श्रमिक ट्रेनों में हुई 97 मौतें, रेलवे की तरफ से किसी को कोई मुआवजा नहीं

रेल मंत्री पीयूष गोयल ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा कि 1 मई से 31 अगस्त तक चलाए गए 4621 ट्रेनें चलाई गई, जिसमें 63.19 लाख यात्री अपने गृह राज्य पहुंचे। इस दौरान 97 लोगों की मौत हुई। रेलवे ने यह भी कहा कि श्रमिक ट्रेनों के संचालन में रेलवे को 433 करोड़ रूपये किराया स्वरूप मिला, जो कि संबंधित राज्यों से वसूला गया।

Update: 2020-09-22 14:06 GMT

लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों में फंसे श्रमिकों और आम लोगों के लिए चलाए गए श्रमिक ट्रेनों में कुल 97 लोगों की मौत हुई। ऐसा सरकार ने खुद स्वीकार किया है। लोकसभा में सांसदों श्रीमती माला राय और श्री के. सुधाकरन के प्रश्नों के जवाब में रेल मंत्रालय ने कहा कि राज्य पुलिस द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के आधार पर श्रमिक स्पेशल गाड़ियों में यात्रा करते हुए 97 लोगों की मौत हुई। इनमें से अधिकतर मौतें हृदय, फेफड़े, लीवर, ब्रेन हैमरेज और पुरानी गंभीर बीमारियों से हुई, जैसा कि शवों के पोस्टमार्टम से ज्ञात हुआ है।

रेल मंत्रालय ने लिखित जवाब में बताया कि 97 मामलों में से 87 मामलों में राज्य पुलिस ने शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा, जिसमें रेलवे को 51 लोगों के पोस्टमार्टम रिपोर्ट संबंधित राज्य सरकारों से प्राप्त किया है। हालांकि रेलवे ने अपने जवाब में यह कहीं कहा है कि किसी भी यात्री की मौत श्रमिक ट्रेनों की अव्यवस्था से हुई, जबकि उस समय अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से इन ट्रेनों में कई तरह की दिक्कतों, अव्यवस्थाओं की खबर लगातार आ रही थी। इसमें ट्रेन का काफी लेट होना, ट्रेन का रूट बदल जाना, ट्रेन में खाना, पानी, बिजली-पंखे की व्यवस्था ना होना आदि शामिल है।

गांव कनेक्शन ने ऐसे कई रिपोर्ट किए थे, जिसमें दिखाया गया था कि दो-दो, तीन-तीन दिन से ट्रेन में फंसे लोग वॉशरूम का पानी बोतल में भरकर पीने को मजबूर हैं। ट्रेनों में देरी, भयंकर गर्मी, भूख-प्यास और अन्य अव्यवस्थाओं के कारण इन ट्रेनों में लगातार मौत हो रही थी, लेकिन सरकार का कहना है कि जितनी भी मौते हुई हैं, उसका प्रमुख कारण बीमारी है।

रेल मंत्री पीयूष गोयल ने अपने जवाब में कहा कि एक मई से 31 अगस्त के बीच देश में कुल 4621 ट्रेनें चलाई गई, जिसमें 63.19 लाख यात्री अपने गृह राज्य पहुंचे। इसमें सबसे अधिक यात्री उत्तर प्रदेश और बिहार से थे। उत्तर प्रदेश के लिए सर्वाधिक 1726 और बिहार के लिए सर्वाधिक 1621 गाड़ियां चलाई गईं। वहीं सबसे अधिक गाड़ियां गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब से चलाई गई जिसमें क्रमशः 15,32,712, 12,41,573 और 5,28,587 श्रमिक सवार हुए।

जब रेल मंत्रालय से यह पूछा गया कि श्रमिक ट्रेनों में घायल या मृतक हुए लोगों के परिवार जनों को क्या मुआवजा दिया गया? इस पर मंत्रालय का कहना है कि ट्रेनों में पुलिस की व्यवस्था करना राज्य सरकार का विषय है, इसलिए रेल परिसरों और चलती गाड़ियों में अपराधों की रोकथाम करना, मामलों का पंजीकरण करना, उनकी जांच करना और कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकारों का उत्तरदायित्व है, जिसका निर्वहन वे राजकीय रेल पुलिस और जिला पुलिस के जरिये करते हैं। जबकि रेलवे सुरक्षा बल(आरपीएफ) राजकीय रेल पुलिस के प्रयासों में महज सहायता करती है।

पीयूष गोयल ने कहा कि रेल दुर्घटना और अप्रिय घटनाओं में रेल्ल यात्रियों की मृत्यु या चोट के मामले में रेलवे की दायिता, रेल अधिनियम, 1989 की धारा 423 के साथ पठित धारा 424 और 424ए से निर्धारित होती है, इसके लिए रेलवे द्वारा क्षतिपूर्ति का भुगतान रेल दावा अधिकरण पीठ में पीड़ित और उनके आश्रितों द्वारा दायर क्षतिपूर्ति दावा आवेदन के आधार पर रेल दावा अधिकरण (आरसीटी)द्वारा किया जाता है। लेकिन लॉकडाउन के दौरान हुई मौतों का किसी के भी द्वारा क्षतिपूर्ति के लिए आवेदन नहीं किया गया, इसलिए किसी को मुआवजा देने का सवाल ही नहीं उठता।

वर्तमान में, क्षतिपूर्ति की अधिकतम राशि मृत्यु के मामले में 8 लाख रु. और चोट के मामले में, चोट की प्रकृति और गंभीरता के आधार पर 64000 रु. से 8 लाख रु. तक निर्धारित है। लेकिन यह सब असमान्य और अप्राकृतिक मौतों के लिए है। चूंकि रेलवे ने कहा है कि किसी की भी मौत असमान्य परिस्थितियों में नहीं बल्कि सामान्य बीमारी से हुई है इसलिए मुआवजा मिलने की भी संभावना ना के बराबर है।

श्रमिक ट्रेनों से वसूला गया 433 करोड़ रूपये किराया

रेलवे ने कहा है कि श्रमिक ट्रेनों का संचालन राज्यों के विशेष अनुरोध पर विशेष परिस्थितियों में किया गया था। ऐसी परिस्थितियों में रेलवे संबंधित राज्य से दोनों तरफ का किराया वसूलता है। लेकिन कोविड लॉकडाउन की असाधारण परिस्थितियों के कारण रेलवे ने राज्यों से सिर्फ एख तरफ का किराया वसूला, जो कि 433 करोड़ रुपये था। रेलवे ने इसमें यह भी जोड़ा कि इन ट्रेनो के परिचालन से राज्यों को हानि ही हुई है।

गौरतलब है कि श्रमिक ट्रेनों के संचालन के वक्त मजदूरों से टिकट का पैसा वसूले जाने पर केंद्र सरकार का कड़ा विरोध हुआ था। तब भी केंद्र सरकार ने कहा था कि मजदूरों से कोई किराया नहीं वसूला जा रहा है, जिन राज्यों के अनुरोध पर ये ट्रेनें चल रही हैं उनसे ट्रेन के संचालन का एक तरफ का भाड़ा लिया जा रहा है। जबकि उस समय आने वाले कई मजदूरों और आम लोगों ने ट्रेन का टिकट दिखाते हुए कहा था कि उनसे यात्रा से पहले ट्रेन का टिकट वसूला गया था। हालांकि सरकार इस मामले में हमेशा से इन आरोपों को नकारती आई है, संसद में भी वह इन आरोपों को सिरे से नकारती हुई दिखी।

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