पुरातन पद्धतियां और सिद्धांत नहीं ला सकते बदलाव: मुखर्जी

Update: 2016-06-14 05:30 GMT
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क्करा (भाषा)। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, आईएमएफ जैसे वैश्विक संगठनों में सुधार की जरुरत को रेखांकित करते हुए कहा है कि सकारात्मक बदलाव पुरातन पद्धतियों और सिद्धांतों के जरिए नहीं लाए जा सकते।

घाना विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैटेस्टिकल, सोशल एंड इकोनॉमिक रिसर्च के छात्रों को कल संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि वर्ष 1945 में दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति के संदर्भ में स्थापित किया गया संयुक्त राष्ट्र व्यापक बदलावों से गुजर चुके, आज के विश्व समुदाय के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं कर सकता।

विश्वविद्यालय के खचाखच भरे सभागार में मौजूद छात्रों को संबोधित करते हुए मुखर्जी ने कहा कि जब संयुक्त राष्ट्र का गठन हुआ था तब कुछ ही देश इसके सदस्य थे। लेकिन विश्वयुद्ध के बाद स्वतंत्रता प्राप्त करने वाले अफ्रीकी और लातिन अमेरिकी देशों की इस वैश्विक संस्था में कोई प्रभावी भूमिका नहीं है।

उन्होंने कहा कि हम आर्थिक संस्थाओं विश्व बैंक आईएमएफ, डब्ल्यूटीआई, संयुक्त राष्ट्र की सबसे अहम सुरक्षा परिषद की प्रशासनिक व्यवस्थाओं में अंतरराष्ट्रीय संरचना के तर्कसंगत सुधार की मांग कर रहे हैं।

मुखर्जी ने कहा कि यह विडंबना ही है कि जो भारत धरती के हर छठे नागरिक को अपने यहां जगह देता है और विकास के केंद्र अफ्रीकी महाद्वीप को, संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए कोई स्थान प्राप्त नहीं है।

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