प्राथमिक शिक्षा का गिरता स्तर कोचिंग बाजार का पोषक

Update: 2016-05-16 05:30 GMT
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देवनिक साहा (इंडिया स्पेंड)

नई दिल्ली। हाल ही में 'मन की बात' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा था कि सभी सरकारों को स्कूलों में पंजीकरण की संख्या पर नहीं बल्कि शिक्षा के स्तर और उसके परिणाम पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

प्रधानमंत्री की चिंता व्यर्थ नहीं है। हाल ही में देश के शिक्षा स्तर पर जारी एक सरकारी संस्था के सर्वेके मुताबिक बच्चों का सरकारी से निजी स्कूलों की ओर जाना तेजी से जारी है। सर्वे इस ओर भी इशारा करता है कि बुनियादी शिक्षा स्तर खराब होने की वजह से ही बच्चे अलग से ट्यूशन या कोचिंग पढ़ते हैं।

देश की शिक्षा पर जारी राष्ट्रीय मानक सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 में भारत के 62 प्रतिशत बच्चों ने (शहरी और ग्रामीण) सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की, साल 2007-08 में यह आंकड़ा 72.6 प्रतिशत था। इससे ज़ाहिर है कि देश में अभिभावक बच्चों के लिए निजी स्कूलों को ज्य़ादा तवज्जो दे रहे हैं। 

उच्च प्राथमिक स्तर में, सरकारी स्कूलों में बच्चों का प्रतिशत 2007-08 के 69.9 प्रतिशत से 2014 में घटकर 66 प्रतिशत तक पहुंच गया। 

बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं। इस पूरे पारिदृश्य में शहरी और ग्रामीण खाई भी साफ दिखती है। शहरी क्षेत्रों में वर्ष 2014 में केवल 31 प्रतिशत बच्चों ने ही सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की, जबकि ग्रामीण भारत के लिए यह आंकड़ा 72.3 प्रतिशत था। लेकिन ज्यादा बच्चों का दाखिला कतई बेहतर शिक्षा का मानक नहीं।

शिक्षा पर काम करने वाले एनजीओ 'प्रथम' की 2014 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार पांचवीं में पढ़ने वाले मात्र 26 प्रतिशत बच्चे ही भाग करने वाले सवाल हर कर सके। 

पिछले एक दशक में प्राथमिक शिक्षा पर 586 हजार करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी भारत बच्चों के सीखने की क्षमता के लगातार गिरते स्तर की समस्या का हल नहीं खोज पाया है।

प्रथम की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक शब्दों को पढ़ने में सक्षम कक्षा तीन के बच्चे वर्ष 2010 में 75.8 फीसदी थे, ये संख्या 2014 में घटकर 60.2 फीसदी पर आ गई। इसी कक्षा के बच्चे जो 10 से 99 के बीच और उससे आगे की संख्याओं को पढ़ सकते थे, 2010 में 73.8 प्रतिशत थे, लेकिन 2014 में घटकर 60.2 प्रतिशत पर आ गए।

इसी तरह वर्ष 2010 में कक्षा पांच के बच्चे जो कक्षा दो के स्तर की लिखाई समझ सकते थे, 53.7 प्रतिशत थे, 2014 में यह संख्या घटकर 48.1 प्रतिशत पर आ गई।

'अंग्रेजी माध्यम' नहीं 'बेहतर शिक्षा' प्राथमिक कारण

छात्र-छत्राएं बारहवीं कक्षा तक सरकारी के बजाए निजी स्कूल चुनने का कारण बेहतर शिक्षा स्तर को बताते हैं। एनएसएसओ के सर्वे के अनुसार 58.7 प्रतिशत बच्चों ने सरकारी के ऊपर निजी स्कूलों को चुनने का कारण "सीखने के बेहतर माहौल" को बताया। मात्र 11.6 प्रतिशत बच्चों ने "अंग्रेजी माध्यम" को निजी स्कूलों में पढ़ने का कारण माना।

कॉलेजों में स्थिति उलट: सरकारी में दाखिला न पाने पर चुनते हैं निजी संस्थान

यदि डिप्लोमा, स्नातक या उससे ऊपर के स्तर की पढ़ाई की बात करें, तो देश में स्थिति बारहवीं तक की शिक्षा के बिलकुल उलट है। निजी कॉलेजों में बच्चे इसलिए दाखिला लेते हैं क्योंकि उन्हें सरकारी कॉलेजों में दाखिला मिला नहीं। छात्र-छात्राओं का पहला चुनाव सरकारी कॉलेज ही होते हैं। उदाहरण के तौर पर सर्वे में डिप्लोमा कर रहे 43 प्रतिशत छात्र-छात्राओं ने कहा कि वो निजी संस्थान में इसलिए पढ़ रहे हैं क्योंकि उन्हें सरकारी संस्थान में दाखिला नहीं मिला। ठीक यही जवाब स्नातक या उससे ऊपर की पढ़ाई कर रहे 27.5 प्रतिशत छात्रों ने दिया।

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