को आसपास के लोगों को खिलाकर उनसे बीज एकत्र किया जाता है। अगर खरबूजे की ठीक-ठाक पैदावार हो गयी तो एक बीघे खेत से एक कुन्तल बीज मिल जाता है।

बीज 14000 से 15000 हजार रुपए प्रति कुन्तल बाजार में बीज का भाव है। दलीपपुर के किसान महेश कुमार (50 वर्ष) बताते हैं, “हम पिछले दसियों वर्षों से खरबूजे की खेती कर रहे हैं, पर आज तक हमारे गाँव का खरबूजा कभी मंडी नहीं गया, क्योंकि हमने कभी सोचा ही नहीं जो परम्परा हमारी वर्षों से चली आ रही उसे हम समाप्त करें। इसलिए हम सिर्फ बीज का उत्पादन करते हैं।” चन्द्रकिशोर (45 वर्ष) कहते हैं, “जो आलू और सरसों का खेत खाली होता है उसमें फरवरी महीना में खरबूजे की बोवाई कर देते हैं, एक बीघे में मुश्किल से दो हजार की लागत आती है। इससे हमको मुनाफा दसियों हजार का होता है।” 

गाँव में नहीं बनता नाश्ता

पूजा (18 वर्ष) बताती हैं, “पूरे जून महीने में दलीपपुर गाँव में सुबह किसी के घर नाश्ता और खाना नहीं बनता, क्योंकि पूरा गाँव सुबह का नाश्ता खरबूजे खाकर ही करता हैं। हमारे गाँव के जानवर भी सुबह-सुबह चारे की बजाए खरबूजा ही खाते हैं। गाँव के हर घर में दो से चार रिश्तेदार पूरे जून महीने रहते हैं और वो भी नाश्ता खरबूजे से ही करते हैं। 

खेतों में होता है खेल

वैष्णवी (12 वर्ष) कहती हैं, “जून की छुटियां बहुत मस्ती में गुजरती हैं। हम अपनी सभी सहेलियों के साथ सुबह-सुबह खरबूजे के खेत पर पहुंच जाते हैं। अपने खेत में मीठे खरबूजे मुझे पता हैं, मै अपनी सभी सहेलियों के साथ एक खेल खेलती हूं कि मीठा खरबूजा जो खोज कर लाएगा, सारे बीज उसे ही एक जगह इकठ्ठा करने होंगे, इस खेल में हम हमेशा जीत जाते हैं|

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